वि०स० चुनाव के पहले हेमंत सरकार को घेरने का बड़ा मौका भाजपा को मिला!

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रांची: झारखंड में विधानसभा चुनाव के पूर्व भारतीय जनता पार्टी को हेमंत सोरेन की सरकार को घेरने का बहुत बड़ा मौका मिल गया है। झारखंड हाई कोर्ट ने विधानसभा में हुई नियुक्ति में गड़बड़ी के आरोपों की जांच सीबीआई को सौंप दी है।नियुक्ति में बड़े स्तर पर कथित रूप से बड़ी गड़बड़ी का आरोप लगा है।ऐसे में हाई कोर्ट के इस आदेश को राज्य सरकार के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. माना जा रहा है कि चुनाव प्रचार में विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बना सकता है।

झारखंड हाई कोर्ट ने सोमवार को बड़ा फैसला दिया।अदालत ने राज्य विधानसभा में हुई नियुक्ति घोटाला की जांच सीबीआई को सौंप दी है।

आरोप है कि झारखंड विधानसभा में नियमों का उल्लंघन करके बड़े पैमाने पर नियुक्ति की गई थी।इस मामले को लेकर शिव शंकर शर्मा की ओर से हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई थी, जिस पर सुनवाई पूरी करते हुए अदालत ने 20 जून को फैसला सुरक्षित रख लिया था.

सोमवार को झारखंड हाई कोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए झारखंड विधानसभा में नियमों का उल्लंघन करके की गई नियुक्ति मामले की जांच सीबीआई से कराने का आदेश दे दिया. झारखंड में नवंबर में विधानसभा चुनाव भी होने हैं.

एक सदस्यीय आयोग ने सौंपी थी जांच रिपोर्ट

कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान प्रार्थी और विधानसभा दोनों पक्षों को सुना, इसके साथ ही कोर्ट ने जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की एक सदस्यीय आयोग की ओर से तैयार जांच रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद और सभी पक्षों को सुनने के बाद सीबीआई जांच का फैसला सुनाया.

अलग-अलग नियुक्तियों से जुड़ा है मामला

यह पूरा मामला झारखंड विधानसभा में अलग-अलग समय पर हुई नियुक्तियों से जुड़ा हुआ है. राज्य के पहले विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी के कार्यकाल में भई ढाई सौ से अधिक लोगों की नियुक्ति हुई थी. इसके बाद आलमगीर आलम के कार्यकाल में भी 300 से अधिक लोगों को नौकरी पर रखा गया. आरोप है इन्ही सब नियुक्तियों में नियमों का उल्लंघन करके लोगों को नौकरी दी गई है.

2018 में आयोग ने रिपोर्ट सौंपी थी

मामला सामने आने के बाद सेवानिवृत्त न्यायाधीश से मामले की जांच कराई गई. इसके बाद रिटायर जस्टिस विक्रमादित्य प्रसाद की सदस्यीय आयोग ने नियुक्ति की जांच की और 2018 में अपनी रिपोर्ट को तत्कालीन राज्यपाल को सौंपी दी थी. बताया जाता है कि इसके बाद तत्कालीन राज्यपाल ने आगे की कार्रवाई के लिए रिपोर्ट को विधानसभा अध्यक्ष के पास भेज दिया था.

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