Sunday, July 27, 2025

रांची: भारतीय संविधान की 75वीं वर्षगांठ के अवसर पर बामसेफ का क्लस्टर अधिवेशन

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रांची: भारतीय संविधान की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर रविवार को पुराने विधानसभा सभागार में क्लस्टर अधिवेशन का आयोजन हुआ। बामसेफ के तत्वावधान में क्लस्टर अधिवेशन के माध्यम से भारत के संविधान के लागू होने के 75वां वर्ष का हीरक महोत्सव संपूर्ण भारतवर्ष में मनाया जा रहा है। इस मौके पर बामसेफ के वक्ताओं ने बताया, इस हम मूलवासी बहुजन समाज की जन्म सामान को भारी मात्रा में संविधान और लोकतंत्र के समर्थन में एकत्रित एवं मुखर करने के प्रयास करते रहे हैं. इस सम्मेलन के मूल विचार बिंदु “राज्य समाजवाद से राष्ट्र निर्माण” तथा मूलवासी समाज के संगठनों का एकता अभियान है. इन बिंदुओं पर मूल निवासी बहुजन समाज को संपूर्ण भारतवर्ष में लामबंद किया जा रहा है. लामबंदी के कार्यक्रम भारत के किस राज्यों के 200 जिलों में आयोजित होंगे, उत्तर अधिवेशन इस श्रृंखला के एक कड़ी है. इसको सफल बनाने के लिए आपसे तन मन धन का साथ और सहयोग अपेक्षित है इसमें आप सब परिवार सादर आमंत्रित है. भारत में ब्राह्मणवादी लोग राष्ट्रीय संपदा का निजीकरण करके राष्ट्रवाद के खोखले गीत गाए जा रहे हैं यह विनम्रता की परिवार परी कष्ट है क्या कोई सच्चा नागरिक इसकी अनदेखी कर सकता है आखिर निश्चय भेदभाव के लिए मानव निर्णय की आशा में ही राजनीतिक लोकतंत्र का निर्माण किया है पुणे अन्यथा जिसकी लाठी उसकी भैंस तो थी ही, समान भाषा में कहा जाए तो देश की संपत का संपूर्ण राष्ट्रीयकरण किया बिना एक लोकतांत्रिक राष्ट्र का निर्माण संभव नहीं है,अन्यथा उन्नत निजी शक्ति नागरिकों के स्तर पर शैतान की तरह सवार रहेगी और किसी को ना जीने देगी और न करने देगी, बाबा साहेब के ही शब्दों में बताया जाए तो यदि किसी बेरोजगार से एक ऐसी निजी नौकरी जिसमें कुछ वेतन मिले कोई निश्चित कार्य घंटे ना हो और सॉन्ग यूनियन में शामिल होने की मनाही हो तथा बोलने से श्रद्धा धर्म आदि की स्वतंत्रता के अधिकार के प्रयोग को छोड़ने को कहा जाए तो उसका निर्वाचन क्या होगा निश्चित रूप से नौकरी मकान को देने का वह बच्चों को स्कूल से निकल जाने का व्यवहार सार्वजनिक खैरात भीख पर जीने की नौबत का भय से सब तत्व इतनी प्रबल है कि यह किसी आदमी को अपने मूल अधिकारों के लिए खड़ा होने नहीं देते. इस प्रकार निजी उद्यम पर आधारित निजी अर्थव्यवस्था में एक बेरोजगारों को नौकरी के खाते अपने मानव अधिकार छोड़ने के लिए विवश होना करता है. जिस राजनीतिक लोकतंत्र दुर्बल और समाप्त हो जाता है राष्ट्र व्यक्ति समाज और उसकी भूमि संपदा का सजा नाम होता है. व्यक्ति समाज को उसकी भूमि संप्रदाय जोड़ा जाए तो राष्ट्र कहां बचेगा जब राष्ट्रीय नहीं होगा तो राष्ट्रवाद कैसे हो सकता है आता बिना किसी ठिकाने व्यक्तियों द्वारा काल्पनिक राष्ट्र के राष्ट्रवादी गीत गाना एक पागलपंती कार्यक्रम नजर आता है. सब यही है कि हमें एक सच्चे और ठोस राष्ट्र निर्माण के लिए देश की संपदा का संपूर्ण राष्ट्रीयकरण करने की दिशा में ही अपना कारवां आगे बढ़ना होगा इसमें जो भी चुनौतियां वर्तमान भारत का नेतृत्व निजी पूंजीपतियों का गुलाम है. खाने के लिए केंद्र में वह बहुत शक्तिशाली है परंतु वास्तव में वह न केवल बाहरी आपत्ति आंतरिक निजी पूंजी तिथियां के अधीनता है या निजी पूंजी पतियों के गुलाम सामंजन का शोषण करने उन पर कर दाने और उनका डरने के लिए तो अपनी शक्ति का उपयोग और प्रयोग जरूर कर सकते हैं परंतु राष्ट्रीय में निजी पूंजी पत्तियों पर लगाम लगाने का काम नहीं कर सकते. हमें खुली आंखों से दिख रहा है कि यह लोग अपने अकाउंट के सामने संदेश नतमस्तक है इससे प्रतीत होता है कि राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा पूंजीपतियों की गुलामी राष्ट्र के अस्तित्व को ही समाप्त कर देगी ऐसी स्थिति में पूंजी को लूप नेताओं के जीवन नया को दुबे की ही दुबे की परंतु वह राष्ट्र को भी ले डूबेगी, अंकित भारत राष्ट्रीय संघ में अंत तक खतरनाक मोड़ पर खड़ा है, मन की आधुनिक विकास के लिए औद्योगिकरण आवश्यक है और अवधिकरण के लिए पूंजी हत्या आवश्यक है परंतु निजी शक्तियों द्वारा औद्योगिकरण और राज्य की पूंजी द्वारा उद्रीकरण यह दो विभिन्न विचारधारा और प्रक्रियाएं हैं बाबा साहेब डॉक्टर अंबेडकर का इस संदर्भ में स्पष्ट मत था कि भारत की तीव्र औद्योगीकरण के लिए राज्य समाजवाद आवश्यक है निजी उत्तम ऐसा नहीं कर सकते और अगर वह ऐसा करेंगे तो वह धन की असमानताएं पैदा करेंगे जो निजी पूंजी बाद में यूरोप में पैदा की है और जो भारतीयों के लिए एक चेतावनी होनी चाहिए, ऐसी स्थिति में हम भारत के मूलवासी बहुजनों को ही अपने लोकतांत्रिक गणराज्य की कमान सामान्य के लिए तैयार होना होगा. इसी से हम अपने समाज और राष्ट्र की रक्षा कर पाएंगे इस पर अधिक कहां मंथन के लिए या विषय निर्धारण है.

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