नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को CPI (माओवादियों) के युद्धविराम के प्रस्ताव को ठुकरा दिया और स्पष्ट कहा कि युद्धविराम की कोई आवश्यकता नहीं है। अगर कोई नक्सली आत्मसमर्पण कर हथियार डालना चाहता है तो सुरक्षा बल उस पर एक भी गोली नहीं चलाएंगे और सरकार लाभदायक पुनर्वास नीति के साथ उनका स्वागत करेगी। उन्होंने यह बात ‘नक्सल मुक्त भारत’ सेमिनार के समापन सत्र में कही।
शाह ने कहा, “मैं आपको बताना चाहता हूँ कि कोई युद्धविराम नहीं होगा. यदि आप आत्मसमर्पण करना चाहते हैं, तो हथियार डाल दीजिए, एक भी गोली नहीं चलेगी। यदि आप आत्मसमर्पण करते हैं तो आपका लाल कालीन बिछाकर स्वागत किया जाएगा।” उन्होंने आत्मसमर्पण करने वालों के लिए सरकार की पुनर्वास नीति को ‘लाभदायक’ और ‘मानवीय’ बताया।
गृह मंत्री ने यह टिप्पणी CPI (माओवादियों) द्वारा कुछ समय पहले दिए गए युद्धविराम के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया में की — उस प्रस्ताव के पीछे सुरक्षाबलों की हालिया सघन कार्रवाइयों, खासकर छत्तीसगढ़–तेलंगाना सीमा पर चलाए गए ‘ऑपरेशन ब्लैक फ़ॉरेस्ट’ में कई शीर्ष नक्सलियों के सफाए की पृष्ठभूमि बताई जा रही है। शाह ने इन ऑपरेशनों का ज़िक्र करते हुए कहा कि इन्हीं सफल कार्रवाइयों के बाद माओवादी पक्ष ने युद्धविराम का प्रस्ताव रखा।
शाह ने नक्सलवाद के कारणों पर भी बात की और कहा कि केवल हिंसा को दबाने भर से समस्या समाप्त नहीं होगी। उनका कहना था कि नक्सल विचारधारा को समाज के भीतर मिलने वाले वैचारिक, कानूनी और वित्तीय समर्थन ने इसे पनपने और फैलने में मदद की, इसलिए उन लोगों की पहचान और भूमिका पर भी ध्यान देना होगा जो इस विचारधारा को पोषित करते रहे हैं।
अमित शाह ने सरकार का दावा दोहराया कि देश को ‘नक्सल मुक्त’ बनाना प्राथमिकता है और वे आश्वस्त हैं कि भारत 31 मार्च, 2026 तक नक्सलवाद से मुक्त हो जाएगा।
नक्सलियों द्वारा मौजूदा प्रस्ताव में कहा गया था कि पिछले कुछ वर्ष की घटनाएं गलती थीं और अब संघर्ष विराम घोषित कर आत्मसमर्पण का रास्ता चुना जाना चाहिए। इस प्रस्ताव को अमित शाह ने स्वीकार नहीं किया। उनके अनुसार, युद्धविराम का औपचारिक आग्रह आवश्यक नहीं है; असल बात यह है कि संयुक्त मंशा के साथ वे हथियार डालें और लोकतांत्रिक रास्ते अपनाएं, तब सुरक्षा बल जवाब देने की बजाय उन्हें समाज में शामिल करने के लिये कदम उठाएंगे।
शाह ने ‘ऑपरेशन ब्लैक फ़ॉरेस्ट’ और अन्य हालिया अभियानों का हवाला देते हुए कहा कि “सुरक्षा बलों की कार्रवाई नक्सल ढांचे को कमजोर करने में प्रभावी रही है। प्रशासनिक और सुरक्षाबलों की कार्रवाई के परिणामस्वरूप कई उच्च रेंकिंग नक्सली हटा दिए गए। यही वजह है कि अब देश में आत्मसमर्पण और पुनर्वास के विकल्प पर जोर दिया जा रहा है, जबकि युद्धविराम जैसा औपचारिक मोहरा आवश्यक नहीं माना जा रहा।”
अमित शाह का संदेश स्पष्ट और निर्णायक रहा: युद्धविराम नहीं, बल्कि हथियार डालकर लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लौट कर आने वालों का स्वागत और साथ ही नक्सल विचारधारा को समाज में पोषित करने वालों की पहचान कर उसका नाश करना। सरकार ने नक्सल-मुक्त भारत का समयसीमा (31 मार्च, 2026) दोहराया है, और मैदान पर व प्रशासनिक तौर पर दोनों तरफ से दबाव तेज नजर आ रहा है।