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Tulsi Vivah 2025: तुलसी विवाह आज, जानिए पूजा मुहूर्त, विधि और महत्व

On: November 2, 2025 7:53 AM
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Tulsi Vivah 2025: देवउठनी एकादशी के साथ ही भगवान विष्णु के शय्या त्यागने का समय आता है और धार्मिक अनुष्ठानों का शुभ आरंभ होता है। इन्हीं प्रमुख पर्वों में से एक है तुलसी विवाह, जिसे अत्यंत शुभ, पुण्यदायक और पवित्र अनुष्ठान माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह विवाह भगवान शालिग्राम (विष्णु जी) और माता तुलसी का प्रतीकात्मक विवाह होता है।

इस वर्ष तुलसी विवाह का पर्व 2 नवंबर 2025, रविवार को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार कार्तिक शुक्ल द्वादशी तिथि इस दिन सुबह 7:33 बजे से प्रारंभ होकर 3 नवंबर की सुबह 2:07 बजे तक रहेगी। उदया तिथि के अनुसार पूजा 2 नवंबर को ही की जाएगी। माना जाता है कि इस दिन तुलसी विवाह करने से घर में सुख-शांति, वैवाहिक जीवन में सौहार्द और समृद्धि का आगमन होता है। विशेष रूप से जिनके घर में कन्या नहीं होती, उन्हें जीवन में एक बार तुलसी विवाह अवश्य कराना चाहिए।


तुलसी विवाह के शुभ मुहूर्त

मुहूर्त – समय

ब्रह्म मुहूर्त- सुबह 04:50 – 05:42
प्रातः सन्ध्या- सुबह 05:16 – 06:34
अभिजित मुहूर्त- दोपहर 11:42 – 12:26
विजय मुहूर्त- दोपहर 01:55 – 02:39
गोधूलि मुहूर्त – शाम 05:35 – 06:01
त्रिपुष्कर योग- सुबह 07:31 – शाम 05:03
सर्वार्थ सिद्धि योग- शाम 05:03 – अगले दिन 06:34

शाम का समय तुलसी विवाह के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है।


पूजा-विधि और परंपराएँ

• आंगन या मंदिर में तुलसी चौरे को सजाएं।

• गन्ने से छोटा मंडप बनाएं, लाल चुनरी एवं सुहाग सामग्री चढ़ाएं।

• भगवान शालिग्राम को दूध, हल्दी से स्नान कराकर सजाएं।

• मंगलाष्टक और विवाह मंत्रों का पाठ करें।

• मूली, बेर, आंवला आदि अर्पित करें।

• आरती कर प्रसाद चढ़ाएं।

• तुलसी माता की 11 बार परिक्रमा करें।

• दीपक जलाकर शाम में विवाह संपन्न करें।


ध्यान रखें

• शालिग्राम पर चावल अर्पित न करें।

• पूजा में तिल, फूल और तुलसी दल का प्रयोग करें।

• अविवाहित कन्याओं को तुलसी पर चुनरी चढ़ानी चाहिए। मान्यता है कि इससे उत्तम विवाह योग बनता है।


तुलसी विवाह की पौराणिक कथा

पुराणों के अनुसार असुर जालंधर अपनी पत्नी वृंदा की पतिव्रता शक्ति के कारण अजेय था। देवताओं की प्रार्थना पर भगवान विष्णु ने जालंधर का रूप धारण कर वृंदा का सतीत्व भंग किया, जिससे जालंधर का वध संभव हुआ। सत्य का पता चलने पर वृंदा ने विष्णु को श्राप दिया कि वे पत्थर बन जाएंगे, इसी श्राप से भगवान विष्णु शालिग्राम रूप में प्रतिष्ठित हुए। बाद में वृंदा सती हो गईं और उनकी राख से ही तुलसी का जन्म माना जाता है।

भगवान विष्णु ने आशीर्वाद दिया कि तुलसी उनके लिए सर्वोप्रिय होंगी और बिना तुलसी के वे प्रसाद स्वीकार नहीं करेंगे। तभी से कार्तिक शुक्ल द्वादशी को तुलसी-विवाह का पावन पर्व मनाया जाता है।

आस्था, आराधना और समृद्धि का पर्व

तुलसी विवाह केवल धार्मिक अनुष्ठान ही नहीं, बल्कि शुभ ऊर्जा, वैवाहिक सौभाग्य और गृहस्थ सुख का उत्सव है। मान्यता है कि इस दिन किया गया पूजन मनोकामनाओं की पूर्ति और परिवार में मंगलमयता लाता है।

Vishwajeet

मेरा नाम विश्वजीत कुमार है। मैं वर्तमान में झारखंड वार्ता (समाचार संस्था) में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। समाचार लेखन, फीचर स्टोरी और डिजिटल कंटेंट तैयार करने में मेरी विशेष रुचि है। सटीक, सरल और प्रभावी भाषा में जानकारी प्रस्तुत करना मेरी ताकत है। समाज, राजनीति, खेल और समसामयिक मुद्दों पर लेखन मेरा पसंदीदा क्षेत्र है। मैं हमेशा तथ्यों पर आधारित और पाठकों के लिए उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूं। नए विषयों को सीखना और उन्हें रचनात्मक अंदाज में पेश करना मेरी कार्यशैली है। पत्रकारिता के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करता हूं।

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