जमशेदपुर: आदिवासी स्वशासन व्यवस्था में सुधार के बगैर डायन- हत्याओं का रोकथाम असंभव जैसा है। उक्त बातें आदिवासी एकल अभियान के राष्ट्रीय अध्यक्ष और पूर्व सांसद सालखन मुर्मू ने कही।
उन्होंने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा कि “चाईबासा में नरसंहार: डायन बताकर माता-पिता और दो मासूमों की हत्या” जैसा समाचार दिल को दहला देता है। कल हाटगम्हरिया थाना क्षेत्र के नुरदा गांव में घटित आदिवासी परिवारों की नृशंस हत्या के पीछे डायन हत्या या जमीन विवाद से हत्या का मामला हो मगर यह अन्याय, अत्याचार, शोषण का वीभत्स पशुवत कृत्य है। परन्तु चिंता का विषय यह है कि ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं की पुनरावृत्ति प्रत्येक आदिवासी गांव- समाज में निरंतर चालू क्यों है? आखिर यह कब रुकेगा और कैसे रुकेगा?
आदिवासी सेंगेल अभियान के अनुसार इनकी रोकथाम आदिवासी गांव- समाज में व्यवस्था परिवर्तन के बगैर असंभव है। क्योंकि आदिवासी गांव- समाज में नशापान,अंधविश्वास, डायन प्रथा, जुर्माना लगाना, सामाजिक बहिष्कार, ईर्ष्या द्वेष, महिला विरोधी मानसिकता, वोट की खरीद बिक्री, धर्मांतरण आदि को सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है। इनको रोकने की जगह आदिवासी स्वशासन व्यवस्था प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष इनको आगे बढ़ाने का काम करती है। व्यवस्था के तहत नियुक्त वंशानुगत मानकी मुंडा, माझी परगना आदि उपरोक्त मामलों पर रूढ़ि, प्रथा, परंपरा के नाम पर चुप रहते हैं। अतः जब तक आदिवासी स्वशासन व्यवस्था में जनतांत्रिक सुधार और संविधान, कानून, मानव अधिकारों को गांव- समाज में लागू नहीं किया जाएगा यह अन्याय, अत्याचार, शोषण जारी रहेगा।
सेंगेल घटना के अपराधियों को फांसी के फंदे पर लटकाने के साथ सरकार और समाज से संविधान सम्मत त्वरित व्यवस्था परिवर्तन की मांग करता है। सेंगेल उम्मीद करता है आदिवासी हो समाज महासभा, मानकी मुंडा संघ, माझी पारगना महल आदि संगठनों के साथ-साथ सभी शिक्षित आदिवासी इस चुनौती को स्वीकार करेगा, चुप नहीं रहेगा।