शरीर पर पहने गए छोटे वस्त्र, मानव के मर्यादा एवं लज्जा को भंग करते हैं : जीयर स्वामी

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शुभम जायसवाल

श्री बंशीधर नगर (गढ़वा):– पूज्य संत श्री श्री 1008 श्री लक्ष्मी प्रप्पन जीयर स्वामी जी महाराज ने कहा कि नैमिषारण्य की धरती पर सूत जी महाराज से शौनक ऋषि ने पूछा कि कलयुग में मानव का उद्धार कैसे होगा? जिस पर कथा सुनाते हुए सूत जी महाराज ने कहा कि हरिनाम संकीर्तन और सत्संग से ही मानव का उद्धार कलयुग में होगा । सूत जी महाराज ने ऋषियों को भागवत जी के महिमा को सुनाते हुए कहा कि भागवत सभी वेद, उपनिषद एवं धार्मिक ग्रंथों का सार है।
जीयर स्वामी ने कहा कि आज का मानव धर्म भी करते हैं, कर्म भी करते हैं, लेकिन शर्म नहीं करते। मनुष्य का नैतिक स्तर बहुत गिर गया है, आज भजन कीर्तन में भी लोग आधुनिक अश्लील धुन बजा कर नाच रहे हैं, जो मर्यादा के विरुद्ध है।

कहा कि एडवांस युग की दुहाई देने वाले लोग कम वस्त्र पहन कर अपने आप को एडवांस बता रहे हैं, जिससे उनके संस्कार बिगड़ रहे हैं । किसी भी परिस्थिति में मनुष्य को अपनी मर्यादा, संस्कृति और संस्कार को नहीं छोड़ना चाहिए, क्योंकि मनुष्य के जीवन से यह सब चले जाने के बाद उनका विनाश निश्चित है । उन्होंने बिहार के बक्सर जनपद के पावन भूमि की महिमा का वर्णन करते हुए कहा कि यह भूमि सतयुग से ही देवी- देवताओं की जन्म स्थली रही है। जहां त्रेता में भगवान राम स्वयं यहां आकर ऋषि- मुनियों की रक्षा के लिए आसुरी प्रवृत्ति के लोगों का संघार किया।

कहा कि धरती पर केवल मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जिसके लिए कई ग्रंथ- पुराण, उपनिषद- वेद आदि की रचना के साथ कई अविष्कार किए गए। जबकि पृथ्वी पर पशुओं और अन्य जीवों के लिए आज तक कोई अविष्कार नहीं हुआ, फिर भी पशुओं ने अपना धर्म नहीं छोड़ा। लेकिन आज का इंसान विभिन्न प्रकार के आविष्कार और धर्म ग्रंथों के मौजूद होने के बावजूद अपनी मर्यादा से गिरता जा रहा है ।

स्वामी जी ने कहा कि सुन्दर और तेजस्वी संतान की प्राप्ति के लिए माता-पिता को ईश्वर के प्रति आस्था रखते हुए अपने आचरण और व्यवहार में शुद्धता के साथ संतानोत्पत्ति का संयोग बनाना चाहिए। आज भी विज्ञान गर्भावस्था में माताओं को कुछ कार्यों से निषेद्ध तो कुछ पालन करने की सलाह देता है। सनातन धर्म में हजारों साल पहले इसकी चर्चा ऋषियों ने कर दिया है। श्री स्वामी जी ने कहा कि गृहस्थ आश्रम में संतानोत्पत्ति भी एक धर्म है। इस धर्म का पालन मर्यादा के साथ होना चाहिए। भारतीय स्मृतियों में संस्कार पर व्यापक विचार हुआ है। गर्भाधान भी एक प्रमुख संस्कार है। संस्कार-युक्त गर्भाधान से संस्कारी संतान की उत्पत्ति होती है। अच्छे व्यक्तियों से ही अच्छा समाज बनता है।

उन्होंने कहा कि व्यक्ति की जैसी सोच, समर्पण और व्यवहार होता है, प्रतिफल भी उसी के अनुरूप प्राप्त होता है। स्कूल में पढ़ने वाला अपराधी का पुत्र भी अगर विद्यार्थी धर्म का पालन कर अव्वल आ जाता है, तो व्यवस्था उसके साथ न्याय करती है। उस विद्यार्थी को मेधा सूची से यह कहकर नहीं हटा दिया जाता कि उसके पिता अपराधी हैं। व्यवस्था में बैठे लोग चाहे जो करें लेकिन न्याय व्यवस्था सबके लिए समान है। न्याय, नीति और ईश्वर कतई विभेद नहीं करते। राक्षस कुल में जन्म लेने वाले प्रहलाद भी नारायण भक्त हुए तो कोई आश्चर्य नहीं।

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