शुभम जायसवाल
श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– देश के महान संत श्री श्री 1008 श्री लक्ष्मी प्रपन्न जीयर स्वामी जी महाराज ने श्रीमद् भागवत कथा के दौरान कहा कि सबको पता है की सूखी हड्डियों में खून नहीं होता है। फिर भी कुत्ता सूखी हड्डी को चबाता है। उसे अपनी मुख से निकले हुए खून का स्वाद आता है, पर वह अज्ञानी उस आनन्द को हड्डी में समझता है । यही दशा विषयी पुरुषोंकी है। दुर्लभ मनुष्य – चोला पाकर और वेद-शास्त्र पढ़कर भी यदि मनुष्य संसार में फँसा रहे तो फिर संसार-बन्धनसे छूटेगा कौन? काम, क्रोध, लोभ और मोहको छोड़कर आत्मामें देख कि मैं कौन हूँ। जो आत्मज्ञानी नहीं हैं, जो अपने स्वरूप या आत्मा के सम्बन्ध में नहीं जानते, वे मूर्ख नरकोंमें पड़े हुए सड़ते हैं।
जिसे किसी चीज की जरूरत नहीं, वह किसी की खुशामद क्यों करेगा ? निःस्पृहके लिये तो जगत् तिनकेके समान है। इसलिये सुख चाहो तो इच्छाओंको त्यागो ।जो जितना छोटा है वह उतना ही घमण्डी और उछलकर चलनेवाला है, जो जितना ही बड़ा और पूरा है, वह उतना ही गम्भीर और निरभिमानी है, नदी-नाले थोड़े-से जलसे इतरा उठते हैं; किंतु सागर, जिसमें अनन्त जल भरा है, गम्भीर रहता है।अभिमान या अहंकार महान् अनर्थोंका मूल है – यह नाशकी निशानी है ।यह राज्य और धन-दौलत क्या सदा आपके कुल में रहेंगे या आपके साथ जायेंगे ? विचारिये तो सही।
