सुख पूर्वक हरि का कीर्तन करो, हर्ष के साथ हरि के गुण गाओ : जीयर स्वामी
संत तुझे जगाकर पार उतर जायँगे, तू भी पार उतरना चाहे।भक्त समागम से सब भाव हरि के हो जाते हैं, सब काम बिना बताये हरि ही करते हैं। हृदयसम्पुट में समाये रहते हैं और बाहर छोटी-सी मूर्ति बनकर सामने आते हैं।श्रीहरि सब भूतों में रम रहे हैं, जल, थल, काठ, पत्थर सबमें विराज रहे हैं; पृथ्वी, जल, अग्नि, समीर, गगन-इन पञ्च महाभूतोंको और स्थावर-जङ्गम सब पदार्थोंको व्यापे हुए हैं। उनके सिवा ब्रह्माण्ड में दूसरी कोई वस्तु ही नहीं, यही शास्त्र – सिद्धान्त है और यही संतोंका अनुभव है। मनुष्य किसी भी वर्ण या जाति में पैदा हुआ हो वह यदि सदाचारी और भगवद्भक्त है तो वही सबके लिये वन्दनीय और श्रेष्ठ है। कसौटी जाति नहीं है, कसौटी है साधुता-भगवद्भक्ति।
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