झारखंड वार्ता न्यूज
Death Anniversary Of Major Mohit Sharma:- मेजर मोहित शर्मा, जब आप इस नाम और उनकी कहानी को पढ़ेंगे तो आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। आज उनकी पुण्यतिथि है, उन्होंने अकेले अपने दो साथियों को बचाते हुए 25 आतंकियों से लोहा लिया था। मेजर मोहित शर्मा का जन्म 13 जनवरी 1978 को मेरठ जनपद के रासना गांव में हुआ था। मेजर मोहित शर्मा 21 मार्च 2009 को नॉर्थ कश्मीर के कुपवाड़ा में महज 31 साल की उम्र में शहीद हो गए थे। मेजर मोहित शर्मा पर फिल्म भी बनी है, फिल्म का नाम ‘इफ्तिखार’ है, जो 15 अगस्त 2022 को रिलीज की गई थी।
1995 में मेजर मोहित इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़ कर NDA में शामिल हो गए। NDA में अकादमिक अध्ययन पूरा करने के बाद उन्होंने 1998 में भारतीय सैन्य अकादमी (IMA) में प्रवेश लिया।उन्हें 11 दिसंबर 1999 को लेफ्टिनेंट नियुक्त किया गया। सैन्य सेवा के 3 साल के बाद मेजर को ‘पैरा स्पेशल फोर्सेज’ के लिए चुना गया और वो 2003 में एक प्रशिक्षित पैरा कमांडो बने।

मेजर मोहित शर्मा/इफ्तिखार भट्ट
दक्षिण कश्मीर से 50 किमी दूर शोपियां में मेजर ने एक विशेष ऑपरेशन को अंजाम दिया था। मेजर ने इस काम के लिए सबसे पहले अपना नाम और हुलिया बदला। उन्होंने लम्बी दाढ़ी-मूँछ रख कर आतंकियों की तरह अपने हाव-भाव बनाए। फिर ‘इफ्तिखार भट्ट’ नाम के जरिए वह हिजबुल मुजाहिदीन के खूंखार आतंकियों, अबू तोरारा और अबू सबजार के संपर्क में आए। इसके बाद मेजर ने बतौर इफ्तिखार भट्ट दोनों हिजबुल आतंकियों को ये कहकर विश्वास दिलाया कि भारतीय सेना ने उनके भाई को साल 2001 में मारा था और अब वह बस सेना पर हमला करके बदला चाहते हैं। उन्होंने अपने मनगढ़ंत मंसूबे बताकर आतंकियों से कहा कि इस काम में उन्हें उन दोनों की मदद चाहिए। मेजर शर्मा ने दोनों आतंकियों से कहा कि उन्हें आर्मी के चेक प्वाइंट पर हमला बोलना है और उसके लिए वह जमीनी काम कर चुके हैं। मेजर शर्मा के इस ऑपरेशन में आतंकियों ने कई बार उनसे उनकी पहचान पूछी। लेकिन वह कहते, “मुझे तुम्हारी मदद चाहिए। मुझको सीखना है।” तोरारा ने तो कई बार उनकी पहचान के बारे में उनसे पूछा। लेकिन आखिरकार वे मेजर शर्मा के जाल में फँस गए और मदद करने को राजी हो गए। आतंकियों ने उन्हें बताया कि वह कई हफ्तों तक अंडरग्राउंड रहेंगे और आतंंकी हमले के लिए मदद जुटाएँगे। किसी तरह मेजर ने उन्हें मना ही लिया कि वह तब तक घर नहीं लौटेंगे जब तक चेक प्वाइंट को उड़ा नहीं देते।

हिजबुल आतंकियों को यूं उतारा मौत के घाट
देखते ही देखते आने वाले दिनों में दोनों आतंकियों ने सब व्यवस्था कर ली। साथ ही पास के ग्रामों से तीन आतंकियों को भी बुला लिया। जब तोरारा को दोबारा संदेह हुआ तो मेजर ने उससे कहा, “अगर मेरे बारे में कोई शक है तो मुझे मार दो।” अपने हाथ से राइफल छोड़ते हुए वह आतंकियों से बोले, “तुम ऐसा नहीं कर सकते, अगर तुम्हें मुझ पर विश्वास नहीं है। इसलिए तुम्हारे पास अब मुझे मारने के अलावा कोई चारा नहीं है।” मेजर की बातें सुनकर दोनों आतंकी असमंजस में पड़ गए। इतने में मेजर मोहित शर्मा को मौका मिला और उन्होंने थोड़ी दूर जाकर अपनी 9mm पिस्टल को लोड कर दोनों आतंकियों को मौत के घाट उतार दिया। उन्होंने दो गोलियां आतंकियों के छाती और एक सिर में मारी। इसके बाद वह उनके हथियार उठाकर भागकर नजदीक के आर्मी कैंप में गए।
