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नेपाल की नई कुमारी: ढाई साल की आर्यतारा शाक्य बनीं ‘जीवित देवी’, कठिन परीक्षा के बाद हुआ चयन; जानें क्या है नेपाल की यह परंपरा

On: October 1, 2025 8:55 PM
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काठमांडू: नेपाल की राजधानी काठमांडू में मंगलवार (30 सितंबर 2025) को एक ऐतिहासिक और भावुक क्षण देखने को मिला। महज दो साल आठ महीने की आर्यतारा शाक्य को देश की नई कुमारी यानी ‘जीवित देवी’ के रूप में चुना गया। परंपरा के अनुसार, उन्हें उनके घर से भव्य जुलूस के साथ तलेजु भवानी मंदिर और फिर काठमांडू के ऐतिहासिक कुमारी घर में विराजमान कराया गया। इस मौके पर हजारों श्रद्धालु देवी की एक झलक पाने के लिए उमड़े।

आर्यतारा ने पूर्व कुमारी तृष्णा शाक्य का स्थान लिया है, जो साल 2017 में जीवित देवी चुनी गई थीं और हाल ही में 12 वर्ष की आयु में पहली माहवारी के बाद परंपरा अनुसार ‘देवी’ का रूप त्यागकर सामान्य जीवन में लौट आईं।

परिवार का गर्व, बेटी का देवी बनना सम्मान की बात

नई कुमारी का पूरा नाम आर्यतारा शाक्य है। वे काठमांडू की मूल निवासी हैं और नेवार समुदाय के शाक्य वंश से ताल्लुक रखती हैं। उनके पिता का नाम अनंत शाक्य, माता का नाम प्रतिष्ठा शाक्य है, जबकि उनकी बड़ी बहन का नाम पारमिता शाक्य है। परंपरा के मुताबिक, जब कोई बालिका कुमारी चुनी जाती है तो उसे परिवार से अलग मंदिर में रहना पड़ता है। माता-पिता केवल साल में 13 अवसरों पर सार्वजनिक आयोजनों के दौरान ही उनसे मिल सकते हैं।

बेटी को देवी का रूप मिलना परिवार के लिए बड़े सम्मान की बात मानी जाती है क्योंकि इससे परिवार की सामाजिक प्रतिष्ठा भी बढ़ती है।

कैसे चुनी जाती है जीवित देवी?

नेपाल की इस परंपरा में कुमारी केवल नेवार समुदाय के शाक्य वंश से चुनी जाती हैं और यह जरूरी होता है कि वे काठमांडू की मूल निवासी हों।

कुमारी बनने के लिए बच्ची में 32 दैवीय गुण होना आवश्यक माना जाता है। इनमें से 12 प्रमुख मानदंडों पर बच्ची की परीक्षा ली जाती है।

शारीरिक मानदंड: चेहरा, आँखें, दाँत व त्वचा पर कोई दाग-धब्बा या घाव का निशान न हो।

व्यवहारिक व आध्यात्मिक गुण: निडर, शांत स्वभाव और दैवीय आभा का होना।

परीक्षा: पारंपरिक अनुष्ठानों के साथ साहसिक परीक्षा भी होती है, जिसमें बच्ची को बलि दिए गए भैंसों और रक्त में नाचते नकाबपोश पुरुषों के बीच ले जाया जाता है। यदि बच्ची भयभीत होती है तो उसे अयोग्य मान लिया जाता है।


आमतौर पर 2 से 4 वर्ष की बच्चियों का चयन कुमारी के रूप में किया जाता है। देवी बनने के बाद बालिका को हमेशा लाल वस्त्र, विशेष केश विन्यास और माथे पर तीसरी आँख धारण करनी होती है।

हिंदू और बौद्ध दोनों के लिए आस्था का केंद्र

कुमारी परंपरा करीब 500–600 साल पुरानी है और मल्ल राजाओं के समय से चली आ रही है। कुमारी को तलेजु देवी का अवतार माना जाता है और उनकी पूजा हिंदू व बौद्ध दोनों धर्मों के लोग करते हैं।

कुमारी तब तक देवी मानी जाती हैं जब तक वे किशोरावस्था में प्रवेश नहीं करतीं। मासिक धर्म शुरू होने के बाद उन्हें ‘सामान्य’ मनुष्य मानकर सम्मानपूर्वक घर भेज दिया जाता है।

परंपरा में आधुनिक बदलाव

हाल के वर्षों में इस परंपरा में कुछ बदलाव भी हुए हैं। अब जीवित देवी को निजी शिक्षा का अधिकार, टीवी देखने और कुछ आधुनिक सुविधाएँ उपलब्ध कराई गई हैं। साथ ही नेपाल सरकार ने सेवानिवृत्त कुमारियों को लगभग 110 डॉलर (करीब 9,765 रुपये) मासिक पेंशन देने की व्यवस्था भी शुरू की है, जो सरकारी न्यूनतम मजदूरी से थोड़ी अधिक है।

पूर्व कुमारी को विदाई

मंगलवार को ही 11 वर्षीय तृष्णा शाक्य को जीवित देवी के रूप से विदा किया गया। भव्य यात्रा निकालकर उन्हें परिवार के पास घर लौटाया गया। अब आर्यतारा शाक्य इस दिव्य परंपरा की नई संरक्षिका बन चुकी हैं।

Vishwajeet

मेरा नाम विश्वजीत कुमार है। मैं वर्तमान में झारखंड वार्ता (समाचार संस्था) में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। समाचार लेखन, फीचर स्टोरी और डिजिटल कंटेंट तैयार करने में मेरी विशेष रुचि है। सटीक, सरल और प्रभावी भाषा में जानकारी प्रस्तुत करना मेरी ताकत है। समाज, राजनीति, खेल और समसामयिक मुद्दों पर लेखन मेरा पसंदीदा क्षेत्र है। मैं हमेशा तथ्यों पर आधारित और पाठकों के लिए उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूं। नए विषयों को सीखना और उन्हें रचनात्मक अंदाज में पेश करना मेरी कार्यशैली है। पत्रकारिता के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करता हूं।

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