संभल हिंसा आरोपी सपा सांसद जियाउर्रहमान बर्क को बहुत बड़ा झटका,FIR रद्द करने की याचिका खारिज
प्रयागराज: संभल हिंसा के मामले में नामजद आरोपी और समाजवादी पार्टी के सांसद जियाउर्रहमान बर्क को बहुत बड़ा झटका इलाहाबाद हाई कोर्ट से लगने की खबर आ रही है। खबर है कि हाई कोर्ट में उनके द्वारा दायर FIR रद्द करने की याचिका खारिज कर दी है। कयास लगाए जा रहे हैं कि सपा सांसद जियाउर्र रहमान वर्क अब सुप्रीम कोर्ट का रुख कर सकते हैं और अपने खिलाफ दर्ज एफआईआर रद्द करने की याचिका दायर कर सकते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक हाई कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में FIR रद्द नहीं होगी और पुलिस जांच जारी रहेगी.हालांकि हाईकोर्ट ने पुलिस को निर्देश दिया है कि सांसद बर्क को अभी गिरफ्तार न करे. बता दें कि संभल हिंसा में नामजद आरोपी बनाए जाने के खिलाफ सांसद जियाउर्रहमान बर्क ने FIR को ख़ारिज करने की गुहार लगाई थी. जिस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस राजीव गुप्ता और जस्टिस अजहर हुसैन इदरीसी की डिवीजन बेंच ने कहा कि जिन धाराओं में बर्क पर एफआईआर दर्ज की गई है उसमें 7 साल से कम की सजा का प्रावधान है. इस मामले में पुलिस बर्क को नोटिस जारी कर पूछताछ करेगी. संसद बर्क को जांच में सहयोग करना होगा. पुलिस की नोटिस का जवाब न देने और बयान दर्ज न करवाने की स्थिति में ही गिरफ्तारी होगी. फ़िलहाल कोर्ट ने पुलिस को सुप्रीम कोर्ट के आदेश अमल में लाने का निर्देश दिया है. बर्क के खिलाफ कई धाराओं में दर्ज है मुकदमा गौरतलब है कि 24 नवंबर को शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान हिंसा भड़की थी, जिसमे पांच लोगों की मौत हुई थी, 19 पुलिसकर्मियों समेत कई लोग घायल हुए थे. हिंसा के मामले में पुलिस ने सपा सांसद बर्क को नामजद आरोपी बनाया है. उन पर हिंसा के लिए लोगों को भड़काने का आरोप है. पुलिस ने बर्क के खिलाफ कई धाराओं में एफआईआर दर्ज की है. जिसके खिलाफ सांसद बर्क इलाहबाद हाई कोर्ट पहुंचे थे. बर्क की तरफ से दी गई ये दलील सांसद जियाउर्रहमान बर्क की तरफ से अधिवक्ता इमरान उल्लाह और सैयद इकबाल अहमद ने पेश की दलीलें. उन्होंने कहा कि जिस दिन घटना हुई थी उस दिन सपा सांसद शहर से बाहर थे. हिंसा में उनका कोई योगदान नहीं है. जबकि यूपी सरकार की तरफ से शासकीय अधिवक्ता एके संड ने रखा पक्ष. उन्होंने कहा कि मामला बेहद गंभीर है. अगर सदन में कानून बनाने वाले ही कानून तोड़ेंगे तो देश कैसे चलेगा? कोर्ट ने भी एफआईआर के आधार पर मामले की गंभीरता को देखते हुए एफआईआर रद्द करने से इनकार कर दिया. हालांकि हाईकोर्ट ने एफआईआर में धाराएं 7 साल से कम की सजा होने के आधार पर गिरफ्तारी से राहत दे दी है.
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