रांची/कोलकाता: झारखंड के 27 वर्षीय मरीज एमडी इरफान को कोलकाता स्थित नारायणा आरएन टैगोर अस्पताल, मुकुंदापुर में सफल हृदय प्रत्यारोपण (हार्ट ट्रांसप्लांट) के बाद नई जिंदगी मिली है। इस जटिल सर्जरी का नेतृत्व वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ. ललित कपूर और डॉ. अयन कर ने किया।
एमडी इरफान बचपन से ही हृदय रोग से पीड़ित थे। वर्ष 2008 में, जब वे मात्र 9 वर्ष के थे, तब डॉ. ललित कपूर ने उनके लिए जीवन रक्षक कृत्रिम वाल्व प्रत्यारोपण किया था। उस सर्जरी ने उन्हें किशोरावस्था और युवावस्था तक जीवन जीने का अवसर दिया। लेकिन समय के साथ उनकी हृदय की स्थिति बिगड़ती गई और वे एंड-स्टेज हार्ट फेल्योर तक पहुँच गए, जहाँ दवाइयाँ भी कारगर साबित नहीं हो रहीं थीं। विवाहित और एक बच्चे के पिता इरफान इस साल की शुरुआत में गंभीर हालत में दोबारा डॉ. कपूर के पास पहुँचे। जांच के बाद यह स्पष्ट हुआ कि उनकी जान केवल हार्ट ट्रांसप्लांट से ही बचाई जा सकती है।
चूंकि झारखंड में हार्ट ट्रांसप्लांट की सुविधा उपलब्ध नहीं है, इसलिए उन्हें कोलकाता की ट्रांसप्लांट सूची में शामिल किया गया। इस दौरान उन्हें दूरी, लॉजिस्टिक्स और आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। लेकिन SOTTO नेटवर्क से समय पर डोनर ऑर्गन की उपलब्धता, अंग परिवहन के लिए ग्रीन कॉरिडोर की व्यवस्था और अस्पताल प्रबंधन के सहयोग से यह सर्जरी सफलतापूर्वक पूरी की जा सकी।
वरिष्ठ कार्डियक सर्जन डॉ. ललित कपूर ने कहा, “हार्ट ट्रांसप्लांट सबसे चुनौतीपूर्ण लेकिन अत्यंत संतोषजनक प्रक्रियाओं में से एक है। भारत में हर साल लगभग 220-230 ऐसे ऑपरेशन होते हैं, जबकि अमेरिका में यह संख्या 3,000 से अधिक है। आधुनिक दवाइयों की वजह से अब मरीजों की जीवन प्रत्याशा 13 साल तक औसतन बढ़ गई है और कई मामलों में यह 40 साल से भी अधिक हो सकती है। इरफान को मैंने बचपन में ऑपरेट किया था और अब उन्हें ट्रांसप्लांट के जरिए नया जीवन पाते देखना बेहद संतोषजनक है।”
डॉ. कपूर ने आगे कहा कि भारत में ऑर्गन डोनेशन की सबसे बड़ी चुनौती ब्रेन डेथ की समय पर पहचान और परिवारों को अंगदान के लिए तैयार करना है। इसके अलावा, ट्रांसपोर्ट और समन्वय भी बड़ी बाधा बनते हैं।
डॉ. अयन कर ने कहा, “यह मामला भारत में बेहतर अंग उपयोग की तत्काल आवश्यकता को दर्शाता है। आर्टिफिशियल हार्ट अत्यधिक महंगे हैं और समन्वय की कमी के कारण कई बार अंग व्यर्थ हो जाते हैं। पूर्वी भारत में जागरूकता बेहद कम है। जल्दी पहचान से परिणाम बेहतर होते हैं, लेकिन रिकवरी लंबी प्रक्रिया है और इम्यून सिस्टम को एडजस्ट होने में एक साल तक का समय लग सकता है।”
कई ऑर्गन रिट्रीवल टीमों के समन्वय से यह जटिल सर्जरी देर रात तक चली। ऑपरेशन के बाद मरीज की हालत स्थिर रही। उन्हें 48 घंटे के भीतर वेंटिलेटर से हटा दिया गया और बाद में छुट्टी दे दी गई। वर्तमान में वे अस्पताल की टीम की निगरानी में स्वस्थ हो रहे हैं।
नारायणा हेल्थ के ग्रुप सीईओ डॉ. अशलता वेंकटेश ने कहा,
“हमारा लक्ष्य केवल उपचार देना नहीं, बल्कि अंगदान प्रणाली की खामियों को दूर करना भी है। हर सफल ट्रांसप्लांट डॉक्टरों, कोऑर्डिनेटर्स, सरकारी एजेंसियों और मरीज के परिवार के सामूहिक प्रयास का नतीजा है।”
नारायणा हेल्थ (ईस्ट) के निदेशक अभिजीत सीपी ने कहा,
“नारायणा आरएन टैगोर अस्पताल पूर्वी भारत में हार्ट ट्रांसप्लांट का अग्रणी केंद्र बन चुका है और अब तक लगभग 45 सफल प्रक्रियाएँ कर चुका है। हमारा प्रयास है कि झारखंड, बिहार, ओडिशा और पूर्वोत्तर भारत के मरीज भी इस उच्चस्तरीय उपचार का लाभ उठा सकें।”
एमडी इरफान की यह कहानी केवल जीवित रहने की नहीं है, बल्कि यह अंगदान की जीवनदायी शक्ति का प्रमाण भी है। यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि भारत में अधिक से अधिक लोगों को अंगदान के लिए प्रेरित करना और बुनियादी स्वास्थ्य ढाँचे को मजबूत करना बेहद जरूरी है।
नारायणा आरएन टैगोर अस्पताल मुकुंदापुर में सफल हृदय प्रत्यारोपण, झारखंड के मरीज को मिली नई जिंदगी

