झारखंड में 9 अप्रैल से एक माह तक चलेगा भूमि सुपोषण एवं संरक्षण अभियान

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झारखंड वार्ता न्यूज

रांची:- खेती बारी में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों और खरपतवार नाशकों का उपयोग न्यूनतम करने, कृषि कार्य में पानी की खपत कम करने तथा देशी बीज एवं देशी गोवंश का प्रसार करने के उद्देश्य से झारखंड में प्रथम चरण में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा 9 अप्रैल से अक्षय तृतीया 10 मई तक भूमि सुपोषण एवं संरक्षण जन अभियान चलाया जाएगा। झारखंड और देश में कार्यरत 30 से अधिक स्वयंसेवी संगठनों एवं कृषि विश्वविद्यालयों के सहयोग से इस अभियान के कार्यकर्ता झारखंड के 250 गांव में पहुंचेंगे। सभी गांव में मिट्टी के नमूनों, देशी गोवंश और परंपरागत छोटे कृषि यंत्रों का पूजन कार्यक्रम संपन्न होगा ताकि किसानों और ग्रामीणों के बीच भूमि माता के प्रति श्रद्धा और सम्मान बढे़ तथा नागरिक धरती माता के स्वास्थ्य के प्रति ज्यादा जागरूक हों।


रामकृष्ण मिशन रांची के सचिव स्वामी स्वामी भावेशानंद जी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ग्राम विकास की राष्ट्रीय टोली के सदस्य सिद्धनाथ सिंह तथा प्राकृतिक खेती विशेषज्ञ सिद्धार्थ जायसवाल ने शुक्रवार को रामकृष्ण मिशन विवेकानंद शैक्षणिक एवं अनुसंधान संस्थान संस्थान (डीम्ड विश्वविद्यालय), मोराबादी में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि मिट्टी संरक्षण, देशी गाय के गोबर-गोमूत्र और जीवामृत आधारित कृषि तथा श्रीअन्न (स्मॉल मिलेट्स) की खेती को बढ़ावा देकर मिट्टी का स्वास्थ्य सुधारा जा सकता है। उन्होंने कहा कि स्वस्थ मिट्टी से स्वस्थ फसल, स्वस्थ मानव और स्वस्थ समाज का निर्माण किया जा सकता है। वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति के रूप में पंचगव्य सिस्टम आफ मेडिसिन बहुत प्रभावी है और कई असाध्य रोगों के इलाज में कारगर है।


देश में रासायनिक उर्वरकों के अंधाधुंध प्रयोग एवं कीट नियंत्रकों के उपयोग से जमीन में जैविक कार्बन की मात्रा लगातार घटती जा रही है। जहरीले रसायनों के प्रयोग से कैंसर जैसी बीमारियां निरंतर बढ़ रही हैं। उपजाऊ जैविक मिट्टी में कार्बन की मात्रा कम से कम 0.90% होना आवश्यक है। देश में 2016 में 6 करोड़ के लगभग हुए मिट्टी नमूनों की जांच रिपोर्ट में यह पाया गया की जैविक कार्बन की मात्रा अब केवल 0.05 प्रतिशत रह गई है। यह अत्यंत चिंतनीय विषय है। मिट्टी में जैविक कार्बन में 0.01 से लेकर 0.02 प्रतिशत की कमी धरती को पूरी तरह बंजर कर सकती है। रसायन के कारण खेती अब बाजार आधारित हो गई जिससे फसल उत्पादन लागत बढ़ने से खेती घाटे का कारण बन रही है। रासायनिक पद्धति से गेहूं उत्पादन करने पर प्रति किलो लागत लगभग ₹40 आती है वहीं अगर इसे जैविक कृषि से उत्पादित किया जाए तो इसमें लागत लगभग ₹10 तक घटाई जा सकती है। भारत में कृषि भूमि में घटते कार्बन स्तर और बंजर होती जा रही धरती को बचाने के लिए देश की प्रमुख संस्थाओं ने सामूहिक रूप से भूमि सुपोषण एवं संरक्षण हेतु राष्ट्र स्तरीय जन अभियान चलाया है। इस जन अभियान में कृषि एवं पर्यावरण क्षेत्र में कार्यरत सामाजिक धार्मिक एवं स्थानीय संस्थाओं के सामूहिक प्रयासों से भारत के हजारों गांव में भूमि पूजन कार्यक्रमों के माध्यम से भूमि सुपोषण एवं संरक्षण कार्य को बढ़ावा दिया जा रहा है। कृषि एवं पर्यावरण क्षेत्र के वैज्ञानिकों ने अनेक बार चिंता व्यक्त की है की खेती की भूमिका भौतिक, रासायनिक और जैविक संतुलन बिगड़ता जा रहा है तथा जमीन में बढ़ते प्रदूषण के कारण आगामी कुछ वर्षों में उत्पादन पर विपरीत प्रभाव पड़ने वाली है।इस अवसर पर प्रांत ग्राम विकास झारखंड के प्रमुख श्री महेंद्र प्रसाद,श्री चंद्र मोहन महतो श्री पंकज वत्सल और अविनाश कुमार भी उपस्थित थे।

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