बालाघाट: मध्य प्रदेश के नक्सल प्रभावित जिलों में शामिल बालाघाट में लगभग 35 सालों से चला आ रहा लाल आतंक गुरुवार को पूरी तरह समाप्त हो गया, जब जिले में सक्रिय अंतिम दो कुख्यात नक्सली दीपक उर्फ सुधाकर उर्फ मंगल उइके और रोहित ने CRPF कैंप में आत्मसमर्पण कर दिया। दोनों पर कुल 37 लाख रुपये का इनाम था। इनमें हार्डकोर नक्सली दीपक पर 23 लाख और नक्सली रोहित 14 लाख रुपए का इनाम घोषित था।
सरकार द्वारा चलाए जा रहे ताबड़तोड़ एंटी-नक्सल अभियान और प्रभावी आत्मसमर्पण नीति का नतीजा है कि लगातार माओवादी सरेंडर कर रहे हैं। अब बालाघाट को आधिकारिक रूप से नक्सल-मुक्त जिला माना जा सकता है।
भूखे-प्यासे जंगल से निकले और पहुंच गए किसान के खेत
जानकारी के अनुसार, दोनों नक्सली कई दिनों से जंगल में भटक रहे थे और भूखे-प्यासे हालत में बोनदारी गांव के एक किसान के खेत पर पहुंचे। उन्होंने किसान से पहले भोजन मांगा। किसान नैनसिंह और उनके बेटे ने खाना देने के बाद उनसे सवाल किया कब तक जंगलों में भटकते रहोगे? हथियार डाल कर मुख्यधारा में लौट आओ। पहले तो दोनों नक्सली चुप रहे, लेकिन कुछ देर बाद उन्होंने आत्मसमर्पण की इच्छा जताई।
किसान-परिवार की बहादुरी: बाइक पर बिठाकर CRPF कैंप पहुंचाया
जब दीपक और रोहित ने सरेंडर का फैसला किया, तो नैनसिंह के पिता कुंवर सिंह मरकाम आगे आए। उन्होंने दोनों नक्सलियों को अपनी बाइक पर बैठाया और उन्हें सीधे कोरका स्थित CRPF कैंप लेकर पहुंचे। यहीं दोनों ने आधिकारिक रूप से आत्मसमर्पण किया। यह घटना यह साबित करती है कि स्थानीय लोगों का भरोसा अब पूरी तरह सरकार और सुरक्षा बलों पर है, और वे स्वयं भी नक्सलवाद समाप्त करने में भूमिका निभा रहे हैं।
दीपक की कहानी: 1995 में घर छोड़ा, मलाजखंड दलम का डिप्टी कमांडर बना
आत्मसमर्पण करने वाला मुख्य माओवादी दीपक उर्फ सुधाकर उर्फ मंगल उइके, बालाघाट जिले का ही निवासी है। वर्ष 1995 में वह घर छोड़कर माओवादी संगठन में शामिल हुआ। मलाजखंड दलम में डिप्टी कमांडर के तौर पर सक्रिय रहा। बाद में संगठन की डिविजनल कमेटी (DVCM) में उसकी नियुक्ति हुई। सरेंडर के दौरान उसने अपनी स्टेनगन भी सुरक्षा बलों को सौंप दी। रोहित भी लंबे समय से संगठन से जुड़ा था और सुरक्षा एजेंसियों की वांछित सूची में शामिल था।
35 साल पुराना लाल आतंक अब इतिहास
बालाघाट में नक्सलवाद की शुरुआत राशिमेटा गांव से हुई थी। तीन दशकों से अधिक समय तक यह इलाका माओवादी गतिविधियों का केंद्र बना रहा। लेकिन CRPF, पुलिस और स्थानीय प्रशासन के संयुक्त अभियानों ने धीरे-धीरे पूरे जिले से नक्सलियों का सफाया कर दिया। आखिरकार, कोरका कैंप में हुए इस अंतिम आत्मसमर्पण ने जिले पर लगा लाल आतंक का कलंक हमेशा के लिए मिटा दिया।
अब विकास की नई राह
प्रशासन ने कहा है कि नक्सल मुक्त होने के बाद बालाघाट में अब तेजी से सड़क, शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास के कार्य शुरू किए जाएंगे, ताकि लोग पूरी तरह मुख्यधारा में जुड़ सकें और जंगल क्षेत्रों में शांति कायम रह सके।
नक्सलवाद से मुक्त हुआ बालाघाट, 37 लाख के 2 इनामी नक्सलियों का सरेंडर; किसान की सलाह पर डाल दिए हथियार













