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मजिस्ट्रेट के समक्ष पेशी से 2 घंटे पहले आरोपी को लिखित रूप में बताया जाए गिरफ्तारी का कारण : सुप्रीम कोर्ट

On: November 6, 2025 10:00 PM
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नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक ऐतिहासिक निर्णय सुनाते हुए गिरफ्तार व्यक्ति के संवैधानिक अधिकारों को नई मजबूती दी है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करते समय ‘गिरफ्तारी के आधार’ को लिखित रूप में बताना अब अनिवार्य होगा। चाहे अपराध भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत हो या पूर्ववर्ती भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत।

मुख्य न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की दो-न्यायाधीशों की पीठ ने यह निर्णय “मिहिर राजेश शाह बनाम महाराष्ट्र राज्य” (क्रिमिनल अपील संख्या 2195/2025) मामले में सुनाया। इस प्रकरण में यह मुद्दा उठा था कि अभियुक्त को गिरफ्तारी का कारण लिखित रूप में नहीं बताया गया, जिससे संविधान के अनुच्छेद 22(1) और दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC), 1973 की धारा 50 का उल्लंघन हुआ।

अदालत का निर्देश: लिखित सूचना अब अनिवार्य

पीठ ने कहा कि यदि किसी आपात स्थिति के कारण गिरफ्तारी के तुरंत बाद लिखित कारण देना संभव न हो, तो भी आरोपी को मजिस्ट्रेट के समक्ष रिमांड पर पेश करने से कम से कम दो घंटे पहले गिरफ्तारी का आधार लिखित रूप में देना अनिवार्य होगा।

अदालत ने कहा कि यह प्रावधान न्याय और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के संतुलन के लिए आवश्यक है, जिससे पुलिस की कार्रवाई में पारदर्शिता और जवाबदेही बनी रहे।

दो-स्तरीय प्रक्रिया तय

न्यायालय ने पुलिस और अभियुक्तों के अधिकारों में संतुलन बनाते हुए गिरफ्तारी की दो श्रेणियां तय कीं:

1. मानक मामले (Standard Cases): जहां पुलिस के पास दस्तावेजी साक्ष्य मौजूद हों या आरोपी नोटिस पर पेश होता हो, जैसे आर्थिक अपराध, पीएमएलए (PMLA) आदि के मामलों में गिरफ्तारी के समय ही आरोपी को लिखित रूप में गिरफ्तारी का आधार देना अनिवार्य होगा।


2. असाधारण मामले (Exceptional Cases): जहां अपराध शरीर या संपत्ति के विरुद्ध हो और स्थिति तत्काल कार्रवाई की मांग करे, वहाँ पुलिस अधिकारी आरोपी को मौखिक रूप से गिरफ्तारी का आधार बता सकता है। हालांकि, बाद में इसे लिखित रूप में दर्ज करना अनिवार्य रहेगा।

संविधानिक अधिकारों की दिशा में बड़ा कदम

इस फैसले को नागरिक स्वतंत्रता की दिशा में मील का पत्थर माना जा रहा है। अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी जैसी गंभीर कार्रवाई में ‘जानकारी का अधिकार’ आरोपी का बुनियादी अधिकार है, और इसका पालन न करना संवैधानिक उल्लंघन होगा।

कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह निर्णय न केवल कानून प्रवर्तन एजेंसियों के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश तय करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि कोई भी व्यक्ति अंधेरे में गिरफ्तार न किया जाए।

Vishwajeet

मेरा नाम विश्वजीत कुमार है। मैं वर्तमान में झारखंड वार्ता (समाचार संस्था) में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। समाचार लेखन, फीचर स्टोरी और डिजिटल कंटेंट तैयार करने में मेरी विशेष रुचि है। सटीक, सरल और प्रभावी भाषा में जानकारी प्रस्तुत करना मेरी ताकत है। समाज, राजनीति, खेल और समसामयिक मुद्दों पर लेखन मेरा पसंदीदा क्षेत्र है। मैं हमेशा तथ्यों पर आधारित और पाठकों के लिए उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूं। नए विषयों को सीखना और उन्हें रचनात्मक अंदाज में पेश करना मेरी कार्यशैली है। पत्रकारिता के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करता हूं।

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