छल-छद्म और पाखंड से बड़ा आदमी बनने वाला बहुत दिनों तक टिक नहीं पाता :- जीयर स्वामी
श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– देश के महान संत श्री श्री 1008 श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के दौरान कहा कि राजा एवं प्रजा दोनों भोगते हैं एक-दूसरे के कर्मों का परिणाम मनुवादिता के सिद्धान्त से ही संचालित होती है मानवता मन नहीं, बुद्धि और विवेक से लें कोई निर्णय मानव जीवन पर अन्न और संग का गहरा प्रभाव होता है। हम जैसा अन्न ग्रहण करते हैं। वैसा मन बनता है। जैसी संगति करते हैं, वैसा आचरण होता है। इसलिए दुष्टों का अन्न और संग दोनों विनाशकारी होता है।
भीष्म ने मुस्कुराने का राज पूछा। द्रौपदी ने कहा कि आज आप उपदेश दे रहे हैं कि ‘अन्याय नहीं करना चाहिए। अन्यायी का साथ नहीं देना चाहिए और अन्याय होते देखना नहीं चाहिए। चीर-हरण के वक्त आपकी यह नीति और धर्म कहाँ थे?’ भीष्म ने कहा कि उस वक्त अन्न और संग के दोष का मुझ पर प्रभाव था। मनुष्य अर्थ (वित्त) का दास होता है। अर्थ किसी का दास नहीं होता। उन दिनों में दुर्योधन के अर्थ से पल रहा था। गलत लोगों का अन्न और संग ग्रहण नहीं करना चाहिए। धीर और वीर पुरूष को भाग्यवादी नहीं, कर्मवादी हो।
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