सिमडेगा:(रिपोर्ट अमन मिश्रा की) निस्वार्थ सेवा और दृढ़ निश्चय के साथ विषम परिस्थितियों में अपनी कर्तव्य परायणता और निष्ठा के साथ सिमडेगा एसडीओ काम कर रहे हैं। इस वैश्विक महामारी कोरोना वायरस से पूरा देश और दुनिया पिछले कई महीनों से आफत में है।लगातार देश में कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या में इजाफा हो रहा है।सरकार और प्रशासन लगातार लोगों से अपील कर रहीं है कि कोरोना जैसे वैश्विक महामारी के चैन को तोड़ने के लिए घर में रहना जरूरी है।आप बेवजह घर से बाहर ना निकलें लॉकडाउन और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें।तभी हम कोरोना महामारी से जीत पायेंगे।आप घर पर है,और घर के बाहर पूरे देश के आवामों की सुरक्षा डॉक्टर,नर्स,पुलिसकर्मी और अन्य लोगों के हाथ में होती है।जो अपने घर परिवार से दूर होकर खुद जान को जोखिम में डालकर रात दिन आपकी सुरक्षा में लगें रहतें है।ऐसे ही एक कोरोना योद्धा के रूप में सदर अनुमंडल पदाधिकारी कुंवर सिंह पाहन एवं उनकी टीम के द्वारा अपनी जान को जोखिम में डालकर अपने घर–परिवार छोड़ बिना किसी परवाह के अपने आपको समाज व राष्ट्र के लिए समर्पित किया है।स्वाधीन भारत के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने नौकरशाही को देश समाज की रक्षा करने वाला फौलादी कवच बताया था। समय-समय पर नौकरशाही ने इस परिभाषा को सही ठहराया है और कभी-कभी गलत भी। लेकिन हकीकत यही है कि नौकरशाही या कार्यपालिका वक्त पड़ने पर पूरी मजबूती के साथ किसी भी चुनौती का सामना करने के लिए खड़ी हो जाती है। खासकर आपदा या संकट के समय नौकरशाही का यह रूप बेहद प्रभावशाली होता है।
ऐसे नौकरशाहों की कमी नहीं है जो अपनी सोच और कुछ नया करने की ललक से चर्चा में रहते हैं।खबर मंत्र की विशेष रिपोर्ट में हम आपको बताएंगे की जिले के एक नौकरशाह के बारे में जो पिछले अढ़ाई महीने से कोरोना महामारी से निपटने के लिए दिन हो या रात लगे हुए हैं।कोरोना से जंग के बीच सिमडेगा जिले के अनुमंडल पदाधिकारी कुंवर सिंह पाहन ने अपने काम से एक नई लकीर खींची है और साबित कर दिखाया है कि उनके जैसे अधिकारियों की बदौलत ही ये सिस्टम चल रहा है।जिंदगियां बचाने के लिए ये ‘अधिकारी’ दिनरात काम पर लगे हुए हैं। कई बार ऐसी भी स्थिति आ जाती है जब ये ‘अधिकारी’ संक्रमित के सीधे संपर्क में आ जाते हैं। इसके बावजूद उनका न तो हौसला डिगा है और न ही बेहतर करने में कोई कमी आई है।आम लोगों को जब लॉकडाउन में अपने घरों में रहना मुश्किल काम हो रहा है। वैसे में एसडीओ कुंवर सिंह पाहन एवं उनकी टीम अपनी जान जोखिम में डालकर बखूबी अपने कार्याें को निभाने में जूटी है। कोरोना वायरस से देश जहां संकट से गुजर रहा है, वहीं ये अधिकारी अपने घर परिवार से दूर रहकर लोगों की सेवा कर रहे हैं। इस संकट काल में अधिकारियों ने लोगों को बचाने के लिए दिन रात एक किए हुए हैं।
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में की पहल
एसडीओ ने गांव पहुंच कर दोना पत्तल बनाने वाली महिलाओं को प्रोत्साहित किया और उन्हें इसकी मांग बढ़ाने के लिये कदम उठाने की बात कही है। आने वाले समय में पत्तों से बनें पत्तल और दोना के प्रयोग को बढ़ावा देने के लिए जिले के होटलों और ढाबों में पत्तल व दोना में भोजन परोसने का काम भी शुरू कराया जाएगा।एसडीओ कुंवर सिंह पाहन ने कोरोना संकट के इस दौर में सामाजिक मोर्चे पर अनोखे काम किए हैं। जब लॉक डाउन शुरू हुआ तो कुंवर सिंह पाहन ने नए तरीके से सोचना शुरू किया उन्होंने रिसीविंग सेंटर में प्रवासी मजदूरों को स्वादिष्ट भोजन कराने एवं सूखा राशन उपलब्ध कराने का जिम्मा बखुबी निभाया।लेकिन दूसरे जिलों से अलग उन्होंने रिसीविंग सेंटर में सभी को सखुआ के पत्तों से बने दोना-पत्तल का इस्तेमाल करने को कहा।इसका नतीजा यह हुआ कि पत्तल का खर्च कम हो गया और ग्रामीण कस्बे की महिलाएं खुद से पत्तल बनाना सीखने लगी। इसका लाभ उन्हें बाद में मिलेगा।इसके बाद उनका जन्मदिन आया तो उन्होंने असहाय एवं जरूरतमंदों के बीच राशन का वितरण कराया।वह कहते हैं कि सिमडेगा के लोगों में आज कोरोना का भय नहीं है बल्कि वे इसे एक बीमारी के रूप में मानने लगे हैं।जो एक अच्छी बात है।वहीं जिले के लोग कह रहे हैं कि उन्हें पहली बार ऐसा लग रहा है की प्रशासन उनके लिए है।लोग जब चाहते हैं उनसे मिलते हैं,फोन पर बात करते हैं।लीक से हटकर इन अधिकारी ने और भी ऐसे काम किया है और कर रहे हैं जिसकी जितनी तारीफ की जाए कम है।इन्होंने साबित कर दिखाया है कि इंसान यदि चाह ले तो कोई भी बाधा उसे नहीं रोक सकती है कहा भी जाता है कि असली कर्मवीर वही होता है जो संकट के समय विपरीत परिस्थितियों में भी हिम्मत नहीं हारे और अपनी प्रतिभा के बल पर चुनौतियों का सामना करे।इन अधिकारी ने यही कर दिखाया है, बिना किसी अतिरिक्त खर्च के अपने पास उपलब्ध संसाधनों का इस्तेमाल कर उन्होंने एक राह दिखाई है।जिले को ऐसे अधिकारियों की ही जरूरत है क्योंकि संसाधनों की कमी का रोना तो हर कोई रोता है लेकिन अभावों के बीच रहकर भी कुछ बड़ा और अनोखा करने का इनमें है।
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