संसार के साथ रहना कभी संभव ही नहीं है और परमात्मा से दूर जाना कभी संभव ही नहीं। अतः परमात्मा से मिलने का हीं प्रयास करना चाहिए:- जीयर स्वामी

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शुभम जायसवाल


श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):- जैसे भगवान्का आश्रय कल्याण करनेवाला है, ऐसे ही रुपये आदि उत्पत्ति-विनाशशील वस्तुओंका आश्रय पतन करनेवाला है।प्राकृत पदार्थमात्रको महत्त्व देना अनर्थका मूल है।विश्वास भगवान्पर ही करना चाहिये । उत्पत्ति – विनाशशील वस्तुओंपर विश्वास करनेसे धोखा ही होगा, दुःख ही पाना पड़ेगा।भगवान्‌के साथ हमारा वियोग और संसारके साथ हमारा संयोग कभी हो ही नहीं सकता।हम संसारके साथ कभी रह ही नहीं सकते और परमात्मासे अलग कभी हो ही नहीं सकते।असत्य के सँगसे ही सम्पूर्ण दोषों और विषमताओंकी उत्पत्ति होती है।मनुष्य ही आसक्तिपूर्वक संसारसे सम्बन्ध जोड़ता है, संसार कभी सम्बन्ध नहीं जोड़ता।संसारके साथ मिलनेसे संसारका ज्ञान नहीं होता और परमात्मासे अलग रहनेपर परमात्माका ज्ञान नहीं होता – यह नियम है।संसारके साथ एकता और परमात्मासे भिन्नता भूलसे मानी हुई है।

विनाशीसे अपना सम्बन्ध माननेसे अन्त:करण, कर्म और पदार्थ – तीनों ही मलिन हो जाते हैं और विनाशीसे माना हुआ सम्बन्ध छूट जानेसे ये तीनों ही स्वतः पवित्र हो जाते हैं।जब तक संसारसे संयोग बना रहता है, तबतक भोग होता है, योग नहीं । संसारके संयोगका मनसे सर्वथा वियोग होनेपर योग सिद्ध हो जाता है अर्थात् परमात्मासे अपने स्वतः सिद्ध नित्ययोगका अनुभव हो जाता है।संसारसे माने हुए सम्बन्धका विच्छेद करनेके लिये या तो मिले हुए (शरीरादि) पदार्थोंको संसारका ही समझकर उनको संसारकी सेवामें लगा दे या जड़ता (शरीरादि) से सम्बन्ध – विच्छेद करके अपने स्वरूपमें स्थित हो जाय या फिर इन ( शरीरादि) के सहित भगवान्‌के शरण हो जाय।उत्पत्ति-विनाशशील वस्तुओंका आश्रय लेकर, उनसे सम्बन्ध जोड़कर सुख चाहनेवाला मनुष्य कभी सुखी नहीं हो सकता – यह नियम है।