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जिस घर में नित्य हरि कीर्तन होता है, वहाँ कलियुग प्रवेश नहीं कर सकता :- जीयर स्वामी

On: September 12, 2023 4:56 AM
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शुभम जायसवाल

श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):- पूज्य संत श्री श्री 1008 श्री लक्ष्मी प्रपन्न जियर स्वामी जी महाराज ने कहा कि जिसका जैसा भाव होता है, उसको वैसा ही फल मिलता है। सफेद कपड़े में थोड़ी भी स्याही का दाग पड़ने से वह दाग बहुत स्पष्ट दीखता है, उसी प्रकार पवित्र मनुष्यों का थोड़ा सा दोष भी अधिक दिखलायी देता है। जिस घर में नित्य हरि कीर्तन होता है, वहाँ कलियुग प्रवेश नहीं कर सकता। जब भगवान के आश्रित हो रहे हो, तो यह न हुआ, वह न हुआ आदि चिन्ताओं में मत पड़ो। विश्वासी भक्त आजीवन भगवान का दर्शन न मिलकर भी भगवान को नहीं छोड़ता। संसार कच्चा कुआँ है। इसके किनारे पर खूब सावधानी से खड़े होना चाहिये। तनिक असावधान होते ही कुएँ में गिर पड़ोगे, तब निकलना कठिन हो जायेगा। संसारी! तुम संसार का सब काम करो; किन्तु मन हर घड़ी संसार से विमुख रखो। कामिनी और कञ्चन ही माया है।

इनके आकर्षण में पड़ने पर जीवकी सब स्वाधीनता चली जाती हैं। इनके मोह के कारण ही जीव भव-बन्धन में पड़ जाता है। संसार में रहने से सुख-दुःख रहेगा ही। ईश्वर की बात अलग है और उसके चरण-कमल में मन लगाना है। दुःख के हाथ से छुटकारा पाने का और कोई उपाय है नहीं। साधु-संग करने से जीव का मायारूपी नशा उतर जाता है। भगवान् का भजन ही जीवन का सुफल है। सुगम मार्ग से चलो और सुखसे राम-कृष्ण-हरिनाम लेते चलो। वैकुण्ठ का यही अच्छा है।और समीप का रास्ता।

जिस सङ्गसे भगवत्प्रेम उदय होता है। वही सङ्ग सङ्ग है, बाकी तो नरकनिवास संतोंके द्वार पर श्वान होकर पड़े रहना भी बड़ा भाग्य है, क्योंकि वहाँ प्रसाद मिलता है और भगवान का गुण गान सुनने में आता है। कीर्तन का अधिकार सबको है, इसमें वर्ण या आश्रमका भेद-भाव नहीं। कीर्तनसे शरीर हरिरूप हो जाता है। प्रेमछन्द से नाचोडोलो। इससे देहभाव मिट जायगा। हरिकीर्तन में भगवान भक्त और नामका त्रिवेणी संगम होता है। प्रेमी भक्त प्रेम से जहाँ हरिगुण-गान करते हैं, भगवान वहाँ रहते ही हैं। तो कीर्तन से संसार का दुःख दूर होता है। कीर्तन संसार के चारों ओर आनन्द की प्राचीर खड़ी कर देता है और सारा संसार महा सुख से भर जाता है। कीर्तन से विश्व धवलित होता और वैकुण्ठ पृथ्वी पर आता है।

भगवान के वचन हैं मेरे भक्त जहाँ प्रेमसे मेरा नामसंकीर्तन करते हैं, वहाँ तो मैं रहता ही हूँ — मैं और कहीं न मिलूँ तो मुझे वहीं ढूँढ़ो। तेरा कीर्तन छोड़ मैं और कोई काम न करूँगा। लज्जा छोड़कर तेरे रंगमें नाचूँगा। कीर्तन का विक्रय महान् मूर्खता है। वाणी ऐसी निकले कि हरि की मूर्ति और हरिका प्रेम चित्तमें बैठ जाय। वैराग्य के साधन बतावे, भक्ति और प्रेम के सिवा अन्य व्यर्थ की बातें कथा में न कहे। कीर्तन करते हुए हृदय खोलकर कीर्तन करे, कुछ छिपाकर- चुराकर न रखे। कीर्तन करने खड़े होकर जो कोई अपनी देह चुरावेगा, उसके बराबर मूर्ख और कौन हो सकता है। स्वाँग से हृदयस्थ नारायण नहीं ठगे जाते। निर्मल भाव ही साधन-वनका बसन्त है। भगवान भावुकों के हाथ पर दिखायी देते हैं, पर जो अपने को बुद्धिमान मानते हैं, वह मर जाते हैं तो भी भगवान का पता नहीं पाते। ज्ञान के नेत्र खुलने से ग्रन्थ समझ में आता है, उसका रहस्य खुलता है, पर भावके बिना ज्ञान अपना नहीं होता।

भावके नेत्र जहाँ खुले वहीं सारा विश्व कुछ निराला ही दिखायी देने लगता है। भगवान से मिलन होने के लिये भाव आवश्यक है। चित्त यदि भगवच्चिन्तन में रँग जाय तो वह चित्त ही चैतन्य हो जाता है, पर चित्त शुद्ध भावसे रँग जाय तब । जैसा भाव वैसा फल। भगवान्‌ के सामने और कोई बल नहीं चलता। पत्थरकी ही सीढ़ी और पत्थरकी ही देव-प्रतिमा, परंतु एकपर हम पैर रखते हैं और दूसरेकी पूजा करते हैं। भाव ही भगवान् हैं। गङ्गा-जल जल नहीं है, बड़-पीपल वृक्ष नहीं हैं, तुलसी और रुद्राक्ष माला नहीं है, ये सब भगवान्‌के श्रेष्ठ शरीर हैं। भाव न हो तो साधनका कोई विशेष मूल्य नहीं।

Satyam Jaiswal

सत्यम जायसवाल एक भारतीय पत्रकार हैं, जो झारखंड राज्य के रांची शहर में स्थित "झारखंड वार्ता" नामक मीडिया कंपनी के मालिक हैं। उनके पास प्रबंधन, सार्वजनिक बोलचाल, और कंटेंट क्रिएशन में लगभक एक दशक का अनुभव है। उन्होंने एपीजे इंस्टीट्यूट ऑफ मास कम्युनिकेशन से शिक्षा प्राप्त की है और विभिन्न कंपनियों के लिए वीडियो प्रोड्यूसर, एडिटर, और डायरेक्टर के रूप में कार्य किया है। जिसके बाद उन्होंने झारखंड वार्ता की शुरुआत की थी। "झारखंड वार्ता" झारखंड राज्य से संबंधित समाचार और जानकारी प्रदान करती है, जो राज्य के नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण है।

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