रांची: झारखंड विधानसभा नियुक्ति घोटाले में एक बार फिर बड़ा मोड़ आया है। केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई), रांची ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर इस घोटाले की जांच जारी रखने की अनुमति मांगी है। हालांकि शीर्ष अदालत ने फिलहाल इस याचिका पर सुनवाई की कोई तिथि निर्धारित नहीं की है।
दरअसल, झारखंड हाईकोर्ट ने 23 अक्टूबर 2023 को सीबीआई को विधानसभा नियुक्तियों में अनियमितताओं की जांच का आदेश दिया था। इसके खिलाफ विधानसभा सचिवालय ने सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर की थी, जिसके बाद उच्चतम न्यायालय ने फिलहाल जांच पर रोक लगा दी थी।
अब सीबीआई ने अपनी हस्तक्षेप याचिका में 23 सितंबर 2024 को झारखंड हाईकोर्ट द्वारा दिए गए स्टे ऑर्डर को हटाने की मांग की है, ताकि जांच को आगे बढ़ाया जा सके।
घोटाले की जड़ें 2003 से जुड़ीं
झारखंड विधानसभा गठन के तुरंत बाद 2003 से ही नियुक्तियों में घोर अनियमितताओं की शुरुआत हुई थी। नियमों को ताक पर रखकर सैकड़ों लोगों को अवैध रूप से नियुक्त किया गया।
2005 से 2007 के बीच तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के कार्यकाल में 274 नियुक्तियां की गईं, जिनमें करीब 70 प्रतिशत उम्मीदवार एक ही जिले से थे। वहीं, पूर्व स्पीकर आलमगीर आलम के कार्यकाल में 324 अवैध नियुक्तियां होने का आरोप है।
शशांक शेखर भोक्ता के समय में भी मनमाने प्रोन्नति और नियुक्तियों के आरोप लगे। इन मामलों में योग्यता की बजाय सिफारिश, पक्षपात और कथित रिश्वतखोरी का बोलबाला रहा।
वायरल सीडी बनी सबूत, तीन आयोगों ने की जांच
इन अनियमितताओं से जुड़ी एक बातचीत की सीडी वायरल हुई थी, जिसे विधायक सरयू राय ने विधानसभा में उठाया। इसके बाद जांच की मांग तेज हुई और अब तक तीन जांच आयोग गठित किए जा चुके हैं।
पहला आयोग: जस्टिस लोकनाथ आयोग
दूसरा आयोग: 2012 में तत्कालीन राज्यपाल सैयद अहमद द्वारा गठित जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद आयोग
तीसरा आयोग: 2022 में गठित एसजे मुखोपाध्याय आयोग
विक्रमादित्य आयोग ने 2018 में अपनी रिपोर्ट तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू को सौंपी थी, जिसमें सीबीआई जांच की सिफारिश की गई थी। रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ था कि कुछ अभ्यर्थियों की उत्तर पुस्तिकाएं खाली होने के बावजूद उन्हें पास घोषित कर दिया गया।
भर्ती प्रक्रिया में अजीबोगरीब हेरफेर
जांच रिपोर्ट में बताया गया कि नियुक्ति परीक्षाओं में खुला खेल हुआ। एक उम्मीदवार ने अंग्रेजी शॉर्टहैंड की परीक्षा में खाली कॉपी जमा की, फिर भी उसे चयन सूची में जगह मिल गई। कई उम्मीदवारों को हिंदी शॉर्टहैंड में शून्य अंक मिले, फिर भी उन्हें स्टेनोग्राफर बना दिया गया। ड्राइवर भर्ती में तो चार ऐसे लोगों को नियुक्त कर लिया गया जो परीक्षा में बैठे ही नहीं थे, जबकि 14 असफल अभ्यर्थियों को भी नौकरी दे दी गई।
नेताओं के करीबी बने लाभार्थी
आयोग की रिपोर्टों में यह भी कहा गया कि नियुक्तियों में सभी दलों के नेताओं के करीबी लोगों को तरजीह दी गई। राजनीतिक रसूख ने योग्यता को दरकिनार कर दिया।
वर्तमान में इस घोटाले के मुख्य आरोपितों में शामिल पूर्व विधानसभा अध्यक्ष आलमगीर आलम रांची के होटवार जेल में बंद हैं। वे मनी लॉन्ड्रिंग के मामले में ईडी द्वारा गिरफ्तार किए गए थे, जिसके बाद उन्हें मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा।
अब सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर टिकी निगाहें
सीबीआई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की तिथि तय होते ही इस बहुचर्चित घोटाले की दिशा तय होगी। यदि कोर्ट जांच की अनुमति देता है, तो 20 साल पुराने इस मामले में कई चौंकाने वाले खुलासे सामने आ सकते हैं।
झारखंड विधानसभा नियुक्ति घोटाला: सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से जांच जारी रखने की मांगी अनुमति












