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Saturday, June 3, 2023

झारखंड : पहले चरण के चुनाव से ही बीजेपी की तो…. और महागठबंधन की भी….

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ऐतिहासिक होगी इस बार का चुनाव और सरकार बनाने की कवायद

सतीश सिन्हा

जमशेदपुर: इस बार झारखंड का विधानसभा चुनाव एक ऐतिहासिक चुनाव के रूप में साबित होने वाला है इसका मुख्य वजह यह बताया जा रहा है कि चुनाव की तिथि घोषणा होने के पहले जिस तरह क्या सत्ता पक्ष और क्या विपक्ष दोनों अपने को मजबूत होने का दंभ भर रहे थे लेकिन चुनाव की तिथि आने के बाद और कुछ पहले से ही जिस तरह विधायक और पार्टी के नेता अपनी-अपनी पार्टी छोड़ अपने प्रतिद्वंदी पार्टी में भागे दौड़े टिकट के लिए यह झारखंड की भोली-भाली जनता को समझ आ रहा है ऐसा नहीं कि केवल सत्तापक्ष से में ही भगदड़ मची विपक्ष में भी यही आलम रहा है और आज स्थिति यह है कि जिस पार्टी को छोड़ कर गया उसी पार्टी से चुनौती मिल रही है इसके कई उदाहरण है सबसे सटीक उदाहरण के तौर पर सरसरिया तौर पर एक निगाह डाला जाए तो बहरागोड़ा विधानसभा का ही उदाहरण ले लेते हैं जहां भाजपा और झामुमो ने एक्सचेंज किया है भाजपा से समीर महंती झामुमो अपने पुराने पार्टी में चले गए हैं जबकि झामुमो के विधायक कुणाल सारंगी भाजपा में चले गए दोनों जमीन से जुड़े हुए नेता बताए जाते हैं अब ऐसी जगहों पर जनता क्या निर्णय देगी यह तो वक्त बताएगा वैसे ऐसे ही पूरे झारखंड मे नेताओं की इस पार्टी से उस पार्टी में जाना अब तक आम है लेकिन इस बार जिस तरह भेड़ बकरियां इधर-उधर जाती है ठीक वही स्थिति अभी तक कायम है

ऐसे में झारखंड में पिछले कई वर्षों से बीजेपी की जो तूती बोल रही थी वह इस बार झारखंड के पहले चरण के चुनाव में बीजेपी की तो………… अग्निपरीक्षा बन गई है. साथ ही विपक्षी महागठबंधन की भी तो अग्नि परीक्षा ही है क्योंकि चुनाव के पहले जिस तरह भगदड़ मची हुई है चुनाव के सत्ता के लिए वैसे ही भाग दौड़ मचेगी ऐसी स्थिति में अपने विधायकों को और कार्यकर्ताओं को समेट कर रखना भारी चुनौती होगी जो दल ज्यादा सीटें लेकर सरकार बनाने के लिए आगे बढ़ेगा विधायक नेता कार्यकर्ता उसी को गले लगा लेंगे.

नेताओं ने गिराया अपना मोरल

सरसरी तौर पर राजनीतिक घटनाओं पर नजर डाला जाए तो आज की स्थिति काफी भयावह लग रही है क्योंकि महाराष्ट्र जैसे राज्य में चुनाव परिणाम आने के लगभग 1 महीने बीतने को है लेकिन अभी तक स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई है वहीं झारखंड की घटनाओं पर भी एक नजर डालें तो यहां की भी स्थिति काफी दयनीय हो गई है नेताओं ने अपना मोरल गिरा दिया है आइए राजनीतिक एक नजर सरसरी तौर पर डालें

झारखंड विधानसभा चुनाव में एनडीए और महागठबंधन दोनों की गांठ खुल गई है। चुनाव की घंटी बजने से पहले और चुनावी रण में उतरने तक एनडीए और महागठबंधन के खेमे में चल रही तैयारियों से दोनो गठबंधन बहुत मजबूती और पूरे दमखम से एक दूसरे को चुनौती देंगे लेकिन पहले चरण के नामांकन में ही दोनों पक्षों की पतलून ढीली हो गई।एनडीए से अलग हुआ है उसका सबसे पुराना सहयोगी आजसू ही उसके समक्ष चुनौती बनकर खड़ा है वहीं दूसरी ओर बिहार में एनडीएका प्रमुख घटक दल जदयू और लोजपा ने भी झारखंड में भाजपा का साथ छोड़ दिया है झारखंड में एनडीए नहीं भाजपा अकेले दम पर चुनाव लड़ रही है।

भाजपा के सबसे पुराने और गठबंधन के प्रति समर्पित सहयोगी आजसू भाजपा के खिलाफ प्रहार जारी रखा है सीटों के तालमेल को लेकर बात बिगड़ी और गठबंधन टूट गया। गठबंधन उस वक्त टूटा और पहले चरण के चुनाव के लिये भाजपा को पलामू जिले की हुसैनाबाद सीट पर अपना प्रत्याशी घोषित करने का मौका ही नहीं मिला . मजबूरन भाजपा को इस सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी विनोद सिंह को अपना समर्थन देना मजबूरी हो गई लेकिन राहत की बात यह है कि विनोद सिंह भाजपा के समर्पित नेता हैं। भाजपा ने यह सीट आजसू के कोटे के लिये छोड़ रखी थी। लेकिन गठबंधन टूटने के बाद दोनो दल अब आमने-सामने हैं।

महागठबंधन में भी दरार

दूसरी ओर महागठबंधन में भी गठबंधन भी मजबूत नहीं है।प्रदेश में झामुमो, कांग्रेस और राजद के बीच गठबंधन है। गत लोकसभाचुनाव में महागठबंधन का मजबूत पार्टनर झारखंड विकास मोर्चा गठबंधन से बाहर है। झामुमो,कांग्रेस और राजद तीनों पार्टनर आज एक साथ जरूर हैं लेकिन दिखाने के कुछ और दांत और खाने के कुछ और दांत वाली कहावत यहां सटीक बैठती है क्योंकि गठबंधन की घोषणा के दौरान राजद नेता तेजस्वी यादव की गैरहाजिरी इसके साफ संकेत हैं। वहीं वामपंथी भी अपनी अलग राह पकड़े हुए हैं ऐसे में झारखंड की स्थिति आकलन लगा पाना मुश्किल किसकी सरकार बनेगी और महाराष्ट्र की तरह शिवसेना जो एनसीपी और कांग्रेस का कट्टर विरोधी रहा आज उनके साथ है जबकि बीजेपी से वर्षों की यारी तोड़ चुका है जानकार ठीक यही स्थिति आने की संभावना झारखंड में भी है।

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