बस्तर (छत्तीसगढ़): लिसा नाम की एक लड़की की कहानी दिल को झकझोर देने वाली है। केवल छह साल की उम्र में ही उसे दुनिया की आवाज़ों से वंचित कर दिया गया था। खेल, दौड़-भाग और हंसी से भरी बचपन की उम्र उसके लिए सन्नाटे और अंधेरे में बदल गई।
यह दर्दनाक कहानी बस्तर के छोटे गांव बकावंड की है, जहां लिसा का पूरा संसार बीस साल तक एक छोटे, अंधेरे कमरे तक सीमित रहा। उस कमरे में ना खिड़की थी, ना रोशनी, और ना ही हवा। उसके बाहर रखी थाली की आवाज़ ही उसका सम्पर्क थी, और अंधकार ही उसकी पहचान बन गया।
बीस साल बाद पहली बार किसी ने उसका नाम पुकारा। पहली बार किसी ने उसका हाथ थामा। और पहली बार लिसा ने महसूस किया कि वह अकेली नहीं है।
कैद का भयावह कारण
लिसा को किसी अपराध की वजह से नहीं, बल्कि डर के चलते बंद किया गया था। बीस साल पहले गांव में रहने वाले एक युवक की नजर मासूम लिसा पर पड़ी थी। उसकी मां गुजर चुकी थी और पिता गरीब थे। सुरक्षा के नाम पर, पिता ने डर से उसे उसी कमरे में बंद कर दिया, जिसे वे सुरक्षा समझते थे।
छह साल की उम्र में लिसा ने स्कूल जाना, लोगों से मिलना और धूप देखना बंद कर दिया। दिन-प्रतिदिन उसका पूरा संसार उसी छोटे कमरे तक सीमित हो गया। पिता का इरादा भले ही उसे बचाने का था, लेकिन इस डर ने उसे अंधकार और तनहाई में जकड़ दिया।
20 साल बाद नई जिंदगी
सामाजिक न्याय विभाग की टीम जब वहां पहुंची, तो उन्होंने एक ऐसी लड़की पाई जो दुनिया को भूल चुकी थी। इतनी लंबी कैद ने उसकी आंखों की रोशनी छीन ली थी और आत्मविश्वास को पूरी तरह तोड़ दिया था।
अब लिसा ‘घरौंदा आश्रम’ में सामाजिक कल्याण विभाग की देखरेख में है। धीरे-धीरे वह मुस्कुराना, चलना, बोलना, और लोगों पर भरोसा करना सीख रही है। पहले उसे खाना ठीक से नहीं आता था, लेकिन अब वह खुद खाना खाती है, नहाती है और अपने जीवन की छोटी-छोटी गतिविधियों को सीख रही है।
डॉक्टरों का कहना है कि उसकी आंखों की रोशनी शायद कभी पूरी तरह वापस न आए, लेकिन सही देखभाल और समाज का सहयोग उसे खोई हुई जिंदगी वापस दिला सकता है।
जांच और सुरक्षा
सामाजिक कल्याण विभाग ने मामला गंभीरता से लेते हुए जांच शुरू कर दी है। जांच के तीन पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है:
1. लिसा को इतनी लंबी कैद में रखने की परिस्थितियां।
2. उपेक्षा या किसी प्रकार की आपराधिक लापरवाही।
3. क्या यह गैरकानूनी रूप से कैद और मानवाधिकार उल्लंघन का मामला है।
प्रशासन ने कहा कि जांच रिपोर्ट आने के बाद ही कार्रवाई शुरू की जाएगी।
उम्मीद की किरण
लिसा की कहानी भले ही दर्द से शुरू हुई, लेकिन अब उम्मीद की ओर बढ़ रही है। कहा जाता है कि घाव चाहे कितना भी पुराना हो, सही देखभाल से भर सकता है। लिसा की आंखों की रोशनी वापस न भी आए, तो समाज का हाथ थामना उसकी जिंदगी में अंधकार को रोशनी में बदल सकता है।
20 साल तक अंधेरे कमरे में कैद रही लिसा, वजह जानकर रह जाएंगे दंग














