विश्व वरिष्ठ नागरिक दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस ( WEAAD) एक वैश्विक स्वास्थ्य देखभाल कार्यक्रम है, जिसे पिछले 17 वर्षों से हर साल 15 जून को मनाया जाता है।
भारत में बुज़ुर्ग महिलाओं एवं बुजुर्गों की देखभाल एवं संरक्षण के लिए कई कानून मौजूद हैं जो उनकी गरिमा, सम्मानपूर्ण जीवन एवं भरण-पोषण के अधिकार की रक्षा करते हैं। “भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023” (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita, 2023) ने दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 का स्थान लिया है और इसे नागरिक-केन्द्रित दृष्टिकोण से तैयार किया गया है, जिसमें बुज़ुर्गों के अधिकारों की विशेष सुरक्षा सुनिश्चित की गई है।
1. भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 में प्रावधान
धारा 144(1)(d) में स्पष्ट किया गया है कि यदि किसी माता या पिता के पास अपने जीवनयापन के लिए आवश्यक संसाधन नहीं हैं, तो वे अपने संतान से भरण-पोषण पाने के अधिकारी हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यह निर्णय दिया है कि इस धारा में प्रयुक्त “his” शब्द का तात्पर्य केवल पुत्र से नहीं, बल्कि पुत्री से भी है। अतः एक विवाहित बेटी भी अपने माता-पिता की भरण-पोषण की जिम्मेदारी से विमुख नहीं हो सकती।
न्यायपालिका ने यह भी रेखांकित किया है कि विधिक कर्तव्य के साथ-साथ भारतीय संस्कृति और नैतिकता भी संतान को अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल करने की जिम्मेदारी सौंपती है। यह प्रावधान धर्म, लिंग या वैवाहिक स्थिति की परवाह किए बिना सभी पर लागू होता है। यदि कोई विधवा सौतेली माँ स्वयं का पालन-पोषण करने में असमर्थ है, तो वह अपने सौतेले पुत्र से भरण-पोषण की मांग कर सकती है।
यह प्रावधान सामाजिक न्याय के आधार स्तंभ के रूप में कार्य करता है और संविधान के अनुच्छेद 15(3) और अनुच्छेद 39 के उद्देश्यों के अनुरूप है, जो महिलाओं, बच्चों और वृद्धों की विशेष सुरक्षा की बात करता है।
2. हिंदू विधि में बुज़ुर्ग महिलाओं का संरक्षण
हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 के अनुसार, भरण-पोषण में भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा और चिकित्सा उपचार शामिल हैं। एक अविवाहित पुत्री के लिए इसमें विवाह के आवश्यक खर्च भी शामिल हैं।
प्राचीन धर्मशास्त्रों और मनुस्मृति में स्पष्ट उल्लेख है कि वृद्ध माता-पिता, पत्नी और छोटे बच्चों का भरण-पोषण करना प्रत्येक हिंदू का व्यक्तिगत कर्तव्य है। मिताक्षरा प्रणाली के अनुसार, उत्तराधिकार की संपत्ति न होने पर भी पुत्र पर अपने वृद्ध माता-पिता की देखभाल की जिम्मेदारी होती है।
धारा 20 के अनुसार, कोई भी हिंदू अपने माता-पिता की भरण-पोषण तब तक करेगा जब तक कि वे स्वयं से अपना भरण-पोषण करने में असमर्थ हों। यदि कोई माता-पिता अपनी संपत्ति या आय से स्वयं का भरण-पोषण कर सकते हैं, तो संतान की कानूनी जिम्मेदारी नहीं बनती।
3. मुस्लिम विधि में बुज़ुर्ग महिलाओं का अधिकार
इस्लामी कानून, विशेषकर हानाफ़ी मत, यह मानता है कि यदि माता-पिता ज़रूरतमंद हों और उनके पास पर्याप्त संसाधन न हों, तो पुत्र और पुत्री दोनों पर उनकी देखभाल का कर्तव्य है। इस्लाम में माँ को भरण-पोषण हेतु विशेष प्राथमिकता दी गई है।
यदि कोई संतान आर्थिक रूप से सक्षम हो, तो उस पर अपने वृद्ध माता-पिता (या दादी-दादा) का भरण-पोषण करना अनिवार्य है, भले ही उन्होंने इस्लाम को त्याग दिया हो। यदि संतान के पास धन नहीं है, तो कोर्ट जबरदस्ती भरण-पोषण का आदेश नहीं देगी, लेकिन उन्हें अपने माता-पिता को साथ रखकर देखभाल करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है।
4. सिख, ईसाई और पारसी कानून
सिखों का अपना कोई पृथक पारिवारिक कानून नहीं है, अतः वे हिंदू विधि के अंतर्गत आते हैं और उसी के अनुसार भरण-पोषण का दावा कर सकते हैं। ईसाई और पारसी समुदायों के पास भी अपने माता-पिता की देखभाल हेतु विशिष्ट पर्सनल लॉ नहीं है। अतः वे भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 या अन्य सामान्य विधिक उपायों के अंतर्गत न्याय की मांग कर सकते हैं।
5. वरिष्ठ नागरिकों का संरक्षण अधिनियम, 2007
“माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण अधिनियम, 2007” भारत सरकार द्वारा विशेष रूप से माता-पिता एवं वृद्धजनों के कल्याण हेतु पारित किया गया था।
इस अधिनियम के अनुसार:
माता-पिता शब्द में जैविक, दत्तक, सौतेले माता-पिता शामिल हैं।
संतान या अन्य संबंधी वृद्धजन की देखभाल के लिए उत्तरदायी होते हैं।
यदि कोई व्यक्ति वृद्धजन को जानबूझकर किसी स्थान पर छोड़कर चला जाता है, तो उसे तीन माह तक की कारावास, या पांच हज़ार रुपये तक का जुर्माना, या दोनों दंड मिल सकते हैं।
यह अधिनियम दंडनीय अपराधों को जमानती और संज्ञानात्मक बनाता है।
राज्य सरकारों को इस अधिनियम के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु नियमित मूल्यांकन और निगरानी करनी होती है।
निष्कर्ष
बुज़ुर्ग महिलाओं की उपेक्षा या उनके साथ की गई हिंसा न केवल नैतिक अपराध है, बल्कि कानून के तहत एक दंडनीय अपराध भी है। चाहे वह पुत्र हो या पुत्री, विवाह के बाद भी माता-पिता के प्रति उत्तरदायित्व समाप्त नहीं होते। भारतीय विधिक ढांचा वृद्ध महिलाओं की गरिमा और अधिकारों की रक्षा के लिए स्पष्ट, सशक्त और व्यापक है।