लाहौर/इस्लामाबाद: पाकिस्तान के लाहौर से एक भयावह और चौंकाने वाली घटना ने पूरे दक्षिण एशिया को झकझोर दिया है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान की सेना ने प्रो-पैलेस्टाइन (Pro-Palestine) प्रदर्शनकारियों पर खुलेआम गोलीबारी की, जिसमें 1000 से अधिक लोगों की मौत होने का दावा किया जा रहा है।
यह घटना तब हुई जब तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (TLP) के समर्थक लाहौर से इस्लामाबाद स्थित अमेरिकी दूतावास की ओर एक विशाल “फ़िलिस्तीन एकजुटता मार्च” निकाल रहे थे। प्रदर्शनकारी गाज़ा में जारी युद्ध और पाकिस्तान सरकार की इज़रायल से बढ़ती नज़दीकी के विरोध में सड़कों पर उतरे थे।
सेना की अंधाधुंध फायरिंग
अंतरराष्ट्रीय पत्रकार रायन ग्रिम (Ryan Grim) की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि लाहौर के बाहरी इलाकों में सेना ने भीड़ पर बिना चेतावनी अंधाधुंध गोलियां चलाईं। चश्मदीदों के अनुसार, “सैकड़ों शव सड़कों पर पड़े रहे, जिन्हें बाद में ट्रकों में भरकर ले जाया गया।”
रिपोर्ट के मुताबिक, यह कार्रवाई सिर्फ़ प्रदर्शन रोकने के लिए नहीं बल्कि पूरे देश में असहमति को कुचलने के लिए की गई थी। सोशल मीडिया पर कई वीडियो सामने आए हैं, जिनमें गोलीबारी और घायल प्रदर्शनकारियों के भयावह दृश्य देखे जा सकते हैं।
हालांकि, पाकिस्तान सरकार ने सभी वीडियो को ‘फेक प्रोपेगेंडा’ बताते हुए खारिज कर दिया है।
TLP प्रमुख साद रिज़वी लापता
सूत्रों के मुताबिक, मार्च में TLP प्रमुख साद रिज़वी (Saad Rizvi) भी मौजूद थे। बताया जा रहा है कि उन्होंने सेना से हिंसा रोकने की अपील की, तभी उन्हें गोली लगी और बाद में सुरक्षा बलों ने हिरासत में ले लिया। उनकी लोकेशन को लेकर कोई आधिकारिक जानकारी नहीं है। सोशल मीडिया पर अब #WhereIsSaadRizvi हैशटैग ट्रेंड कर रहा है।
मीडिया पर सख्त सेंसरशिप
देश के प्रमुख टीवी चैनलों और अखबारों को सेना की ओर से स्पष्ट निर्देश दिए गए हैं कि “किसी भी प्रकार की गलत या भड़काऊ सूचना” न दिखाई जाए। स्वतंत्र पत्रकारों को या तो हिरासत में लिया गया है या उनके उपकरण ज़ब्त कर लिए गए हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे X (पूर्व में ट्विटर) और YouTube को अस्थायी रूप से ब्लॉक कर दिया गया है, जबकि Facebook और Instagram पर कई यूज़र्स के अकाउंट राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर निलंबित कर दिए गए हैं।
अंतरराष्ट्रीय समुदाय में चिंता
घटना ने वैश्विक स्तर पर चिंता पैदा की है। हालांकि अभी तक संयुक्त राष्ट्र या किसी बड़े देश की ओर से औपचारिक बयान नहीं आया है। फिर भी, कई मानवाधिकार संगठनों ने इसे पाकिस्तान में सैन्य तानाशाही की सच्ची झलक बताया है। लंदन, इस्तांबुल और न्यूयॉर्क में पाकिस्तानी प्रवासियों ने विरोध प्रदर्शन किए हैं और दूतावासों के बाहर मोमबत्तियां जलाकर मारे गए प्रदर्शनकारियों को श्रद्धांजलि दी है।
इंटरनेट बंद, सड़कों पर सेना का पहरा
लाहौर, कराची, फैसलाबाद और मुल्तान जैसे शहरों में इंटरनेट सेवाएं आंशिक रूप से ठप कर दी गई हैं। लोगों को घरों में रहने की सलाह दी गई है और किसी भी सार्वजनिक सभा पर पाबंदी लगा दी गई है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार शवों को अस्पतालों या अज्ञात स्थानों पर ले जा रही है, जिससे मृतकों की वास्तविक संख्या की पुष्टि मुश्किल हो गई है।
विश्लेषण: पाकिस्तान के लोकतंत्र पर गहरा सवाल
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह गोलीबारी सिर्फ़ एक दमनकारी कार्रवाई नहीं, बल्कि सेना की ओर से जनता को दिया गया संदेश है कि सत्ता के विरुद्ध उठने वाली हर आवाज़ को चुप कराया जाएगा।
तहरीक-ए-लब्बैक पहले भी कई बार सरकार और सेना के खिलाफ़ प्रदर्शन कर चुकी है, मगर इस बार हालात अभूतपूर्व रूप से हिंसक हो गए। यह घटना पाकिस्तान के इतिहास के एक काले अध्याय के रूप में दर्ज हो सकती है।
जब एक देश में सत्ता के सामने सवाल उठाने पर बंदूकें चलने लगें, तो यह केवल पाकिस्तान की नहीं, बल्कि पूरी दुनिया की लोकतांत्रिक चेतना के लिए खतरे की घंटी है।
पाकिस्तान में TLP प्रदर्शनकारियों और सेना के बीच झड़प: 1000 से ज्यादा लोगों की मौत का दावा, TLP प्रमुख साद रिजवी लापता













