रांची: राजधानी रांची के मोराबादी मैदान से पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा फुटबॉल स्टेडियम तक रविवार को ‘आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा’ के बैनर तले हजारों की संख्या में आदिवासी समाज के लोग सड़कों पर उतर आए। ढोल-नगाड़ों की थाप, पारंपरिक नारे और सांस्कृतिक वेशभूषा में सजे पुरुष-महिलाओं की विशाल रैली ने राजधानी को आदिवासी अस्मिता के स्वर से गुंजायमान कर दिया।
यह आक्रोश महारैली पद्मश्री डॉ. रामदयाल मुंडा स्टेडियम पहुंचकर ऐतिहासिक “आदिवासी महाजुटान” में तब्दील हो गई, जहां झारखंड के सभी जिलों से पहुंचे लाखों लोगों ने कुड़मी महतो को आदिवासी सूची में शामिल करने के प्रयासों का कड़ा विरोध किया।
मंच से आदिवासी नेताओं, बुद्धिजीवियों और सामाजिक संगठनों ने एक स्वर में कहा कि, “आदिवासी पहचान और अस्तित्व से किसी भी तरह की छेड़छाड़ बर्दाश्त नहीं की जाएगी।”
कुड़मी समाज को एसटी दर्जा देने के विरोध में एकजुटता
केंद्रीय सरना समिति, आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा, झारखंड जनजातीय परिषद, आदिवासी मूलवासी सदान अधिकार मंच समेत कई संगठनों ने संयुक्त रूप से कहा कि कुड़मी समाज कभी भी अनुसूचित जनजाति सूची में शामिल नहीं रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि आज राजनीतिक स्वार्थवश इतिहास को तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है, लेकिन “जान दे देंगे, पर आदिवासी बनने नहीं देंगे।”
नेताओं के वक्तव्य
अजय तिर्की (अध्यक्ष, आदिवासी अस्तित्व बचाओ मोर्चा) ने कहा, “कुड़मी महतो समाज कभी आदिवासी नहीं था, न उसने खुद को आदिवासी माना। अब फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे एसटी दर्जा पाने की साज़िश की जा रही है। आदिवासी पहचान कोई सुविधा नहीं, बल्कि यह हमारी संस्कृति, परंपरा, भाषा और जीवनदर्शन से जुड़ी पहचान है।”
स्लैडसन डुंगडुंग ने कहा, “इतिहास झूठ नहीं बोलता। 1872 से 1931 की जनगणनाओं में कुड़मी समाज को कभी भी जनजाति के रूप में दर्ज नहीं किया गया। अनुसूचित जनजाति सूची 1 दिसंबर 1948 से लागू हुई, और इससे पहले कुड़मी समाज ने कभी एसटी दर्जे की मांग नहीं की थी।” उन्होंने यह भी कहा कि कुड़मी समाज के 81 गोत्र तो हैं, लेकिन कोई “टोटेम” (वंश प्रतीक) नहीं है, जो आदिवासी पहचान का मूल तत्व होता है।
शशि पन्ना ने कुड़मी समाज के दोहरे रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा, “एक तरफ वे खुद को आदिवासी बताकर एसटी में शामिल होने की मांग कर रहे हैं, वहीं पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण की मांग भी कर रहे हैं। यह विरोधाभासी और स्वार्थपरक रवैया है।”
सफल आयोजन में योगदान देने वाले
सोमइ उंराव, गोंडरा उंराव, पवन बारला, सोहानी तिग्गा, राजेश लिंडा, नवीन तिर्की, अनिल पन्ना, सुषमा बूरली, ज्योत्स्ना केरकेट्टा, सुषमा बड़ाईक, सुनिल मुंडा, सुशीला भगत, मुन्ना कुमार मुंडा, बिरसा कच्छप, सुरज टोप्पो, कारु टोप्पो, संजय टोप्पो, बसंत भगत, नंद किशोर मुंडा, मनोज कुमार सोय, पिंटू मुंडा, राधा कृष्ण सिंह मुंडा, कृष्णा मुंडा, देवसहाय मुंडा, सुनिल पहान, टोकन करमाली, मंगला कुल्लू, पवन बारला, सोमा उंराव, आकाश मुंडा, यदुनाथ तियू, सुखदेव मुंडा, विजय करमाली, विकास कच्छप, राजन करमाली, गौतम उंराव, संजय लोहरा, रुपचंद तिकी, विजय कच्छप, कृष्णा लोहरा, प्रकाश हंस, दिनेश मुंडा, कैलाश तिर्की, गैना कच्छप, मुन्ना उंराव, सचिन कच्छप समेत कई लोगों के सहयोग से कार्यक्रम सफल रहा।
रांची: आदिवासी संगठनों की आक्रोश महारैली, कुड़मी समुदाय को ST में शामिल करने की मांग का किया विरोध













