नई दिल्ली: भारत ने चिकित्सा और विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है। देश के वैज्ञानिकों ने पहली बार पूरी तरह से स्वदेशी एंटीबायोटिक ‘नैफिथ्रोमाइसिन (Nafithromycin)’ विकसित की है। यह दवा खासतौर पर उन खतरनाक श्वसन संक्रमणों (Respiratory Infections) से लड़ने में प्रभावी है, जिन पर अब तक की मौजूदा एंटीबायोटिक्स असर नहीं कर रही थीं।
केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) डॉ. जितेंद्र सिंह ने बताया कि यह एंटीबायोटिक भारत में ही सोची, डिजाइन की गई, विकसित की गई और क्लिनिकल स्तर पर परीक्षण की गई है। उन्होंने कहा कि यह कामयाबी भारत को दवा निर्माण के क्षेत्र में आत्मनिर्भर (Atmanirbhar) बनाने की दिशा में एक बहुत बड़ा कदम है।
कमजोर रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले मरीजों के लिए उम्मीद की किरण
डॉ. सिंह ने बताया कि ‘Nafithromycin’ खास तौर पर उन मरीजों के लिए जीवनदायिनी साबित हो सकती है जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है — जैसे कैंसर के मरीज या अनियंत्रित डायबिटीज से पीड़ित लोग। यह एंटीबायोटिक ऐसे संक्रमणों से निपटने में सक्षम है जो अब तक के पारंपरिक इलाज के प्रति प्रतिरोधक (Resistant) बन चुके हैं।
विश्व स्तर पर मिली पहचान
इस नई खोज से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी विश्व के प्रतिष्ठित मेडिकल जर्नल ‘New England Journal of Medicine’ में प्रकाशित हुई है, जो यह दर्शाती है कि भारत अब बायोमेडिकल इनोवेशन (Biomedical Innovation) में विश्व स्तर पर अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
जीनोम रिसर्च में भी बड़ी प्रगति
डॉ. जितेंद्र सिंह ने आगे बताया कि भारत ने अब तक 10,000 से अधिक मानव जीनोम (Human Genome) का सीक्वेंसिंग पूरा कर लिया है। सरकार का अगला लक्ष्य इसे बढ़ाकर 10 लाख तक ले जाने का है। उन्होंने कहा कि हाल ही में किए गए एक जीन थेरेपी ट्रायल में 60 से 70 प्रतिशत तक सुधार दर्ज किया गया, और इसमें किसी प्रकार की रक्तस्राव (Bleeding) की जटिलता नहीं देखी गई — यह भारत की मेडिकल रिसर्च में एक मील का पत्थर है।
अनुसंधान को मिलेगा बड़ा आर्थिक सहारा
मंत्री ने ‘अनुसंधान राष्ट्रीय अनुसंधान फाउंडेशन (ANRF)’ को देश में अनुसंधान और नवाचार को नई दिशा देने वाला कदम बताया। सरकार ने इसके लिए अगले पांच वर्षों में 50,000 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया है, जिसमें से 36,000 करोड़ रुपये निजी क्षेत्र से जुटाए जाएंगे। इससे भारत में रिसर्च एवं डेवलपमेंट (R&D) के क्षेत्र को मजबूत आर्थिक आधार मिलेगा।
आत्मनिर्भर भारत की ओर एक और कदम
‘Nafithromycin’ का विकास न सिर्फ चिकित्सा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में भारत की ताकत को दर्शाता है, बल्कि यह संकेत भी देता है कि देश अब स्वदेशी नवाचार (Indigenous Innovation) के दम पर वैश्विक स्वास्थ्य चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम है।
भारत में विकसित हुई पहली स्वदेशी एंटीबायोटिक, घातक इन्फेक्शन पर कारगर











