राँची, रिम्स : शहर में डेंगू का कहर जारी है,इस बीच व्यवस्थाएं दम ताेड़ने लगी है। सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (एसडीपी) किट अस्पतालों से खत्म है। अस्पताल में भर्ती डेंगू मरीजों को किट के अभाव में एसडीपी की जगह रेंडम डोनर प्लेटलेट्स (आरडीपी) चढ़ा कर ही काम चलाना पड़ रहा है।
इन दिनों सरकारी-निजी अस्पतालों में 80 यूनिट आरडीपी से अधिक की खपत है। पूरे देश में एसडीपी किट की सप्लाई विदेश से हाेती है, देश में तीन कंपनियां यह किट्स सप्लाई देती है। सहर में अभी तक डेंगू के अनेकों मामले सामने आए हैं, कई मरीज निजी अस्पतालों में इलाज करा रहे हैं।
सिंगल डोनर प्लेटलेट्स लगाना महंगा पड़ता है। इसकी कीमत करीब 11000 रुपए पड़ती है, रैंडम प्लेटलेट्स 1 हजार रुपए में ही हो जाती है। डॉ चंद्र भूषण सिंगल डोनर देने को ही ज्यादा सही मानते हैं, क्योंकि रैंडम डोनर वाला प्लेटलेट अलग-अलग ब्लड ग्रुप के लोगों का होता है, जिससे शरीर में धीरे-धीरे उन ब्लड ग्रुप्स के खिलाफ एंटी बॉडीज बन जाती हैं, जो भविष्य में प्लेटलेट्स देने पर उन्हें नष्ट कर सकती हैं। ऐसे में प्लेटलेट देने पर भी प्लेटलेट काउंट नहीं बढ़ता, इसलिए सिंगल डोनर ही ज्यादा सुरक्षित होता है।
उन्होंने कहा किसी को प्लेटलेट देने से किसी तरह की कमजोरी नहीं आती। आप दो हफ्ते में एकबार किसी को प्लेटलेट्स डोनेट कर सकते हैं क्योंकि 7 दिनों में ही नई प्लेटलेट्स फिर से वापस बन जाती है।
डेंगू का इलाज कराते समय इनका ध्यान रखें!
डॉक्टर पर कभी भी प्लेटलेट्स देने का दबाव न डालें। प्लेटलेट्स देना है या नहीं, निर्णय डॉक्टर को ही करने दें।
प्लेटलेट ट्रांस्फ्यूजन दो तरह से होता है, एक सिंगल डोनर प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन। इसमें एक ही व्यक्ति से सभी प्लेटलेट्स मिल जाती हैं।
दूसरा रैंडम प्लेटलेट डोनर, इसमें कई डोनर्स जिनके ब्लड ग्रुप भी अलग-अलग हो सकते हैं, उनमें से थोड़ा-थोड़ा प्लेटलेट मिल जाता है।
खून में यदि प्लेटलेट कम हो जाते हैं तो पेट, आंत, नाक या दिमाग के अंदर भी ब्लीडिंग (रक्तस्त्राव) शुरू हो सकता है। यह ब्लीडिंग जानलेवा तक हो सकती है। डेंगू जैसी बीमारियों में प्लेटलेट कम होने पर कई बार इसी वजह से मरीज की जान चली जाती है। रिम्स ब्लड बैंक के सीनियर रेजीडेंट डाॅ. चंद्रभूषण कहते हैं कि धीरे-धीरे प्लेटलेट ट्रांसफ्यूजन को लेकर सामान्य लोगों के बीच एक हौवा सा बन गया है,इसे लेकर बड़े भ्रम हैं।
रक्त में प्लेटलेट्स के कम होने का मतलब है कि या तो शरीर में प्लेटलेट्स कम बन रहा हैं या फिर ठीक मात्रा में बनने के बावजूद किसी कारण से नष्ट होती जा रही हैं। कई बार प्लेटलेट्स खत्म होने की बीमारी भी हो सकती है। ऐसे में प्लेटलेट बनते तो हैं लेकिन हमारा शरीर ही इन्हें लगातार नष्ट करता रहता है ऐसी बीमारी को इडियोपैथिक थोम्बोसाइटोपीनिया कहा जाता है।
ब्लड बैंक में पहले सिंगल डोनर प्लेटलेट्स (एसडीपी) की मांग हफ्तेभर में 1-2 यूनिट की आती थी, इन दिनों रोज एक या 5-6 यूनिट एसडीपी की मांग आ रही है, लेकिन सप्लाई प्रभावित हाेने के कारण 2-3 की प्लेटलेट्स हाे पा रहा है꫰