जमशेदपुर: ज्ञानवर्धक व प्रेरणादाई फिल्मों का समाज के हर तबके तक पहुंच होना आवश्यक है, इसी सोच के साथ युवा फिल्म निर्माताओं से सजी वीपीआरए फाउंडेशन ने सामाजिक संस्था निश्चय फाउंडेशन के संयुक्त तत्वाधान में गांव फिल्म फेस्टिवल का शुभारंभ किया।
फेस्टिवल के माध्यम से प्रेरणादाई व समाज के लिए उपयोगी फिल्मों का प्रदर्शन गांव गांव में किए जाने की योजना है। इसी क्रम में बुधवार को पटमदा स्थित राज्य संपोषित +2 उच्च विद्यालय में बच्चों के लिए प्रेरणादायी फिल्म “आई एम कलाम”, कृषि आधारित ग्रामीण सभ्यता पर आधारित संताली फिल्म “हिदीज” व कोरोना काल के दौरान सैनिटरी पैड रिलीफ कैंपेन पर आधारित “कैंपेन ऑफ टफ़ टाइम” की विशेष स्क्रीनिंग की गई।
हर फिल्म के प्रदर्शन के बाद संवाद सत्र के माध्यम से बच्चों के साथ फिल्म की कहानी और जुड़े पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई, बताया गया कि फिल्में भी सीखने का बड़ा जरिया हो सकता है, बशर्ते हम देखी जाने वाली फिल्मों व डिजिटल सामग्रियों का चयन विवेकपूर्ण तरीके से करे। नील माधव पंडा द्वारा निर्देशित फिल्म “आई एम कलाम” की कहानी में एक बच्चा महान वैज्ञानिक व भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम से प्रेरणा लेकर अपने जीवन का नया मोड देता है। वही फिल्म “हिदीज” व “कैंपेन ऑफ टफ़ टाइम” के कहानी के माध्यम यह बात उभर कर आई कि केवल बड़े पर्दे की सिनेमा ही नहीं, हमारे आस पास, गांव घर की कहानियां भी उतनी ही महत्वपूर्ण है, बस उसे रचनात्मक दृष्टिकोण से देखा जाना आवश्यक है। हमारा दृष्टिकोण ही हमें सफलता की और अग्रसर करता है।
गांव फिल्म फेस्टिवल का मुख्य उद्देश्य प्रेरणादायक सिनेमा को गांव-गांव तक पहुंचाना और बच्चों व ग्रामीण समुदायों को सामाजिक, शैक्षिक एवं नैतिक विषयों पर जागरूक करना है। यह पहल सिनेमा को केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं, बल्कि सामाजिक बदलाव के एक प्रभावी उपकरण के रूप में प्रस्तुत करना है। फिल्म स्क्रीनिंग के दौरान एस एस +2 उच्च विद्यालय पटमदा के प्राचार्य मिथिलेश कुमार , शिक्षिका अनीता मुर्मू, अल्पा रोशनी बाखला व अन्य शिक्षक शिक्षिकाएं, वीपीआरए फाउंडेशन से फिल्मकार
प्रज्ञा सिंह, कुणाल देव, विकास कुमार, प्रकाश केशरी, पंकज अग्रवाल तथा सामाजिक संस्था निश्चय फाउंडेशन के संस्थापक तरुण कुमार मुख्य रूप से उपस्थित थे। गांव फिल्म फेस्टिवल के फिल्म स्क्रीनिंग में वर्ग 9वीं व 10वी के लगभग 150 बच्चे शामिल हुए।
अपने विद्यालय में रूचिपूर्ण फिल्म देखकर बच्चों के चेहरे पर मुस्कान देखते ही बनती थी।