संभावनाओं को नई उड़ान:अंतरराष्ट्रीय दिव्यांग दिवस पर फ्लिपकार्ट ने कार्यस्थल को और भी समावेशी बनाने की वकालत की
इस अंतरराष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस के मौके पर फ्लिपकार्ट ने कुछ ऐसे लोगों के उल्लेखनीय एवं प्रेरणादायी सफर को सबके सामने रखा है, जिन्होंने मुश्किलों को मात देते हुए अपने लिए आजादी एवं आत्मसम्मान का रास्ता तैयार किया है। सुनील कुमार, वेंकटेश और रविंदर जैसे डिलीवरी एक्जीक्यूटिव्स की इन प्रेरक कहानियों के माध्यम से हम फ्लिपकार्ट की विभिन्न पहल के प्रभाव को समझ सकते हैं।
सुनील कुमार: संघर्ष से स्थायित्व तक का सफर
सुनील कहते हैं, ‘मुझे फ्लिपकार्ट में सबसे ज्यादा यहां का समावेशी माहौल पसंद आता है, जहां मेरे टीम लीड एवं मैनेजर्स भी दिव्यांग हैं और अपनी मेहनत से उन्होंने यह मुकाम हासिल किया है। इससे मुझे उम्मीद है कि एक दिन मैं भी ऑफिस में रहकर काम करने वाली भूमिका तक पहुंच सकता हूं। अन्य लोगों के लिए मेरा संदेश स्पष्ट है: अपनी अक्षमता को अपने रास्ते की बाधा न बनने दें। स्वयं पर विश्वास करें और पहला कदम उठाएं। इस तरह के अवसर आपका जीवन बदल सकते हैं।’
वेंकटेश: गांव के सपनों से शहर में सफलता तक का सफर
अन्य दिव्यांगजनों को संदेश देते हुए वह कहते हैं, ‘अपने कम्फर्ट जोन से बाहर निकलें। बाहर अवसरों की दुनिया आपका इंतजार कर रही है। अपनी क्षमताओं पर विश्वास करें और प्रयास करने से न घबराएं।’
रविंदर का सफर: उम्मीद और नई शुरुआत
एक आंख से कम दिखाई देने की समस्या के बाद भी रविंदर फ्लिपकार्ट में डिलीवरी एक्जीक्यूटिव के रूप में अपना काम पूरे समर्पण के साथ करने के लिए तैयार थे। स्थायी आय की संभावना ने उन्हें इसके लिए प्रेरित किया था। 20 किलोमीटर का सफर करके वह लोहरदगा में टीम लीडर से मिलने पहुंचे। हफ्तेभर का प्रशिक्षण पूरा करने के बाद उन्होंने जल्द ही काम शुरू कर दिया।
आज रविंदर का दिन सुबह 6 बजे शुरू हो जाता है। वह सुबह उठकर पार्सल को व्यवस्थित करते हैं और अपने ग्रामीण क्षेत्र में रोजाना 50 से 60 डिलीवरी करते हैं। यहां से मिलने वाली सतत आय ने उन्हें स्थायित्व दिया है, उनके परिवार की स्थिति को सुधारा है और उन्हें उम्मीद दी है। वह कहते हैं, ‘जब तक मैं सक्षम हूं, यहां काम करता रहूंगा। फ्लिपकार्ट ने मेरे जीवन को उतना बेहतर कर दिया है, जितनी मैंने कभी उम्मीद नहीं की थी।’
- Advertisement -