Karma Puja 2025: झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और पूर्वी उत्तरप्रदेश समेत पूरे पूर्वी भारत में करमा पर्व एकता, भाई-बहन के अटूट रिश्ते और प्रकृति की पूजा का प्रतीक है। आदिवासी समाज में इसका विशेष महत्व है। यह पर्व भाद्रपद महीने की एकादशी को मनाया जाता है और मुख्य रूप से युवा लड़कियां व महिलाएं इसमें उत्साहपूर्वक भाग लेती हैं। इस वर्ष 3 सितंबर 2024 को करमा पर्व मनाया जा रहा है।
पर्व का महत्व
करमा पर्व में करम देवता की पूजा की जाती है, जिन्हें धरती की उर्वरता, भाई-बहन के संबंध और समृद्धि का देवता माना जाता है। इस दिन बहनें अपने भाइयों की लंबी उम्र और खुशहाली के लिए व्रत रखती हैं।
कैसे मनाया जाता है करमा पर्व
1. करम डाल लाना – गाँव की युवतियाँ जंगल जाकर करम वृक्ष की डाल काटकर लाती हैं। इसे पूजा स्थल पर रोपा जाता है।
2. करमा गीत और नृत्य – पूरी रात ढोल-मांदर की थाप पर पारंपरिक गीत गाए जाते हैं और समूह नृत्य किया जाता है।
3. उपवास और कथा – बहनें उपवास रखकर करमा कथा सुनती हैं, जिसमें करम देवता की कथा सुनाई जाती है।
4. भाई के लिए आशीर्वाद – व्रतधारी महिलाएँ भाई की समृद्धि व दीर्घायु के लिए प्रार्थना करती हैं।
5. भोज और प्रसाद – अगले दिन व्रत खोलने के बाद सामूहिक भोज होता है और प्रसाद बांटा जाता है।
करमा पर्व की लोककथा
मान्यता है कि एक बार करम देवता से नाराज़ होकर धरती पर अकाल पड़ गया था। जब लोगों ने उनकी विधिवत पूजा की तो उन्होंने फिर से धरती को उपजाऊ बना दिया। तभी से यह परंपरा शुरू हुई और हर साल इसे मनाया जाता है।
उत्सव की रंगीन रात
करमा पर्व की रात गांव चौपालों में गीत-संगीत और नृत्य का रंग चढ़ जाता है। ढोल, मादल और नगाड़ों की थाप पर युवा-युवतियां गोल घेरे में नाचते हैं। करमा गीतों में लोकधुन और सामूहिकता की शक्ति दिखाई देती है।
आधुनिक संदर्भ में करमा पर्व
आज के समय में भी करमा पर्व सिर्फ धार्मिक अनुष्ठान नहीं बल्कि सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है। यह पर्व पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है, क्योंकि इसमें करम वृक्ष की पूजा और प्रकृति से जुड़ाव को महत्व दिया जाता है।
यह पर्व भाई-बहन के रिश्ते की मजबूती, प्रकृति के प्रति आभार और सामुदायिक एकता का सुंदर संगम है।