खतियान के बहाने जाति प्रमाण पत्र देने से इंकार असंवैधानिक: सुधीर कुमार पप्पू
मुख्यमंत्री को बदनाम करने की साजिश
जमशेदपुर: समाजवादी चिंतक एवं अधिवक्ता सुधीर कुमार पप्पू ने राज्य सरकार के संबंधित कर्मचारियों को निशाने पर लेते हुए कहा कि खातियान की आड़ में किसी जाति विशेष को जाति प्रमाण पत्र देने से इनकार करना उसके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है।
उन्होंने कहा कि जनजातीय वर्ग से आने वाले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ सरकारी कर्मचारियों का एक वर्ग यह माहौल बनाने में जुटा है कि वे पिछड़ा वर्ग विरोधी हैं। यह एक सुनियोजित साजिश है, जिसे मुख्यमंत्री और राज्य सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए।
राज्य सरकार बड़ी संख्या में सरकारी नौकरी के लिए भर्तियां निकाल रही है एवं उच्च शिक्षा हेतु कॉलेज में दाखिला न होना नामांकन के समय शुल्क में राहत, और झारखंड के योग्य अभ्यर्थी जाति प्रमाण पत्र के अभाव में इन अवसरों से वंचित हो सकते हैं।
अन्य पिछड़ा वर्ग, अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति को जो अवसर भारतीय संविधान के अंतर्गत मिलने चाहिए, उनसे वंचित करने की यह एक गंभीर साजिश है।
सुधीर कुमार पप्पू ने सिविल रिट पिटीशन संख्या 3186/2011 (शोवित एवं अन्य बनाम झारखंड सरकार एवं अन्य)का उल्लेख करते हुए कहा कि झारखंड हाई कोर्ट ने खातियान को लेकर स्थिति स्पष्ट कर दी है।
हाई कोर्ट के संज्ञान में यह तथ्य आया कि खातियान का होना अनिवार्य नहीं है, क्योंकि किसी व्यक्ति के पास भूमि हो भी सकती है या वह भूमिहीन भी हो सकता है।
यदि कोई आवेदक किसी जाति विशेष से संबंधित है और वह अपने दस्तावेजों के माध्यम से इसे सिद्ध कर देता है, तो उसे उस जाति का प्रमाण पत्र अनिवार्य रूप से जारी किया जाना चाहिए।
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