नई दिल्ली: देश में बढ़ते कस्टोडियल वायलेंस और पुलिस हिरासत में मौतों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कड़ी नाराज़गी जताई। शीर्ष अदालत ने कहा कि कस्टोडियल डेथ ‘व्यवस्था पर दाग’ है और देश अब ऐसी घटनाओं को बर्दाश्त नहीं करेगा। यह टिप्पणी अदालत ने उस स्वत: संज्ञान मामले की सुनवाई के दौरान की जिसमें देशभर के थानों में कार्यात्मक CCTV कैमरों की कमी को लेकर चिंता व्यक्त की गई थी।
8 महीनों में राजस्थान में 11 कस्टोडियल डेथ
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने बताया कि वर्ष 2025 के पहले आठ महीनों में राजस्थान में 11 पुलिस हिरासत मौतों की सूचना सामने आई है, जिनमें से सात मामले उदयपुर संभाग से जुड़े हैं। अदालत ने कठोर टिप्पणी करते हुए कहा, “अब यह देश इसे बर्दाश्त नहीं करेगा। हिरासत में मौतें नहीं हो सकतीं। यह व्यवस्था पर दाग है।”
पीठ ने केंद्र सरकार पर नाराज़गी जताते हुए पूछा कि अब तक अनुपालन हलफनामा क्यों दाखिल नहीं किया गया। न्यायमूर्ति नाथ ने टिप्पणी की- “केंद्र इस अदालत को बहुत हल्के में ले रहा है… क्यों?”
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत को आश्वस्त किया कि केंद्र सरकार तीन सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करेगी और कहा कि कस्टोडियल डेथ को किसी भी स्थिति में न्यायोचित नहीं ठहराया जा सकता।
सुप्रीम कोर्ट ने 2018 में मानवाधिकार उल्लंघन रोकने के लिए सभी पुलिस थानों में CCTV कैमरे लगाने का आदेश दिया था। दिसंबर 2020 में एक अन्य आदेश में यह दायरा बढ़ाते हुए CBI, ED, NIA समेत सभी केंद्रीय जांच एजेंसियों के कार्यालयों में CCTV लगाने का निर्देश दिया गया था।
सुनवाई के दौरान एमिकस क्यूरी वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ दवे ने पीठ को बताया, स्वत: संज्ञान मामले में केवल 11 राज्यों ने ही अनुपालन हलफनामे जमा किए हैं। 2020 वाले मामले में भी कई राज्यों और एजेंसियों ने अब तक पूरी रिपोर्ट नहीं दी है।
तीन केंद्रीय जांच एजेंसियों ने CCTV कैमरे लगवा दिए हैं, लेकिन अन्य तीन एजेंसियों ने अभी तक निर्देशों का पालन नहीं किया है। पीठ ने मध्यप्रदेश की व्यवस्था की सराहना की, जहां राज्य का हर थाना और चौकी जिला नियंत्रण कक्ष के केंद्रीकृत केंद्र से जुड़ी है।
CCTV फुटेज की लाइव स्ट्रीमिंग का उल्लेख, खुली जेल मॉडल पर भी चर्चा
सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति मेहता और न्यायमूर्ति नाथ ने कहा कि अमेरिका में पुलिसिंग के दौरान CCTV फुटेज की लाइव स्ट्रीमिंग की व्यवस्था तक है। इस पर SG मेहता ने कहा कि अमेरिका में निजी जेलें भी हैं, जिनमें रिसॉर्ट स्तर की सुविधाएं उपलब्ध होती हैं।
पीठ ने अपनी चल रही ओपन जेल सिस्टम संबंधी विचार-विमर्श का जिक्र करते हुए कहा कि, “खुली जेल की व्यवस्था भीड़भाड़, हिंसा और अन्य समस्याओं का समाधान हो सकती है। इससे वित्तीय बोझ भी कम होगा।”
शेष राज्यों को तीन सप्ताह का समय
अदालत ने सभी शेष राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को तीन सप्ताह के भीतर अनुपालन हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। पीठ ने स्पष्ट चेतावनी दी- यदि समय सीमा तक हलफनामा दाखिल नहीं हुआ तो संबंधित राज्यों के गृह विभाग के प्रधान सचिवों को कोर्ट में व्यक्तिगत रूप से पेश होना होगा।
केंद्रीय जांच एजेंसियों के लिए भी यही निर्देश लागू होंगे। अनुपालन न होने पर संबंधित एजेंसियों के निदेशकों को अदालत में बुलाया जा सकता है। सुनवाई की अगली तारीख 16 दिसंबर निर्धारित की गई है।
सुप्रीम कोर्ट बोला- ‘कस्टोडियल डेथ व्यवस्था पर दाग, देश अब बर्दाश्त नहीं करेगा’ थानों में CCTV लगने में देरी पर केंद्र और राज्यों से जवाब तलब











