रांची: झारखंड में पेसा कानून (PESA Act) लागू करने में हो रही देरी को लेकर हाईकोर्ट ने एक बार फिर सरकार से कठोर रुख अपनाया है। मुख्य न्यायाधीश तर्लोक सिंह चौहान और न्यायमूर्ति राजेश शंकर की पीठ ने गुरुवार को सुनवाई के दौरान राज्य सरकार से स्पष्ट किया कि वह बताए कि पेसा नियमावली को अधिसूचित करने में और कितने दिन लगेंगे। अदालत ने पूरी प्रक्रिया का ब्योरा शपथपत्र के माध्यम से पेश करने का निर्देश दिया है।
सरकार की दलील, कोर्ट की सख्ती
सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने बालू एवं लघु खनिज के आवंटन पर लगी रोक हटाने का अनुरोध किया, लेकिन कोर्ट ने इसे ठुकरा दिया और रोक को यथावत रखा। अदालत ने कहा कि पिछली बार तय समयसीमा के बावजूद नियमावली अधिसूचित नहीं की गई, इसलिए सरकार को अब ठोस जवाब देना होगा।
नियमावली: मसौदा तैयार, लेकिन अधिसूचना लंबित
सरकार की ओर से कोर्ट को बताया गया कि पंचायती राज विभाग ने पेसा नियमावली का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है। पहले मसौदा कैबिनेट को-ऑर्डिनेशन कमेटी को भेजा गया था। आपत्तियां मिलने के बाद संशोधन कर ड्राफ्ट कमेटी को भेजा गया। इसके बाद इसे फिर से राज्य कैबिनेट के पास भेजा जाएगा। लेकिन अभी तक इसकी अधिसूचना जारी नहीं हुई है।
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने 29 जुलाई 2024 को जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार को दो माह के भीतर पेसा नियमावली अधिसूचित करने का आदेश दिया था। अदालत ने कहा था कि नियमावली संविधान के 73वें संशोधन और पेसा कानून की मूल भावना के अनुरूप होनी चाहिए। इसके बावजूद सरकार समयसीमा पूरी नहीं कर सकी।
अवमानना याचिका पर सुनवाई
इस देरी के खिलाफ आदिवासी बुद्धिजीवी मंच ने हाईकोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अजीत कुमार और अधिवक्ता तान्या सिंह ने दलीलें पेश कीं। अब मामले की अगली सुनवाई 17 दिसंबर को होगी।
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996 यानी PESA को केंद्र सरकार ने आदिवासी बहुल क्षेत्रों में उनके अधिकारों की रक्षा के उद्देश्य से लागू किया था। एकीकृत बिहार से लेकर झारखंड के गठन (2000) के बाद तक, आज तक राज्य में पेसा नियमावली अधिसूचित नहीं की जा सकी। झारखंड सरकार ने 2019 और 2023 में ड्राफ्ट तैयार किया था, लेकिन वह भी लागू नहीं हो पाया।
अब जब मामला अदालत में है, पूरे राज्य की नज़र सरकार के अगले कदम पर टिकी है।
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