शुभम जायसवाल
श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):— समस्त संसाधनों के बावजूद निर्लिप्त रहना ही वैराग्य लोक धर्म के बाद परलोक धर्म में लगें अभाव और प्रतिक्रिया से लिया गया वैराग्य स्थाई नहीं बालक के प्रति स्नेह रखनी चाहिए। उनके बढ़ते उम्र के साथ संस्कार और अनुशासन की शिक्षा आवश्यक है। अनुशासन और संस्कार के बगैर अधिक लाड़-प्यार बच्चों का भविष्य बर्बाद कर देता है। बच्चे जब बड़े हो जाएं तो उनसे भाई जैसा व्यवहार करना चाहिए। श्री जीयर स्वामी ने श्रीमद् भागवत महापुराण कथा में आत्मदेव द्वारा अपने पुत्र धुंधकारी को अत्यधिक लाड़-प्यार के कारण उसका महाखल बन जाने की चर्चा की। उन्होंने कहा कि धुंधकारी शराबी, जुआरी और वेश्यागामी बन गया । वह अपने माता-पिता को मारने पर उतारू हो जाता था। आत्मदेव जी का मंदिर जैसा घर श्मशान बन गया। वे काफी चिंतित थे। गोकर्ण जी उनकी चिन्ता का कारण जान उपदेश देने लगे।
