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सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला नहीं हटेंगे संविधान से धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी शब्द, याचिका खारिज

On: November 25, 2024 8:29 AM
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एजेंसी :सुप्रीम कोर्ट ने समाजवादी और धर्मनिरपेक्ष शब्द को हटाने वाली याचिका को खारिज करते हुए ऐतिहासिक फैसला सुनाया है और याचिका कर्ता के तर्क को खारिज कर दिया है।

कोर्ट ने संविधान की प्रस्तावना में 1976 में पारित 42वें संशोधन के अनुसार, “समाजवादी” और “धर्मनिरपेक्ष” शब्दों को शामिल करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया।

भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि संसद की संशोधन शक्ति प्रस्तावना तक भी फैली हुई है. प्रस्तावना को अपनाने की तारीख संसद की प्रस्तावना में संशोधन करने की शक्ति को सीमित नहीं करती है. इस आधार पर, याचिकाकर्ता के तर्क को खारिज कर दिया गया. सीजेआई ने सुनवाई के दौरान कहा, “लगभग इतने साल हो गए हैं, अब इस मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है.”

22 नवंबर को आदेश रखा था सुरक्षित

बता दें कि इससे पहले, पीठ ने याचिकाकर्ताओं की इस मामले को एक बड़ी पीठ को भेजने की याचिका को खारिज कर दिया था. हालांकि, सीजेआई खन्ना कुछ वकीलों की रुकावटों से नाराज होकर आदेश सुनाने वाले थे, लेकिन उन्होंने कहा कि वह सोमवार को आदेश सुनाएंगे.

सीजेआई खन्ना ने 22 नवंबर को सुनवाई के दौरान कहा, “भारतीय अर्थ में समाजवादी होना केवल कल्याणकारी राज्य के रूप में समझा जाता है. भारत में समाजवाद को समझने का तरीका अन्य देशों से बहुत अलग है. हमारे संदर्भ में, समाजवाद का मुख्य रूप से अर्थ कल्याणकारी राज्य है… बस इतना ही. इसने कभी भी निजी क्षेत्र को नहीं रोका है जो अच्छी तरह से फल-फूल रहा है. हम सभी को इससे लाभ हुआ है. समाजवाद शब्द का प्रयोग एक अलग संदर्भ में किया जाता है, जिसका अर्थ है कि राज्य एक कल्याणकारी राज्य है और उसे लोगों के कल्याण के लिए खड़ा होना चाहिए और अवसरों की समानता प्रदान करनी चाहिए.”

वकील जैन ने जताई थी ये आपत्ति

सीजेआई खन्ना ने आगे कहा कि एसआर बोम्मई मामले में “धर्मनिरपेक्षता” को संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना गया है. इस पर वकील जैन ने कहा कि संशोधन लोगों की बात सुने बिना पारित किया गया था, क्योंकि यह आपातकाल के दौरान किया गया था और इन शब्दों को शामिल करना लोगों को कुछ विचारधाराओं का पालन करने के लिए मजबूर करने के समान होगा. जब प्रस्तावना में कट-ऑफ डेट होती है तो बाद में शब्दों को कैसे जोड़ा जा सकता है. जैन ने आगे कहा कि इस मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है. उन्होंने तर्क दिया कि मामले पर एक बड़ी पीठ की ओर से विचार किया जाना चाहिए. इसके बाद सीजेआई ने दलील को स्पष्ट रूप से अस्वीकार कर दिया था.

Satish Sinha

मैं सतीश सिन्हा, बीते 38 वर्षों से सक्रिय पत्रकारिता के क्षेत्र से जुड़ा हूँ। इस दौरान मैंने कई अखबारों और समाचार चैनलों में रिपोर्टर के रूप में कार्य करते हुए न केवल खबरों को पाठकों और दर्शकों तक पहुँचाने का कार्य किया, बल्कि समाज की समस्याओं, आम जनता की आवाज़ और प्रशासनिक व्यवस्थाओं की वास्तविक तस्वीर को इमानदारी से उजागर करने का प्रयास भी निरंतर करता रहा हूँ। पिछले तकरीबन 6 वर्षों से मैं 'झारखंड वार्ता' से जुड़ा हूँ और क्षेत्रीय से जिले की हर छोटी-बड़ी घटनाओं की सटीक व निष्पक्ष रिपोर्टिंग के माध्यम से पत्रकारिता को नई ऊँचाइयों तक ले जाने का प्रयास कर रहा हूँ।

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