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मंदिर में प्रवेश से इनकार करने वाले ईसाई सैन्य अधिकारी की बर्खास्तगी बरकरार, सुप्रीम कोर्ट ने कहा- भारतीय सेना में अनुशासन सर्वोपरि

On: November 25, 2025 10:05 PM
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नई दिल्ली: भारतीय सेना के एक ईसाई अधिकारी द्वारा धार्मिक आधार पर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करने से इनकार करने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। शीर्ष अदालत ने मंगलवार को लेफ्टिनेंट सैमुअल कमलेसन की बर्खास्तगी को सही ठहराते हुए कहा कि सेना एक धर्मनिरपेक्ष और अत्यंत अनुशासित संस्था है, जहां व्यक्तिगत आस्थाओं को सैन्य आदेशों से ऊपर नहीं रखा जा सकता।

2017 में कमीशन, 2021 में बिना पेंशन-ग्रेच्युटी बर्खास्त

यह मामला 2017 का है। अफसर सैमुअल कमलेसन 3rd कैवेलरी रेजिमेंट में लेफ्टिनेंट बने। उनकी यूनिट में मंदिर और गुरुद्वारा था, जहां हर हफ्ते धार्मिक परेड होती थी। वे अपने सैनिकों के साथ वहां तक जाते थे, लेकिन मंदिर के सबसे अंदर वाले हिस्से में पूजा, हवन या आरती के दौरान जाने से मना करते थे। उनका कहना था कि उनकी ईसाई मान्यता इसकी अनुमति नहीं देती और उनसे किसी देवी-देवता की पूजा करवाना गलत है। अफसर का आरोप था कि एक कमांडेंट लगातार उन पर दबाव डालता था और इसी वजह से मामला बढ़ा। दूसरी ओर सेना ने कहा कि उन्होंने कई बार समझाने के बाद भी रेजिमेंटल परेड में पूरी तरह हिस्सा नहीं लिया, जो स्पष्ट रूप से अनुशासनहीनता है। लंबे समय तक चली जांच और सुनवाई के बाद उन्हें 2022 में सेवा से बर्खास्त कर दिया गया। उन्होंने इस दंड के विरुद्ध दिल्ली हाईकोर्ट में अपील की, जिसे मई 2025 में खारिज कर दिया गया था।

CJI की टिप्पणी- ऐसे अधिकारी को तो इसी वजह से बाहर कर देना चाहिए था

मुख्य न्यायाधीश डी.वाई. सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बेहद सख्त रुख अपनाया। पीठ ने कहा कि अधिकारी ने अपने सैनिकों की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई और यह व्यवहार सैन्य अनुशासन के खिलाफ है। CJI ने सुनवाई के दौरान कहा- यह भारतीय सेना है, दुनिया की सबसे अनुशासित फोर्स। ऐसा व्यवहार सेना अधिकारी द्वारा की गई अत्यंत गंभीर अनुशासनहीनता है। ऐसे अधिकारी को तो सिर्फ इसी वजह से बाहर कर देना चाहिए था।

अधिकारी की दलील- धार्मिक मान्यता के चलते गर्भगृह में नहीं जा सकता

कमलेसन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को पूजा-अर्चना के लिए बाध्य किया गया। गर्भगृह में प्रवेश उनके धर्म के विरुद्ध था। वह फूल बाहर से अर्पित करने को तैयार थे। ‘सर्व धर्म स्थल’ में वह नियमित रूप से भाग लेते रहे थे। उन्होंने कहा कि किसी सैनिक को पूजा के लिए मजबूर करना संविधान द्वारा प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट ने दलीलें ठुकराईं

पीठ ने स्पष्ट किया कि अधिकारी को किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए बाध्य नहीं किया गया। उन्हें सिर्फ सैनिकों के साथ प्रवेश करने को कहा गया था।

कमलेसन की यह दलील भी टिक नहीं सकी कि उन्होंने धार्मिक अनुष्ठान नहीं, सिर्फ गर्भगृह में प्रवेश से इनकार किया था। कोर्ट ने कहा कि सेना की परंपराओं में अधिकारी और जवान एक इकाई के रूप में विभिन्न धार्मिक स्थलों में जाते हैं। यह किसी विशेष धर्म का नहीं, बल्कि रेजिमेंटल परंपरा का हिस्सा होता है।

दंड कम करने की मांग भी अस्वीकार

अधिकारी ने दंड कम करने का निवेदन किया, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती बरकरार रखी।

Vishwajeet

मेरा नाम विश्वजीत कुमार है। मैं वर्तमान में झारखंड वार्ता (समाचार संस्था) में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। समाचार लेखन, फीचर स्टोरी और डिजिटल कंटेंट तैयार करने में मेरी विशेष रुचि है। सटीक, सरल और प्रभावी भाषा में जानकारी प्रस्तुत करना मेरी ताकत है। समाज, राजनीति, खेल और समसामयिक मुद्दों पर लेखन मेरा पसंदीदा क्षेत्र है। मैं हमेशा तथ्यों पर आधारित और पाठकों के लिए उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूं। नए विषयों को सीखना और उन्हें रचनात्मक अंदाज में पेश करना मेरी कार्यशैली है। पत्रकारिता के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करता हूं।

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