मुंबई: नागपुर की सेंट्रल जेल से बुधवार को गैंगस्टर से नेता बने अरुण गवली रिहा हो गए। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें 2007 में हुई हत्या के मामले में जमानत दे दी। गवली 17 साल से ज़्यादा समय से जेल में थे और उनकी अपील फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में लंबित है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति एन. कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि 76 वर्षीय गवली ने लंबे समय तक कारावास झेला है। ऐसे में अदालत ने उन्हें निचली अदालत द्वारा लगाई गई शर्तों के अधीन जमानत देने का आदेश दिया।
हत्या का मामला
गवली पर मुंबई के शिवसेना पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की हत्या का आरोप था। इस मामले में महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) के तहत कार्रवाई की गई थी। अगस्त 2012 में मुंबई की एक सत्र अदालत ने उन्हें आजीवन कारावास और 17 लाख रुपये जुर्माने की सजा सुनाई थी।
बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने 9 दिसंबर 2019 को निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। इसके खिलाफ गवली ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी।
जेल से रिहाई और स्वागत
नागपुर सेंट्रल जेल के अधिकारियों के अनुसार, सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद गवली बुधवार दोपहर करीब 12:30 बजे जेल से बाहर निकले। बाहर उनका परिवार, वकील और समर्थक मौजूद थे, जिन्होंने गर्मजोशी से उनका स्वागत किया।
राजनीति और दगड़ी चॉल से पहचान
अरुण गवली को भायखला के दगड़ी चॉल से पहचान मिली, जहां से उन्होंने अपना गैंगस्टर सफर शुरू किया और बाद में राजनीति में कदम रखा। वे अखिल भारतीय सेना के संस्थापक हैं और 2004 से 2009 तक मुंबई के चिंचपोकली विधानसभा क्षेत्र से विधायक भी रहे।
अरुण गवली का नाम 1980 और 90 के दशक में अंडरवर्ल्ड की दुनिया में तेजी से उभरा। दगड़ी चॉल उनका गढ़ माना जाता था, जहां से उन्होंने अपना नेटवर्क खड़ा किया। अंडरवर्ल्ड से राजनीति तक का उनका सफर हमेशा विवादों में रहा।
गैंगस्टर अरुण गवली 17 साल बाद जेल से रिहा, की थी शिवसेना पार्षद की हत्या

