शीतकालीन अवकाश से पहले स्कूलों में लगी अंतिम क्लास, पटमदा स्थित एस एस +2 उच्च विद्यालय के बच्चे कहानियों और रंगकर्म की दुनिया से हुए रूबरू
क्षेत्रीय कहानियां भी बन सकती है दुनियाभर की प्रेरणा, लेखन और रंगकर्म बना सकती है नई राह, इसमें उम्र भी नहीं आती आड़े
पटमदा / जमशेदपुर : जिले के विद्यालयों में शनिवार को 2025 की आखिरी क्लास लगी, फिर विद्यालय शीतकालीन अवकाश के लिए बंद हो गए। छुट्टियों का सकारात्मक उपयोग बच्चे किताबें और कहानियां पढ़कर कर सकते है, इसी संदेश के साथ भारतीय जन नाट्य संघ से जुड़े लिटिल इप्टा के नौ बाल रंगकर्मी पटमदा के एस एस +2 उच्च विद्यालय पहुंचे। अपनी उम्र के बच्चों को बाल कलाकार के रूप में देखने विद्यालय के सैकड़ों बच्चे विद्यालय प्रागंण में ही स्थित अम्बेडकर भवन के पास जुटे हुए थे।

नन्हें बाल रंगकर्मी साहिल, दिव्या, नम्रता, गुंजन, अभिषेक, सुरभि, सुजल, काव्या और श्रवण की टोली ने शुरुआत में संथाली लोकगीत सुनाकर कार्यक्रम की शुरुआत की, फिर हिंदी भाषा के जनवादी गीतों के माध्यम से समाज में बराबरी और समानता का सन्देश दिया।

बच्चों के गीतों को सुनकर सभी मंत्रमुग्ध थे, उसके बाद बच्चों ने अफ्रीकी लोककथा “लोहे का आदमी” का मंचन किया, जिसका हिंदी रूपांतरण मशहूर कवि मंगलेश डबराल जी ने किया है। अफ्रीकी लोककथा में राजा ने लुहारन को एक ऐसा आदमी बनाने का आदेश दिया, जो जिंदा आदमी की तरह बोलता हो, चलता फिरता हो।

राजा के अटपटे से आदेश को भी भला कौन मना कर सकता था, जान जाने का डर था, इस हाल में आगे क्या हुआ, लुहारन की जान बची या नहीं… 25 मिनट के नाटक ने असम्भव से दिखने वाले लक्ष्य को भी हासिल करने के रास्ते तलाशने हेतु सोचने की प्रेरणा दी।

बाल रंग कर्मियों के बेमिसाल प्रदर्शन की बच्चों बड़ों ने जोरदार तालियां बजाकर प्रशंसा की। वही विद्यालय के प्रधानाध्यापक डॉ मिथिलेश कुमार ने कलाकारों को गुलदस्ता और इनाम में नकद राशि देकर पुरस्कृत किया। मौके पर इप्टा झारखंड की महासचिव अर्पिता, सामाजिक संस्था निश्चय फाउंडेशन के संस्थापक तरुण कुमार, जेंडर कार्यकर्ता सोमाय लोहार और विद्यालय के शिक्षक शिक्षिकाये प्रमुख रूप से उपस्थित थे।
कार्यक्रम के माध्यम से बच्चों को यह सीख देने की कोशिश हुई कि हम भले ही किसी गांव में, किसी भूगोल में रहते रहे हो, लेकिन दुनिया भर के अलग अलग क्षेत्र के भाषा की कहानियों के माध्यम से हम काफी कुछ सीख सकते है। और अपनी बात को कहने का बेहतरीन जरिया लेखन और रंगकर्म भी होता है, इसमें हमारी उम्र भी आड़े नहीं आती, हम बड़े हो, छोटे बच्चे हो, सीख सकते है, और अपनी बात देश दुनिया तक पहुंचा सकते है।














