संवाददाता ꫰ रामप्रवेश गुप्ता
महुआडांड़ प्रखंड में भगवान विश्वकर्मा की जयंती रविवार को धूमधाम से मनाई गई। प्रखंड के लोहे और मशीनरी से जुड़े प्रतिष्ठानों में सुबह से ही उत्सवी माहौल था। अपनी शक्ति-सामर्थ्य और कारोबार के हिसाब से साज-सज्जा भी की गई।
कहीं पूरे प्रतिष्ठान को भव्यतापूर्वक सजाया गया तो कहीं कागज की झंडियां लहराती दिखीं। भगवान विश्वकर्मा की छोटी-बड़ी प्रतिमाओं की विधानपूर्वक पूजा अर्चना की गई। पूजन का क्रम सुबह से ही शुरू हो गया था। विश्वकर्मा की जयंती पर जगह-जगह प्रसाद वितरण भी किया गया। कारीगरों ने अपने औजारों व यंत्रों की भी पूजा की। रोली-अक्षत लगाकर पूजन किया गया। पूरे दिन औजारों का इस्तेमाल नहीं किया गया। ऑफिस, दुकान आदि स्थानों पर कलश स्थापना से पूजन की शुरुआत हुई। अक्षत, फूल, चंदन, धूप, अगरबत्ती, दही, रोली, सुपारी, रक्षा सूत्र, मिठाई, फल आदि उन्हें समर्पित किए गए। भगवान विश्वकर्मा की पूजा विधि-विधान से करके कामगारों से लेकर प्रतिष्ठान के मालिकों तक ने कारोबार में लाभ और उन्नति की कामना की।
विश्वकर्मा पूजन का महत्व
भगवान विश्वकर्मा की पूजा हर व्यक्ति को करनी चाहिए। सहज भाषा में कहा जाए कि सम्पूर्ण सृष्टि में जो भी कर्म सृजनात्मक है, जिन कर्मों से जीव का जीवन संचालित होता है। उन सभी के मूल में विश्वकर्मा हैं। अत: उनका पूजन जहां प्रत्येक व्यक्ति को प्राकृतिक ऊर्जा देता है वहीं कार्य में आने वाली सभी अड़चनों को दूर करता है। भारत के कुछ भाग में यह मान्यता है कि अश्विन मास के प्रतिपदा को विश्वकर्मा जी का जन्म हुआ था, लेकिन लगभग सभी मान्यताओं के अनुसार यही एक ऐसा पूजन है जो सूर्य के पारगमन के आधार पर तय होता है। इसलिए प्रत्येक वर्ष 17 सितंबर को मनाया जाता है।
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