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Tuesday, March 28, 2023

कोयला खदान में घुसी प्रदेश की राजनीति पूर्व सीएम रघुवर ने मुख्यमंत्री हेमंत को…

[वार्ता स्पेशल :रिपोर्ट सत्यम जयसवाल +सतीश सिन्हा] झारखंड की राजनीति एक बार फिर कोयले की काली राजनीति में तब्दील होती दिख रही है क्योंकि एक ओर केंद्र सरकार ने कोल ब्लॉकों के कमर्शियल माइनिंग के लिए कोल ब्लॉकों को नीलामी के लिए राज्य सरकारों को कहा है और इस पर अमल करना शुरू कर दिया है इसी बीच हेमंत सरकार विस्थापन और पुनर्वास का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट चली गई है। इसी बात को लेकर पक्ष और विपक्ष में एक ओर ‘नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है’ से लेकर जाने कितने ही आरोपों की बौछार एक दूसरे पर हो रही है और प्रदेश की राजनीति कोयले की काली राजनीति से फिर एक बार फिर उफान पर है। वहीं पूर्व सीएम रघुवर और वर्तमान सीएम हेमंत सोरेन के बीच भी तीखे बयानों का सिलसिला परवान चढ़ चुका है। बीच में बाबूलाल मरांडी भी इस जंग में कूद चुके हैं।

खबरों के अनुसार पूर्व सीएम रघुवर दास ने कमर्शियल माइनिंग के लिए कोल ब्लॉक की नीलामी पर राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की राय की आलोचना करते हुए कहा कि राज्य सरकार विस्थापन और पुनर्वास के नाम पर खदान नीलामी प्रक्रिया में बाधा डालने पर अड़ी हुई है।

रघुवर दास ने कहा है कि ऑनलाइन नीलामी पारदर्शी है कहीं से भी कोई भी इस नीलामी में ऑनलाइन भाग ले सकता है और नीलामी से प्रदेश को मोटी राजस्व की प्राप्ति होगी। जिससे राज्य का विकास संभव होगा।

पूर्व सीएम रघुवर दास ने यही नहीं माने और हेमंत सोरेन सरकार के द्वारा इस मुद्दे पर झारखंड के सामाजिक और पर्यावरणीय ताना-बाना को नुकसान पहुंचाने का हवाला देकर सुप्रीम कोर्ट जाने पर भी उन्हें आड़े हाथों लेते हुए कहा कि इसके पूर्व भी राज्य सरकार पहले कोरोना महामारी का हवाला देकर रोकने का आग्रह कर अपने परस्पर विरोधाभासी बयानों से प्रदेश के विकास में बाधक बंद कर वास्तविक तथ्यों को नजरअंदाज कर रहे हैं।

श्री दास ने कहा कि परस्पर विरोधी बयानों से ऐसा लग रहा है कि या तो मुख्यमंत्री तथ्यों से रूबरू नहीं हुए हैं या केंद्र सरकार से टकराव के हालात पैदा करना चाह रहे हैं।

उन्होंने हेमंत सोरेन के साथ-साथ कांग्रेस को भी लपेटे में लिया और कहा कि लाल पानी और काला पानी विस्थापन और पुनर्वास की समस्या केंद्र व राज्य की पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार की गलत नीतियों का परिणाम है।

बहरहाल पूर्व में जिस तरह झारखंड की राजनीति में काले कोयले से राजनीति काली हो गई थी और फिलहाल फिर से एक बार प्रदेश की राजनीति कोयला खदानों के बीच पहुंच गई है अब देखना है आगे क्या होता है!

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