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MSc गणित के छात्र को परीक्षा में मिला 1 नंबर, सदमे में पिता की मौत

On: September 5, 2025 1:16 PM
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देवरिया। उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले के भलुअनी के रहने वाला मिश्रा परिवार आज सदमे में है। परिवार के मुखिया मुरलीधर मिश्रा अपने बेटे आयुष मिश्रा के इंटरनल अंकों की शिकायत लेकर दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय पहुंचे थे। लेकिन विश्वविद्यालय प्रशासन से मिले नकारात्मक जवाब ने उन्हें इतना झकझोर दिया कि वहीं बैठते-बैठते उनका दिल थम गया।

छात्र की मेहनत पर पानी

आयुष मिश्रा, जो कि एमएससी गणित के चौथे सेमेस्टर के छात्र हैं, ने अब तक अपनी पढ़ाई में शानदार प्रदर्शन किया था।

पहला सेमेस्टर – 78%

दूसरा सेमेस्टर – 80%

तीसरा सेमेस्टर – 85%


लेकिन चौथे सेमेस्टर में उनके साथ ऐसा हुआ जिसने पूरे परिवार को बर्बाद कर दिया।

क्लासिकल मैकेनिक्स (75 अंक का पेपर) – 34 अंक

इंटरनल (25 अंक) – केवल 1 अंक


कुल अंक 35 भी नहीं हो सके और वे फेल घोषित कर दिए गए।

परिवार का आरोप – जानबूझकर कम दिए गए अंक

परिवार और ग्रामीणों का कहना है कि आयुष की मेहनत और पढ़ाई के बावजूद उन्हें जानबूझकर कम अंक दिए गए। विश्वविद्यालय के नियमों के अनुसार – 25 अंकों में से 5 अंक अटेंडेंस के होते हैं, जिनमें कम से कम 3 अंक मिलना अनिवार्य है।
सेमेस्टर के दौरान लिए गए तीन टेस्ट में से बेहतर दो के आधार पर अंक दिए जाते हैं। इसके बावजूद आयुष को केवल एक अंक देना कई सवाल खड़े करता है।

न्याय की तलाश और दुखद अंत

17 जुलाई को आयुष ने विभागाध्यक्ष को लिखित शिकायत दी। 27 अगस्त को रिश्तेदार कुलपति से मिले, लेकिन सुनवाई नहीं हुई। MLC देवेंद्र प्रताप सिंह ने भी कुलपति को पत्र लिखा।
अंततः, 1 सितंबर को आयुष और उनके पिता विश्वविद्यालय पहुंचे। पिता का उद्देश्य बस इतना था कि बेटे को सही अंक दिए जाएं। लेकिन प्रशासन से साफ इनकार मिलने पर मुरलीधर मिश्रा सदमे में आकर गिर पड़े। अस्पताल ले जाने पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

लोगों का गुस्सा और सवाल

इस घटना ने छात्रों और स्थानीय लोगों को झकझोर दिया है। सोशल मीडिया पर लोग पूछ रहे हैं –

क्या एक छात्र की मेहनत को इस तरह रौंदा जा सकता है?

क्या विश्वविद्यालय प्रशासन इतना कठोर और असंवेदनशील हो चुका है?

क्या जिम्मेदार प्रोफेसरों और अधिकारियों पर कोई कार्रवाई होगी?


पोस्टमार्टम के बिना शव सौंपने का आरोप

परिवार का आरोप है कि बिना पोस्टमार्टम के ही शव सौंप दिया गया। इससे प्रशासन की भूमिका और अधिक संदेह के घेरे में है।

शिक्षा व्यवस्था पर बड़ा सवाल

यह घटना केवल एक परिवार की त्रासदी नहीं है, बल्कि शिक्षा व्यवस्था पर गहरा प्रश्नचिह्न है। एक अंक ने न केवल छात्र का भविष्य छीन लिया, बल्कि उसके पिता की जान भी ले ली।

Vishwajeet

मेरा नाम विश्वजीत कुमार है। मैं वर्तमान में झारखंड वार्ता (समाचार संस्था) में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। समाचार लेखन, फीचर स्टोरी और डिजिटल कंटेंट तैयार करने में मेरी विशेष रुचि है। सटीक, सरल और प्रभावी भाषा में जानकारी प्रस्तुत करना मेरी ताकत है। समाज, राजनीति, खेल और समसामयिक मुद्दों पर लेखन मेरा पसंदीदा क्षेत्र है। मैं हमेशा तथ्यों पर आधारित और पाठकों के लिए उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूं। नए विषयों को सीखना और उन्हें रचनात्मक अंदाज में पेश करना मेरी कार्यशैली है। पत्रकारिता के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करता हूं।

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कानपुर का “I Love Mohammad” विवाद : पोस्टर से भड़की बड़ी बहस
कानपुर शहर हाल ही में एक पोस्टर विवाद की वजह से सुर्खियों में आ गया। मामला तब शुरू हुआ जब शहर के एक इलाके में बिना अनुमति “I Love Mohammad” लिखे बैनर और पोस्टर लगाए गए। यह पोस्टर कुछ ही समय में चर्चा का विषय बन गए और कई लोगों ने इसे धार्मिक भावनाओं से जोड़कर आपत्ति जताई। विरोध बढ़ने पर पुलिस ने बैनर हटवाया और मामले की जांच शुरू की।
प्रशासन का कहना है कि यह विवाद असल में “बिना अनुमति बैनर लगाने” का है, लेकिन इसे धर्म से जोड़कर फैलाने की कोशिश की जा रही है। पुलिस ने स्पष्ट किया कि किसी भी तरह की अफवाह या नफरत फैलाने वाले काम को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा और शांति व्यवस्था बनाए रखना सबसे बड़ी प्राथमिकता है।
यह विवाद कानपुर तक सीमित नहीं रहा। धीरे-धीरे इसकी आंच उन्नाव, बरेली और यहां तक कि उत्तराखंड तक पहुंच गई। वाराणसी में साधु-संतों ने इसका जवाब “I Love Mahadev” पोस्टर लगाकर दिया। इस तरह मामला एक “पोस्टर वार” में बदल गया, जिससे समाज में तनाव की स्थिति पैदा होने लगी।
मुस्लिम समाज के प्रतिनिधियों ने पुलिस प्रशासन से शांति बनाए रखने और किसी भी तरह की भड़काऊ गतिविधि को रोकने की अपील की। वहीं, कुछ सामाजिक संगठनों ने भी कहा कि धार्मिक आस्था का सम्मान होना चाहिए और ऐसे विवादों को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए।
यह पूरा घटनाक्रम इस बात का संकेत है कि छोटे-छोटे मुद्दे भी अगर सही समय पर नियंत्रित न किए जाएं तो वे बड़े विवाद का रूप ले सकते हैं। समाज को चाहिए कि आपसी भाईचारे और सद्भाव को बनाए रखते हुए ऐसे मामलों से दूरी बनाए।

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