टाटानगर रेलवे रिटायर्ड इंप्लाइज एसोसिएशन ने मनाया मजदूर दिवस,लाल झंडा किसी की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं:एन आर मांझी

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जमशेदपुर: टाटानगर रेलवे रिटायर्ड रेलवे रिटायर्ड एम्पलाईज एसो० ने 1 मई को मजदूर दिवस धूमधाम से मनाया। टाटानगर रेलवे रिटायर्ड रेलवे एम्पलाइज एसोसिएशन कार्यालय में झंडोतोलन कर मजदूर दिवस मनाया गया।

इस मौके पर संगठन के एन आर मांझी ने अपने विचार रखते हुए कहा कि लाल झंडा किसी की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं है।

मई दिवस पर हम में से कई लोग सोचते हैं कि यह किसी राजनीतिक पार्टी या लाल पार्टी के ट्रेड यूनियन का झंडा है। इस तरह की कई भ्रांत धारणाएँ हमारे मन में आती हैं। वास्तव में, मई दिवस श्रमिक एकता का दिन है — मजदूरी की दासता को समाप्त करने की शपथ लेने का दिन है।

श्रमिक किसे कहते हैं?

हममें से जो लोग अच्छी सैलरी पाते हैं, सुंदर यूनिफॉर्म पहनकर नौकरी करते हैं — क्या हम श्रमिक हैं?

सचेत श्रमिक कौन है? श्रमिक वर्ग क्या है?

जो व्यक्ति श्रम के बदले में मजदूरी प्राप्त करता है, वही श्रमिक कहलाता है। अर्थात, जो मानसिक या शारीरिक श्रम के बदले में धन/मजदूरी लेता है, वही श्रमिक है। एक श्रमिक दिनभर/काम के समय जो श्रम-संपत्ति पैदा करता है, उसका बहुत ही छोटा हिस्सा उसे मजदूरी के रूप में दिया जाता है। बाकी सब मालिक हड़प लेता है।

जो लोग ज्यादा सैलरी पाते हैं, सुंदर कपड़े पहनते हैं और किसी कंपनी (सरकारी, निजी या आईटी क्षेत्र) में काम करते हैं, वे भी श्रमिक ही हैं। क्योंकि वे जो विशाल श्रम-संपत्ति पैदा करते हैं, उस पर उनका कोई अधिकार नहीं होता। उन्हें केवल उसका एक छोटा हिस्सा वेतन के रूप में मिलता है। इसके विपरीत, मालिक के पास अपार संपत्ति जमा होती है — श्रमिक के श्रम को शोषण करके, चुराकर।

इसीलिए श्रमिक वेतन/मजदूरी बढ़ाने की माँग करता है, शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाता है, नौकरी की सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा की माँग करता है। ये माँगें वास्तव में उसके अधिकार हैं।

और जो इन अधिकारों की बात करता है, दूसरों को भी इनके बारे में जागरूक करता है — वही सचेत श्रमिक है। वही असली श्रमिक वर्ग की बात करता है। यही है श्रमिक वर्ग की चेतना।

पुराने ज़माने में ज़मींदार ढोल पिटवाकर समाचार फैलवाते थे, और साथ में लाल झंडा लहराया जाता था। बाद में विभिन्न आंदोलनों के माध्यम से यह झंडा मज़दूरों और श्रमिकों के हाथों में आया।

लाल टोपी फ्रांस में विद्रोह का प्रतीक बन गई थी, जिसकी शुरुआत 1358 की ‘जैकरी’ बगावत से हुई थी।

1791 में फ्रांस में राजतंत्र विरोधी प्रदर्शनकारियों की हत्या कर दी गई। जैकोबिनों ने इन मृतकों को ‘शहीद’ मानते हुए लाल झंडा फहराकर विरोध जताया।

1797 में ब्रिटिश नाविकों ने टेम्स नदी के मुहाने पर विद्रोह करते हुए लाल झंडा उठाया।

1831 में ट्रेड यूनियन समर्थक डिक पेंडरिन की फाँसी के बाद लाल झंडा एक मज़बूत प्रतीक बन गया।

1839–1851 में उरुग्वे के गृह युद्ध में विजयी उदारवादी ‘कोलोराडो’ दल ने लाल झंडा अपनाया।

1848 की क्रांति में समाजवादियों ने लाल झंडा को अपनाया।

1789 की फ्रांसीसी बुरज़ुआ क्रांति (कॉर्पोरेट क्रांति) में भी श्रमिकों ने लाल झंडा लेकर बैरिकेड बनाए। उस समय तक किसी कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म भी नहीं हुआ था।

1871 में ‘पेरिस कम्यून’ आंदोलन में लाल झंडे का आक्रामक प्रयोग हुआ।

इसके बाद आता है प्रसिद्ध अमेरिका का हेमार्केट आंदोलन।

1886 में 1 मई को अमेरिका के मजदूर यूनियनों ने 8 घंटे काम की मांग को लेकर हड़ताल की। मज़दूरों पर अत्याचार शुरू हुआ — पुलिस और कॉरपोरेट के गुंडों ने कई मजदूरों को मार डाला।

4 मई को हेमार्केट में विरोध प्रदर्शन हुआ — पुलिस ने निहत्थे मजदूरों पर गोली चलाई। कई मजदूर और कुछ पुलिसकर्मी मारे गए।

चार मजदूर नेताओं को फाँसी दी गई — इनमें से एक, अल्बर्ट आर पार्सन्स, मई दिवस का अमर प्रतीक बन गए।

इसके बाद कई देशों में 8 घंटे काम की माँग को लेकर आंदोलन फैला।

1889 में दूसरे इंटरनेशनल कांग्रेस में मजदूरों की लड़ाई, उनके अधिकार, दुनिया भर के मजदूरों की एकता और मजदूरी की दासता समाप्त करने की माँग को लेकर ‘इंटरनेशनल मई डे’ मनाने की शुरुआत हुई — खून से सने लाल झंडे के साथ।

1890 में पहली बार 1 मई को मई दिवस मनाया गया।

इंग्लैंड से लेकर दुनिया भर में मई दिवस की परंपरा शुरू हो गई।

मई दिवस — मजदूर एकता का दिवस है। मई दिवस — मजदूरी की दासता से मुक्ति की शपथ का दिन है।

दुनिया भर में पूँजीपति और कॉरपोरेट वर्ग मजदूरों के बीच धर्म, जाति, रंग, वर्ग, आर्थिक विषमता आदि के आधार पर फूट डालते हैं।

इसे बढ़ावा देने के लिए ये लोग दलाल मजदूर, दलाल राजनीतिक पार्टियाँ, दलाल ट्रेड यूनियन और दलाल बुद्धिजीवियों को इस्तेमाल करते हैं। ये दलाल वर्ग ही मजदूरों को संगठित होने से रोकता है।

आज के समय में फ्रांस, जर्मनी, इंग्लैंड, अमेरिका जैसे विकसित देशों में भी मजदूर आंदोलन तेज हो रहे हैं।

यहाँ तक कि अमेरिका के एक स्कूल में छात्रों ने ‘अमेरिका, फिलिस्तीन से हाथ हटाओ’ को लेकर हड़ताल की।

वर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के खिलाफ मेहनतकश जनता की लड़ाई तेज हो रही है।

इसलिए मई दिवस मजदूरी की दासता समाप्त करने की शपथ का दिन है, मजदूर एकता का दिन है।

यह दिन है दलाल गुटों से मजदूरों को मुक्त करने की लड़ाई को तेज करने का,

मजदूरों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने का।

लाल झंडा — श्रमिकों के संघर्ष का प्रतीक — को ऊँचा उठाकर लड़ाई जारी रखने का दिन ही है मई दिवस।

इसलिए —

तुम्हारा मेरा,

धर्म नहीं, जात नहीं,

पहचान हो मजदूर की।

मैं, आप, हम सब — चाहे जिस पार्टी या यूनियन से जुड़ें —

हममें से अधिकांश मजदूर हैं, हम मजदूरी की दासता से बंधे हैं।

इसलिए मई दिवस वह दिन है, जब हम इस बंधन से मुक्त होने की शपथ लेते हैं।

श्रमिकों के खून से रंगा लाल झंडा —

उनके संघर्ष का प्रतीक —

उसे ऊँचा उठाने का दिन है — मई दिवस।

यह लेख किसी व्यक्ति या समूह को ठेस पहुँचाने के लिए नहीं है। फिर भी यदि किसी को ठेस पहुँची हो, तो मैं व्यक्तिगत रूप से क्षमाप्रार्थी हूँ।

Kumar Trikal

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