शुभम जायसवाल
श्री बंशीधर नगर (गढ़वा) :– देवी की उपासना के शारदीय नवरात्र के महापर्व में देवी के अलग-अलग 9 रूपों की पूजा होती है और हर दिन की पूजा का एक खास महत्व है। नवरात्र के तीसरे दिन देवी दुर्गा के तीसरे स्वरूप मां चंद्रघंटा की पूजा अर्चना अनुमंडल मुख्यालय सहित आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों में श्रद्धा भक्तिभाव के साथ पूरे विधि विधान से पूजा-अर्चना की गई। इस दौरान मंत्रोच्चार व दुर्गा सप्तशती के पाठ से संपूर्ण वातावरण भक्तिमय हो गया। शहर से लेकर गांव तक नवरात्र की पूजा को लेकर भक्तिमय माहौल बना हुआ है। शहर के सब्जी बाजार स्थित जय भामाशाह क्लब,हनुमान मोड स्थित बजरंग सेवा समिति,जंगीपुर पेट्रोल पंप स्थित गायत्री शक्तिपीठ आदि दुर्गा स्थान में लोग पारंपरिक तरीके से श्रद्धापूर्वक देवी दुर्गा की पूजा-अर्चना कर रहे हैं। यहां सुबह से ही भक्तों की भीड़ उमड़ रही है। वहीं सायंकालीन आरती में भी भक्तों का सैलाब व महिलाओं की आस्था परवान चढ़ती दिख रही है।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता चंद्रघंटा को राक्षसों की वध करने वाला कहा जाता है। ऐसा माना जाता है मां ने अपने भक्तों के दुखों को दूर करने के लिए हाथों में त्रिशूल, तलवार और गदा रखा हुआ है। माता चंद्रघंटा के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र बना हुआ है, जिस वजह से भक्त मां को चंद्रघंटा कहते हैं।
इस तरह से हुआ देवी का अवतार
ज्योतिष कर्मकांडी पंडित सोमेश्वर तिवारी के पंचांग के अनुसार जब देवताओं और असुरों के बीच युद्ध हुआ और असुरों से युद्ध में देवता जीतने में असफल रहे तब अलग-अलग देवी देवताओं के स्वरूप का अवतार हुआ। उन्होंने बताया कि असुरों से जीतने में असफल हो रहे देवताओं ने त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु और भगवान शिव से प्रार्थना करने पहुंचे। इस दौरान त्रिदेवों ने उन्हें मां दुर्गा की पूजा करने की सलाह दी। जिसके बाद देवताओं ने मां दुर्गा की पूजा-आराधना की और उन्हें प्रसन्न किया। जिसके बाद मां दुर्गा ने देवी चंद्रघंटा का अवतार लिया। मां चंद्रघंटा को भगवान शंकर ने अपना त्रिशूल, भगवान विष्णु ने अपना चक्र, इंद्र ने अपना घंटा, सूर्य ने तेज, तलवार और सिंह प्रदान किया। सोमेश्वर ने बताया कि नवरात्र के समय महिषासुर का देवताओं के साथ युद्ध चल रहा था और उसी समय देवी के अलग-अलग अवतार हुए थे। मां चंद्रघंटा का अवतार भी इसी समय हुआ था।
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