रांची: झारखंड हाई कोर्ट ने सेवानिवृत्ति के बाद सेवा विस्तार की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर कड़ा रुख अपनाते हुए स्पष्ट किया है कि सेवानिवृत्त कर्मचारियों को सेवा में विस्तार देना न समाधान है और न ही इसे सामान्य नियम बनाया जा सकता है। जस्टिस आनंद सेन की एकलपीठ ने दो सेवानिवृत्त सहायक वन संरक्षक (ACF) अधिकारियों द्वारा दायर याचिका को खारिज कर दिया।
क्या था मामला?
याचिकाकर्ता अविनाश कुमार परमार और अभय कुमार सिन्हा ने हाई कोर्ट से अनुरोध किया था कि उन्हें एक जुलाई 2025 से 30 जून 2026 तक एक वर्ष का अतिरिक्त सेवा विस्तार दिया जाए। दोनों अधिकारियों की सेवाएं राज्य सरकार पहले ही 1 जुलाई 2024 से 30 जून 2025 तक बढ़ा चुकी है। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि विभागीय अधिकारियों की अनुशंसा भी उनके पक्ष में है, इसलिए प्रधान सचिव, वन विभाग को अगले वर्ष भी विस्तार की अनुमति देने का निर्देश दिया जाए।
अदालत ने क्या कहा?
सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने साफ कर दिया कि किसी भी सेवानिवृत्त कर्मचारी को सेवा विस्तार का कानूनी अधिकार प्राप्त नहीं है। कोर्ट किसी भी परिस्थिति में सरकार को सेवा विस्तार देने का आदेश नहीं दे सकती। सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारियों से कार्य लेते रहना संस्थागत विकास और प्रशासनिक दक्षता के खिलाफ है।
राज्य सरकार की लापरवाही पर टिप्पणी
अदालत ने टिप्पणी की कि राज्य सरकार अपने कर्मचारियों की सेवानिवृत्ति की तिथियों से भलीभांति परिचित होती है, इसलिए उसे पहले से ही पद रिक्त होने की स्थिति में नियुक्ति प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि सरकार को सेवानिवृत्ति से पहले ही संबंधित पदों पर नई नियुक्तियां करने की प्रक्रिया आरंभ कर देनी चाहिए।
इस मामले में राज्य ने नए अधिकारियों की नियुक्ति के लिए कोई कदम नहीं उठाया और इसके बजाय सेवानिवृत्त अधिकारियों को ही सेवा विस्तार देकर काम कराया गया, जो उचित नहीं है।
कोर्ट का अंतिम निर्णय
याचिका को पूरी तरह खारिज करते हुए न्यायालय ने पुनः दोहराया कि सेवा विस्तार विशेष और असाधारण परिस्थितियों में ही दिया जा सकता है, इसे कोई नियमित प्रशासनिक व्यवस्था नहीं बनाया जा सकता।
झारखंड हाईकोर्ट ने अधिकारियों को सेवा विस्तार देने से किया इंकार, सरकार को लगाई फटकार, कहा- समय रहते नई नियुक्तियां सुनिश्चित करें













