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[रिपोर्ट:सतीश सिन्हा] राष्ट्रपति प्रत्याशी को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ने ऐसी गुगली गेंद डाल दी है कि प्रदेश की गठबंधन सरकार के नेतृत्व कर्ता झामुमो के असमंजस में पड़ने की चर्चा है। झारखंड के पूर्व पहली महिला आदिवासी राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू अब देश की प्रथम आदिवासी महिला राष्ट्रपति की एनडीए की ओर से उम्मीदवार है वहीं जबकि विपक्ष यूपीए की ओर से झारखंड के ही दिग्गज नेता यशवंत सिन्हा प्रत्याशी के रूप में खड़े हैं। ऐसी स्थिति में चर्चा है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा भारतीय जनता पार्टी की गुगली से असमंजस में पड़ गई है कि भाजपा के आदिवासी कार्ड से झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता फिलहाल कुछ भी कहने की स्थिति में नहीं है।खास बात यह है कि पड़ोसी राज्य ओडिशा ने द्रौपदी मुर्मू के समर्थन में खुलकर आ गई है। वहीं आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने भी द्रौपदी मुरमू को समर्थन देने का ऐलान कर दिया है। अब झारखंड पर सबकी निगाहें टिकी है।
वहीं खबरों के मुताबिक असमंजस में पड़ी झारखंड मुक्ति मोर्चा अब इसके फैसले के लिए झारखंड मुक्ति मोर्चा सुप्रीमो पूर्व मुख्यमंत्री दिसोम गुरु शिबू सोरेन की शरण में चली गई है। खबर है कि शनिवार को शिबू सोरेन की अध्यक्षता में झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायकों और सांसदों की अहम बैठक होने वाली है। जिसमें तय किया जाएगा कि द्रौपदी मुर्मू के साथ पार्टी खड़ी रहेगी या यशवंत सिन्हा के साथ!
वहीं दूसरी ओर झारखंड मुक्ति मोर्चा के अंदरूनी खेलों में राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। आकलन किया जा रहा है कि आदिवासी महिला और झारखंड के पूर्व राज्यपाल का विरोध करना कितना भारी और कितना सहज होगा। हालांकि संदर्भ में स्पष्ट रूप से किसी ने खुलकर अपने विचार व्यक्त नहीं किए हैं।
इधर चर्चा है कि प्रदेश में राष्ट्रपति चुनाव को लेकर राजनीतिक सरगर्मी तेज हो गई है। खबरों के अनुसार संयुक्त विपक्ष के राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा शुक्रवार को राजधानी रांची पहुंच रहे हैं। वे झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन से मुलाकात करने के साथ-साथ कांग्रेसी विधायकों से भी मिलने वाले हैं।
राजनीतिक गलियारे में चर्चा है कि भारतीय जनता पार्टी ने द्रौपदी मु्र्मू को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाकर मास्टर स्ट्रोक खेला है और तो और उनका प्रस्तावक केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा को बनाकर झारखंड मुक्ति मोर्चा जो कि कथित रूप से आदिवासी सियासत के लिए मशहूर है उसे अपने मास्टर स्ट्रोक से भारतीय जनता पार्टी ने धर्म संकट में डाल दिया है।पार्टी को यह तय करना मुश्किल हो रहा है कि आखिर आदिवासी महिला उम्मीदवार को किस आधार पर समर्थन ना देने की बात की जाए। झाबुआ अपना नफा नुकसान आकलन करने में जुटा हुआ है। फिलहाल तक पार्टी दुविधा में है।
बहरहाल स्थिति में शनिवार को कुछ ना कुछ तो झारखंड मुक्ति मोर्चा को फैसला लेना ही है अब देखना है कि झारखंड मुक्ति मोर्चा किसे समर्थन दे रही है यशवंत सिन्हा को या द्रौपदी मुर्मू को इस पर तमाम राजनीतिक दलों सत्ता पक्ष हो या विपक्ष सबकी निगाहें टिकी हुई है और भविष्य की राजनीति भी इस पर तय होगी। यदि पार्टी ने द्रौपदी मुरमू को समर्थन नहीं दिया तो उसे आदिवासी विरोधी करार दिए जाने का हमला बोला जाएगा और दूसरी ओर यदि यशवंत सिन्हा को समर्थन नहीं देने पर विपक्ष जिसके उम्मीदवार यशवंत सिन्हा है और उसी धड़े के कांग्रेस के साथ मिलाकर झारखंड में गठबंधन की सरकार चल रही है। विपक्ष में रहते हुए विपक्ष के उम्मीदवार की खिलाफत से झामुमो को क्या नुकसान होगा। इसका आकलन करके ही झामुमो फैसला सुनाएगी लेकिन सवाल दोनों फैसलों पर ही उठेंगी। अब देखना है कि पार्टी किसे समर्थन देती है। वैसे तो एनडीए के उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू पलड़ा शुरू से ही भारी होने की बात बताई जा रही है और उनका जीतना तय माना जा रहा है। ऐसे में झामुमो का फैसला क्या होगा इस पर कांग्रेश समेत तमाम राजनीतिक दलों की निगाहें टिकी हुई हैं।
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