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‘पायजामे की डोरी खिंचना… प्राइवेट पार्ट पकड़ना रेप नहीं’, इलाहाबाद HC के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट सख्त; CJI सूर्यकांत बोले- गाइडलाइन बनाएंगे

On: December 9, 2025 7:14 PM
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नई दिल्ली: यौन उत्पीड़न से जुड़े मामलों में अदालतों द्वारा की जाने वाली असंवेदनशील और पीड़ित को मानसिक रूप से आहत करने वाली टिप्पणियों पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान मुख्य न्यायाधीश (CJI) सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने संकेत दिया कि जल्द ही ऐसे मामलों में न्यायाधीशों और अदालतों के लिए विशेष दिशानिर्देश जारी किए जा सकते हैं।

पीठ ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि कई बार अदालतों की टिप्पणियां पीड़ितों को निरुत्साहित कर देती हैं और कई मामलों में इनका उपयोग पीड़ितों पर दबाव बनाने, उन्हें डराने या शिकायत वापस लेने के लिए भी किया जाता है। CJI सूर्यकांत ने कहा, “असंवेदनशील टिप्पणियां पीड़ितों पर डर पैदा करने वाला प्रभाव डालती हैं। यह एक गंभीर मुद्दा है और इसे रोकने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश आवश्यक हैं।”

इलाहाबाद हाई कोर्ट का विवादित फैसला रद्द होगा

यह सुनवाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा मार्च में लिए गए स्वतः संज्ञान का हिस्सा थी। कोर्ट ने तब इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस विवादित निर्णय पर ध्यान दिया था, जिसमें कहा गया था कि ‘स्तन दबाने’ और ‘पायजामे की डोरी खींचने’ जैसी हरकतों से बलात्कार का अपराध सिद्ध नहीं होता।

CJI ने स्पष्ट किया कि हाई कोर्ट का यह आदेश रद्द किया जाएगा और ट्रायल बिना किसी व्यवधान के आगे बढ़ेगा। उन्होंने कहा, हम हाई कोर्ट का फैसला निरस्त करेंगे। अभियोजन पक्ष को निष्पक्ष और निर्बाध तरीके से अपना पक्ष रखने दिया जाएगा।

अमिकस क्यूरी ने रखे कई चिंताजनक उदाहरण

सुनवाई के दौरान अमिकस क्यूरी और वरिष्ठ अधिवक्ता शोभा गुप्ता ने अदालत के समक्ष कई महत्वपूर्ण उदाहरण प्रस्तुत किए। उन्होंने बताया कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की एक और टिप्पणी में रात में हुई घटना को ‘आमंत्रण’ जैसा बताया गया था। कोलकाता और राजस्थान हाई कोर्ट से भी इसी तरह के चिंताजनक अवलोकन सामने आए हैं। हाल ही में एक इन-कैमरा ट्रायल में एक नाबालिग पीड़िता के साथ न्यायिक प्रक्रिया के दौरान अनुचित व्यवहार की घटना भी सामने आई, जो बेहद गंभीर है।

गुप्ता ने कहा कि ऐसी टिप्पणियां न केवल पीड़ितों की गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं बल्कि न्यायिक प्रक्रिया को भी कमजोर करती हैं।

निचली अदालतों की टिप्पणियां अक्सर रह जाती हैं अनदेखी

CJI सूर्यकांत ने कहा कि निचली अदालतों में की गई कई संवेदनहीन टिप्पणियों को रिकॉर्ड पर नहीं लाया जाता और वे अक्सर अनदेखी रह जाती हैं। उन्होंने अमिकस से विस्तृत सुझाव मांगे, जिनके आधार पर सुप्रीम कोर्ट व्यापक दिशानिर्देश तैयार करेगा।

CJI ने आश्वस्त किया, “हम यह सुनिश्चित करेंगे कि न्यायिक टिप्पणियों के कारण किसी भी पीड़ित के अधिकारों को नुकसान न पहुंचे। अदालतों की जिम्मेदारी है कि वे संवेदनशील मामलों में पूरी मर्यादा और संवेदना के साथ कार्य करें।”

जल्द जारी हो सकते हैं देशव्यापी दिशानिर्देश

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद यह स्पष्ट है कि देशभर की अदालतों के लिए जल्द ही ऐसे नियम तय किए जा सकते हैं, जिनका उद्देश्य होगा पीड़ितों को मानसिक रूप से सुरक्षित माहौल प्रदान करना, न्यायिक प्रक्रिया में किसी भी प्रकार की शर्मिंदगी या दबाव को रोकना, निचली अदालतों में टिप्पणी और भाषा के प्रयोग के लिए स्पष्ट मानक तय करना और  यौन अपराध मामलों में न्यायाधीशों के लिए संवेदनशीलता आधारित प्रशिक्षण सुनिश्चित करना।

देशभर में यौन अपराधों के मामलों की सुनवाई के दौरान न्यायिक मर्यादा और संवेदनशीलता पर यह कदम एक अहम सुधार माना जा रहा है।

Vishwajeet

मेरा नाम विश्वजीत कुमार है। मैं वर्तमान में झारखंड वार्ता (समाचार संस्था) में कंटेंट राइटर के पद पर कार्यरत हूं। समाचार लेखन, फीचर स्टोरी और डिजिटल कंटेंट तैयार करने में मेरी विशेष रुचि है। सटीक, सरल और प्रभावी भाषा में जानकारी प्रस्तुत करना मेरी ताकत है। समाज, राजनीति, खेल और समसामयिक मुद्दों पर लेखन मेरा पसंदीदा क्षेत्र है। मैं हमेशा तथ्यों पर आधारित और पाठकों के लिए उपयोगी सामग्री प्रस्तुत करने का प्रयास करता हूं। नए विषयों को सीखना और उन्हें रचनात्मक अंदाज में पेश करना मेरी कार्यशैली है। पत्रकारिता के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने की कोशिश करता हूं।

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