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शुभम जायसवाल

श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– पूज्य संत श्री श्री 1008 श्री लक्ष्मी प्रपन्न जियर स्वामी जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के दौरान कहा किसमाज हित के लिए किए गए कार्य से जीवन धन्य हो जाता है। अच्छे लोगों के इतिहास एवं दर्शन से समाज व राष्ट्र गौरवान्वित होता है। आनेवाली पीढियाँ भी उनके कृत्य को धरोहर के बतौर संजोकर सदैव सीख लेती रहती हैं। व्यक्ति को गृहस्थ आश्रम के दायित्व निर्वह्न के साथ ही समाज एवं राष्ट्र के प्रति भी अपनी जवाबदेही स्वयं तय करनी चाहिए। मानव को केवल अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति तथा परिवार-कुटुम्ब के लिए कार्य नहीं करना चाहिए। व्यापक हित के लिए संकीर्ण स्वार्थ का त्याग मानव धर्म है।

श्री जीयर स्वामी जी ने प्रवचन करते हुए कहा कि जो व्यक्ति स्वयं अथवा अपने परिजनों के हितार्थ साधन-संसाधन संग्रह करने में जीवन व्यतीत कर देता है, उसकी याद और कार्य प्रणाली परिजनों तक ही सिमट कर रह जाती हैं, लेकिन परिवार के साथ समाज हित में कार्य करने वाले व्यक्ति का स्मरण कर परिवार द्वारा गौरवान्वित महसूस किये जाने के साथ ही समाज उन्हें नमन करता है।

स्वामी जी ने कहा कि राजा परीक्षित द्वारा शुकदेव जी से मृत्यु को मंगलकारी बनाने हेतु किए गये प्रश्न लोकहित में बताया गया है। श्री शुकदेव जी भी इन प्रश्नों से अह्लादित होकर गंगा तट पर मृत्यु को स्वीकार करने हेतु अनशन पर बैठे राजा परीक्षित के पास उन्हें उपदेश देने और समाज के प्रति संदेश देने के लिए रूक गए। अन्यथा विरक्त सन्यासी होने के कारण शुकदेव जी कहीं रूकते नहीं थे। श्री स्वामी जी ने कहा कि किसी व्यक्ति को तब तक चिंता एवं चिंतन करनी चाहिए जब तक समाज और परिवार पर उनका प्रभाव हो।


श्री जीयर स्वामी ने कहा कि मूर्ति की पूजा करनी चाहिए। मूर्ति में नारायण वास करते हैं। मूर्ति भगवान का अर्चावतार हैं। मंदिर में मूर्ति और संत का दर्शन ऑखें बन्द करके नहीं करना चाहिए। मूर्ति से प्रत्यक्ष रुप में भले कुछ न मिले लेकिन मूर्ति-दर्शन में कल्याण निहित है। एकलव्य ने द्रोणाचार्य की मूर्ति से ज्ञान और विज्ञान को प्राप्त किया। श्रद्धा और विश्वास के साथ मूर्ति का दर्शन करना चाहिए।

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