जमशेदपुर: आदिवासी गांव- समाज पिछड़ने को मजबूर है। उसकी आंतरिक कमजोरियों ने उसे आगे बढ़ने से रोक रखा है। जिसमें आदिवासी स्वशासन व्यवस्था अर्थात माझी परगना व्यवस्था का जनतांत्रिक और संवैधानिक विरोधी रवैया प्रमुख है। अंतत: यह स्वशासन से स्वशोषण में तब्दील हो गया है। स्वशासन के नाम पर गांव-गांव में वंशानुगत नियुक्त अधिकांश माझी और परगना जहां अनपढ़ और पियक्कड़ हैं, वहीं संविधान, कानून और मानव अधिकारों का घोर उल्लंघन करते हैं। नतीजनन आए दिन किसी को भी मनमानी जुर्माना लगाना, सामाजिक बहिष्कार करना और किसी को भी डायन करार देना इनका रोजमर्रा का कार्यक्रम बन गया है। उक्त बातें आदिवासी सेंगेल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कही।
उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि आदिवासी गांव- समाज में जनतांत्रिक और संवैधानिक मर्यादाओं को लागू करते हुए सबको न्याय, सुरक्षा और विकास के पथ पर अग्रसर करने हेतु आदिवासी सेंगेल अभियान ने संलग्न नारा और 5 उत्तर के साथ जन जागरण अभियान को गांव गांव तक पहुंचाने का कार्य शुरू कर दिया है। दीवाल लेखन और पर्चा वितरण 7 प्रदेशों के लगभग 50 ज़िलों में जारी है। यह व्यवस्था परिवर्तन की मांग निश्चित आदिवासी गांव- समाज को गुलामी से आजादी की ओर, हार से जीत की ओर अग्रसर कर सकेगा।
क्योंकि अधिकांश माझी (ग्राम प्रधान) गांव- समाज बचाने में सहयोग नहीं करते हैं।
आदिवासी एजेंडा अर्थात हासा (भूमि), भाषा (संताली राजभाषा), जाति (ST), धर्म (सरना- मरांग बुरू), रोजगार (डोमिसाइल,आरक्षण) आदि बचाने में सहयोग नहीं करते हैं।
आदिवासी एजेंडा के लिए गांव में बैठक नहीं करते हैं।
वंशानुगत माझी- परगना व्यवस्था के कारण निर्दोष गांव- समाज मर रहा है। चूँकि अधिकांश माझी-परगना अनपढ़, पियक्कड़ हैं।
आदिवासी एजेंडा पर चुप रहने वाले सामाजिक- राजनीतिक नेता और संगठन आदिवासी गांव- समाज के शत्रु हैं।.. सावधान।