रांची: झारखंड में पेसा (PESA) नियमावली लागू नहीं किए जाने को लेकर दायर अवमानना याचिका पर झारखंड हाईकोर्ट में गुरुवार को सुनवाई हुई। इस दौरान राज्य सरकार की ओर से पंचायती राज विभाग के सचिव स्वयं अदालत में उपस्थित हुए।
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने कोर्ट को बताया कि पंचायती राज विभाग ने पेसा नियमावली का प्रारूप कैबिनेट कोऑर्डिनेशन कमेटी को भेजा था, लेकिन कमेटी ने उसमें कुछ तकनीकी त्रुटियों की ओर इशारा किया था। सरकार ने कहा कि कमेटी द्वारा बताई गई त्रुटियों को ठीक किया जा रहा है और संशोधित प्रारूप एक सप्ताह के भीतर दोबारा कमेटी को भेज दिया जाएगा।
इस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को तीन सप्ताह का समय देते हुए विस्तृत स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया। राज्य सरकार की ओर से अपर महाधिवक्ता सचिन कुमार ने पक्ष रखा।
मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की खंडपीठ ने की। इससे पहले कोर्ट ने सरकार को चेताया था कि पेसा नियमावली लागू करने को लेकर 29 जुलाई 2024 को ही आदेश दिया गया था और दो माह की समय-सीमा तय की गई थी, लेकिन अब तक नियमावली अधिसूचित नहीं की गई है। कोर्ट ने कहा था कि नियमावली लागू करने में जो भी बाधाएं हैं, उन्हें दूर किया जाए और आदेश का पालन सुनिश्चित किया जाए।
यह अवमानना याचिका आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की ओर से दायर की गई थी। मंच का कहना है कि हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद राज्य सरकार ने अब तक नियमावली को अधिसूचित नहीं किया है, जिससे न्यायालय के आदेश की अवमानना हुई है।
2024 में कोर्ट ने दिया था नियमावली लागू करने का आदेश
गौरतलब है कि वर्ष 2024 में हाईकोर्ट ने झारखंड सरकार को दो माह के भीतर पेसा नियमावली अधिसूचित करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने कहा था कि संविधान के 73वें संशोधन और पेसा कानून के प्रावधानों के अनुरूप नियमावली तैयार कर उसे लागू किया जाना आवश्यक है।
लंबे समय से लटकी है प्रक्रिया
पेसा कानून 1996 में केंद्र सरकार द्वारा लागू किया गया था, ताकि अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों के अधिकारों और स्वशासन को सशक्त किया जा सके। लेकिन एकीकृत बिहार से झारखंड के गठन के बाद से अब तक राज्य सरकार इस कानून के तहत नियमावली अधिसूचित नहीं कर सकी है।
वर्ष 2019 और 2023 में नियमावली का ड्राफ्ट तैयार किया गया था, लेकिन वह भी मंजूरी और अधिसूचना की प्रक्रिया में ही अटका रहा। इस देरी को लेकर पहले जनहित याचिका और बाद में अवमानना याचिका दायर की गई, जिस पर अब कोर्ट लगातार निगरानी कर रहा है।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि सरकार को अब और देरी नहीं करनी चाहिए, क्योंकि यह कानून सीधे तौर पर आदिवासियों के स्वशासन और ग्रामसभा के अधिकारों से जुड़ा हुआ है।
पेसा नियमावली पर झारखंड हाईकोर्ट सख्त, तीन सप्ताह में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश












