Thursday, June 19, 2025
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Ganga Dussehra 2024: गंगा दशहरा आज, जानें स्नान-दान का शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

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Ganga Dussehra 2024: ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि यानि गंगा दशहरा का दिन हिंदू धर्म में बहुत महत्वपूर्ण है। इस दिन पूजा-पाठ, दान-पुण्य और गंगा नदी में स्नान करने से व्यक्ति को पापों से मुक्ति मिलती है और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है। इस साल गंगा दशहरा 16 जून 2024 को मनाया जाएगा। इसे विष्णुपदी गंगा के नाम से भी जाना जाता है। यह पवित्र दिन गंगा नदी में स्नान करने और दान करने के लिए सबसे अच्छा समय है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करना बेहद शुभ माना जाता है, लेकिन अगर आप ब्रह्म मुहूर्त में स्नान नहीं कर पाते हैं तो सुबह 7:08 बजे से 10:37 बजे के बीच का समय भी शुभ समय है। गंगा दशहरा पर स्नान दान का समय 16 जून यानी आज सुबह 04 बजकर 03 मिनट से लेकर 04 बजकर 43 मिनट तक रहेगा। इस दिन गंगा नदी में डुबकी लगाने से आप अपने पापों से मुक्ति पा सकते हैं और सुख-समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं।

पूजा विधि

ब्रह्म मुहूर्त में स्नान: सुबह जल्दी उठकर ब्रह्म मुहूर्त में गंगा नदी में स्नान करें। अगर गंगा नदी तक नहीं जा पाएं तो घर पर ही गंगा जल से स्नान करें। स्नान करते समय मां गंगा का ध्यान करें और अपने पापों से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें।
सूर्य देव को अर्घ्य: स्नान के बाद साफ कपड़े पहनें और सूर्य देव को अर्घ्य दें। तांबे के बर्तन में जल भरें, उसमें कुमकुम, चावल और फूल डालकर सूर्य देव को अर्घ्य दें। सूर्य देव को जल चढ़ाते समय “ॐ सूर्याय नमः” मंत्र का जाप करें।

मां गंगा की पूजा: मां गंगा की मूर्ति या तस्वीर के सामने दीपक जलाएं। धूप, अगरबत्ती और फूल चढ़ाएं। मां गंगा को प्रणाम करें और उनसे सुख, समृद्धि और मोक्ष की कामना करें।

भगवान शिव की पूजा: गंगा दशहरा पर भगवान शिव की पूजा का भी विशेष महत्व है। भगवान शिव की मूर्ति या तस्वीर के सामने जल चढ़ाएं और बेलपत्र चढ़ाएं। “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।


गंगा स्तोत्र का पाठ: गंगा स्तोत्र का पाठ करने से व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है। आप स्वयं भी गंगा स्तोत्र का पाठ कर सकते हैं या किसी विद्वान ब्राह्मण से इसका पाठ करवा सकते हैं।

दान: पूजा के बाद जरूरतमंद लोगों को दान दें। दान करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है और उसके पाप धुल जाते हैं।


भोजन: पूजा के बाद सात्विक भोजन करें। इस दिन प्याज, लहसुन और मांसाहारी भोजन का सेवन वर्जित है।

गंगा दशहरा

एक बार महाराज सगर ने व्यापक यज्ञ किया। उस यज्ञ की रक्षा का भार उनके पौत्र अंशुमान ने संभाला। इंद्र ने सगर के यज्ञीय अश्व का अपहरण कर लिया। यह यज्ञ के लिए विघ्न था। परिणामतः अंशुमान ने सगर की साठ हजार प्रजा लेकर अश्व को खोजना शुरू कर दिया। सारा भूमंडल खोज लिया पर अश्व नहीं मिला।

फिर अश्व को पाताल लोक में खोजने के लिए पृथ्वी को खोदा गया। खुदाई पर उन्होंने देखा कि साक्षात्‌ भगवान ‘महर्षि कपिल’ के रूप में तपस्या कर रहे हैं। उन्हीं के पास महाराज सगर का अश्व घास चर रहा है। प्रजा उन्हें देखकर ‘चोर-चोर’ चिल्लाने लगी।

महर्षि कपिल की समाधि टूट गई। ज्यों ही महर्षि ने अपने आग्नेय नेत्र खोले, त्यों ही सारी प्रजा भस्म हो गई। इन मृत लोगों के उद्धार के लिए ही महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ ने कठोर तप किया था। भगीरथ के तप से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने उनसे वर मांगने को कहा तो भगीरथ ने ‘गंगा’ की मांग की।

इस पर ब्रह्मा ने कहा- ‘राजन! तुम गंगा का पृथ्वी पर अवतरण तो चाहते हो? परंतु क्या तुमने पृथ्वी से पूछा है कि वह गंगा के भार तथा वेग को संभाल पाएगी? मेरा विचार है कि गंगा के वेग को संभालने की शक्ति केवल भगवान शंकर में है। इसलिए उचित यह होगा कि गंगा का भार एवं वेग संभालने के लिए भगवान शिव का अनुग्रह प्राप्त कर लिया जाए।’

महाराज भगीरथ ने वैसे ही किया। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने गंगा की धारा को अपने कमंडल से छोड़ा। तब भगवान शिव ने गंगा की धारा को अपनी जटाओं में समेटकर जटाएं बांध लीं। इसका परिणाम यह हुआ कि गंगा को जटाओं से बाहर निकलने का पथ नहीं मिल सका।

अब महाराज भगीरथ को और भी अधिक चिंता हुई। उन्होंने एक बार फिर भगवान शिव की आराधना में घोर तप शुरू किया। तब कहीं भगवान शिव ने गंगा की धारा को मुक्त करने का वरदान दिया। इस प्रकार शिवजी की जटाओं से छूट कर गंगाजी हिमालय की घाटियों में कल-कल निनाद करके मैदान की ओर मुड़ी।

इस प्रकार भगीरथ पृथ्वी पर गंगा का वरण करके बड़े भाग्यशाली हुए। उन्होंने जनमानस को अपने पुण्य से उपकृत कर दिया। युगों-युगों तक बहने वाली गंगा की धारा महाराज भगीरथ की कष्टमयी साधना की गाथा कहती है। गंगा प्राणीमात्र को जीवनदान ही नहीं देती, मुक्ति भी देती है। इसी कारण भारत तथा विदेशों तक में गंगा की महिमा गाई जाती है।

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